लखनऊ: सेंटर फॉर एन्वॉयरोंमेंट एंड एनर्जी डेवलपमेंट (सीड) ने आज 'जीवाश्मईंधन-मुक्त शहरी सार्वजनिक यातायात: परिवहन की मुख्यधारा में ई-रिक्शा’ (1) नामक रिपोर्ट जारी किया। यह रिपोर्ट मुख्यतः ई-रिक्शा को बड़े पैमाने पर अपना कर मुख्यधारा में लाने और शहरी आवागमन में वायु प्रदूषण को कम कर इसके सामाजिक व पर्यावरणीय फायदों की पड़ताल करती है। इन फायदों को बताने के अलावा यह रिपोर्ट ई-रिक्शा क्षेत्र द्वारा तकनीक, सुरक्षा और बैटरी चार्जिंग के लिए जरूरी आधारभूत संरचनाओं से जुड़ी चिंताओं और चुनौतियों को भी चिन्हित कर उनका समाधान पेश करती है।

सीड ने ई-रिक्शा पर एक व्यापक मार्केट रिसर्च इस दृष्टिकोण के साथ किया है कि इससे देश में इलेक्ट्रिक मोबिलिटी यानी बिजली चालित वाहनों के जरिये आवागमन से भविष्य की नयी राहें खुलेंगी, खास तौर पर वर्ष 2030 तक सभी इलेक्ट्रिक वाहनों को सड़कों पर चलाने के केंद्र सरकार के महत्वाकांक्षी लक्ष्य को ध्यान में रखा जाये तो यह रिपोर्ट बेहद प्रासंगिक हो जाती है। रिपोर्ट यह भी दर्शाती है कि एक सततशील पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम के तहत ई-रिक्शा अंतिम पड़ाव तक कनेक्ट करने के विचार को भविष्य में पूरा करने के लिए ‘गेम चेंजर’ साबित हो सकता है। ई-रिक्शा को पारंपरिक ऑटो रिक्शा के एक स्वच्छ विकल्प के रूप में अपनाने को प्रोत्साहित किया जा सकता है, जो न केवल वायु प्रदूषण के अप्रत्याशित विस्तार को रोकने में मददगार साबित होगा, बल्कि उपभोक्ताओं के लिए एक किफायती और सस्ता परिवहन समाधान प्रस्तुत करेगा।

भारत में ‘इलेक्ट्रिक मोबिलिटी’ की ओर बदलाव की राह पर चलने का समर्थन करते हुए सीड के मैनेजर-क्लीन एनर्जी, आनंद प्रभु पतंजलि ने कहा कि “ई-रिक्शा न केवल एक वैकल्पिक आवागमन समाधान मुहैया कराते हैं, जो स्वच्छ और किफायती है, बल्कि यह नये रोजगार सृजन करने, आयातित तेल पर निर्भरता कम करने, शहर में कम जमीन का बेहतर इस्तेमाल करने और वायु प्रदूषण के स्तर को कम करके जन स्वास्थ्य में सुधार आदि का माध्यम बनता है।” उन्होंने इस क्षेत्र के समक्ष आ रही चुनौतियों पर चर्चा करते हुए बताया कि “केवल लखनऊ में करीब 40 हजार ई-रिक्शा हैं और किसी औपचारिक रेगुलेशन के नहीं होने के कारण इनमें से केवल 20 प्रतिशत ही रजिस्टर्ड हैं। इसके परिणामस्वरूप ई-रिक्शा मार्केट में कोई महत्वपूर्ण तकनीकी विकास नहीं देखा गया है। यह वाकई चिंताजनक है कि ये गाड़ियां अब भी अदक्ष ‘‘लेड एसिड बैटरी’’ पर चलती हैं और इनमें कई सेफ्टी स्टैंडर्ड का अभाव है।”

ई-रिक्शा क्षेत्र की सबसे बड़ी समस्या चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर से संबंधित किसी रेगुलेशन का नहीं होना है। इसके अलावा यह रिपोर्ट अन्य कई चुनौतियों पर प्रकाश डालता है, जैसे कि ई-रिक्शा से जुडी तकनीक, सुरक्षा और इसकी बनावट। बढ़ते उपयोग के साथ आगे कम चार्ज होते जाने से इसका असर ड्राइवर की आमदनी पर भी पड़ता है।

इस मौके पर सीड के प्रोग्राम डायरेक्टर अभिषेक प्रताप ने विस्तार से बताया कि “ई-रिक्शा और अन्य इलेक्ट्रिक वाहनों को प्रदूषणकारी जीवाश्म ईंधनों पर आधारित पारंपरिक वाहनों का एक बेहतर विकल्प बनाने के लिए शहर के प्रमुख व चिन्हित स्थानों पर सोलर चार्जिंग जैसे स्वच्छ व सततशील ऊर्जा स्रोतों पर आधारित ‘विकेंद्रीकृत चार्जिंग स्टेशन’ को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।”

इन सबके अलावा रिपोर्ट में दो प्रकार की बैटरी चार्जिंग संरचनाओं की बात कही गई है- बैटरी स्वैप प्रणाली और विकेंद्रीकृत चार्जिंग स्टेशन।

भारत के गंगा मैदानी क्षेत्रों में प्रदूषण के खतरनाक स्तर के कारण, इंटरनल कम्बशन इंजन (आईसीई) के आधार पर, परिवहन के पारंपरिक साधनों से इलेक्ट्रिक वाहनों में बदलाव एक विकल्प के रूप में नहीं, बल्कि एक आवश्यकता के रूप में देखा जाना चाहिए।

अंततः ई-रिक्शा क्षेत्र के विस्तार से जुड़ी चुनौतियों से निबटने में सार्वजनिक क्षेत्र के सार्थक हस्तक्षेप की बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका है। इलेक्ट्रिक वाहनों के जरिये होनेवाले बहुस्तरीय फायदों जैसे वायु प्रदूषण एवं जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों को कम करने, स्किल डेवलपमेंट को प्रोत्साहन और कम लागत तथा किफायती आवागमन समाधानों को हासिल करने के लिए यह अत्यावश्यक है कि इस क्षेत्र के विभिन्न स्टैक्होल्डर्स को एक सफल ई-रिक्शा मार्केट के काम को पूरा करने में अपनी भूमिका को सक्रियता से पूरा करना चाहिए।