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कांग्रेस को आखिर क्यों सताने लग गयी सदन की चिंता

मृत्युंजय दीक्षित

वर्तमान में गुजरात चुनावों के कारण कांग्रेस सहित समूचा विपक्ष अचानक से सरकार से शीतकालीन सत्र जल्द बुलाने की मांग करने लग गया है। पता नहीं देश में आखिर ऐसा क्या हो गया है कि आज सभी विपक्षी दलों को संसद की बड़ी चिंता हो गयी है। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि कांग्रेस व पूरा विपक्ष अपने वह दिन भूल गया है जिसमें उसने संसद व विधानसभाओं के सत्रों को अपने हिसाब से चलाया था और मनमर्जी की थी। कांग्रेसी युवराज राहुल गांधी का कहना है कि मोदी संसद खोलो , वहीं कांग्रेसियों का कहना है कि सरकार चुनाव लड़ने व लड़वाने की मशीन बन गयी है। वहीं कांग्रेस का एक बयान यह भी आया कि सरकार के सभी मंत्री चुनाव प्रचार में लग गये हैं आदि- आदि। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि कांग्रेस पार्टी मोदी व भाजपा से कुछ अधिक ही परेशान हो रही है। आज की कांग्रेस न सिर्फ अपना इतिहास भूल चुकी है अपितु उसके सभी नेता बौद्धिक दिवालियेपन के दौर से भी गुजर रहे हैं यह उसके लिए बेहद खतरनाक दौर है। पीएम मोदी को घेरने व उनको बुरी तरह से बदनाम व अपमानित करने के लिए लालायित कांग्रेसी अपनी बुद्धिहीनता का नजारा ही देश की जनता के सामने पेश कर रहे हैं।

कांग्रेस व विपक्ष की चाल है कि वह नोटबंदी, जीएसटी व हाल ही में चीन के साथ डोकलाम विवाद सहित गौरक्षा के नाम पर लगातार हो रही हिंसा जैसे फ्लाॅप मुददों के आधार पर वह पीएम मोदी व केंद्र सरकार को एक बार फिर अपमानित व लांछित करेगी तथा उसका लाभ उसे गुजरात चुनावों में मिलेगा। ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि संसद के शीतकालीन सत्र में नोटबंदी व चीन के साथ रिश्तों को लेकर संसद की समिति की जो रिर्पोटें आयंेगी उससे सरकार की किरकिरी होगी। जनता की ओर से लगातार नकारे जाने के बावजूद कांग्रेसी टिवटर बाज और बयान बहादुर नेता अपनी बौद्धिक हीनता का प्रदर्शन करेंगे। यह वहीं कांग्रेस व विपक्ष है जिसने कई अवसरों पर देश की संसद व विधानसभाआंे को अपने हिसाब से चलाया और संविधान व अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर मनमानी की। अभी जब मोदी सरकार ने 8 नवंबर 2016 को नोटबंदी का ऐलान किया था तो उसके बाद कंाग्रेस व संपूर्ण विपक्ष ने किस प्रकार से देश की संसद को बंधक बना लिया था उसे पूरे देश ने टी वी पर देखा था और उसके बाद पांच राज्यांे उप्र ,उत्तराखंड, मणिपुर और गोवा में भाजपा की सरकार बन गयीं जबकि बिहार में तो महागठबंधन ही बिखर गया। वहीं कांग्रेस एक बार फिर भारी गलती की ओर जा रही है। तेलंगना राज्य गठन विधेयक कांग्रेसियों ने कैसे पास कराया था, यह भी कांग्रेसियों को याद करना चाहिये। 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या विध्वंस के बाद कांग्रेस की सरकार ने किस प्रकार से संसदीय बहुमत का दुरूपयोग करते हुए भाजपा सरकारों को बर्खास्त किया था और विपक्ष के खिलाफ दमनचक्र चलाया था उसे पूरा देश जानता है। कंाग्रेस ने अपने पूर्व पीएम की कुर्सी को बचाने के लिए देश मंे आपातकाल लगा दिया था और अभिव्यक्ति की आजादी पर सबसे बड़ा कुठाराघात तो कांग्रेस की सबसे बड़ी नेता इंदिरा गांधी ने किया था आज राहुल और सोनिया गांधी अपने ही परिवार की स्मृतियों से विमुख होते जा रहे हैं।

आज कांग्रेस को अपना पुराना इतिहास अच्छी तरह से फिर से पढना चाहिये। संसद में जब गंभीर विषयांें पर चर्चा होती है तब यही कांग्रेसी मुंह चुराते नजर आते हंैं।

संसदीय इतिहास व तारीखंे गवाह हैं कि कांग्रेस व उसके समर्थन वाली केंद्र सरकारों के समय दस बार ऐसे अवसर आये जब शीतकालीन सत्र क्रिसस के बाद भी चला । सत्र को छोटा किया गया और विधानसभा चुनावों के चलते तारीखों को इधर – उधर खिसकाया गया। विगत संसद के सत्रें में कांग्रेस ने जीएसटी पर हुई तमाम बहसों का बहिष्कार किया था और हंगामा करके संसद को येनकेन प्रकारेण बाधित करने ही योजना बनाती रहती थी । आज कांग्रेस वाकई में अपना इतिहास पूरी तरह से भूल चुकी है क्योंकि इसी कांग्रेस की सरकार के समय 2008 और 2013 में शीतकालीन सत्र दिसम्बर मंे बुलाया गया था। 2008 में मनमोहन सिंह के कार्यकाल में मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ, राजस्थान व दिल्ली के विधानसभा चुनावों के दौरान शीतसत्र 17 अक्टूबर से 24 अक्टूबर तक व 10 दिसम्बर से 23 दिसम्बर तक चला था। 1990, 1994 और 2013 में संसद के शीतकालीन सत्रों को बहुत सीमित कर दिया गया था। 1976 में प्र्वू पीएम इंदिरा गांधी के समय तो शीतकालीन सत्र जनवरी में बुलाया गया था । विधाानवभा चुनावों को जीतने के लिये तो पूरी की पूरी कांग्रेस भी पहले जुटती रही है। रही बात संसद में कांग्रेसउपाध्यक्ष राहुल गांधी की उपस्थिति की तो वह केवल 54 फीसदी से अधिक नहीं रही है। कंेद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद का यह कहना सही है कि अगर कांग्रेस प्रमाणिकता के साथ पूरे सदन मंे रहे, चर्चा में हिस्सा लें और यह तय करें कि उनको चुनाव प्रचार नहीं करना है तो सरकार इस विषय में गंभीरता से विचार कर सकती है। लेकिन कांग्रेस व विपक्ष को तो सरकार व पीएम मोदी को अपमानित करना है तथा उसको केवल गाली देना ही है।

यहां पर एक बात और ध्यान देने योग्य है कि श्रीमती सोनिया गांधी ने पीएम मोदी को एक पत्र लिखकर मांग की है कि महिला आरक्षण बिल को पास कराने के लिए पहल करिये उनकी बात का राहुल गांधी व वामपंिथयांें ने भी समर्थन किया था। लेकिन यह भी कांग्रेस का गुजरात चुनावों में महिलाओं का समर्थन पाने के लिए नाटक है। पूर्व पीएम अटल बिहारी बाजपेयी की सरकार ने महिला आरक्षण को बिल को पेश किया था लेकिन महिला आरक्षण बिल को पास कराने का श्रेय बीजेपी को न मिल जाये इसलिए उसके खिलाफ कांग्रेस व उसके सहयेगी दलोें की ओर से ही साजिशें रची गयीं। आज महिला आरक्षण बिल के प्रति भी कांग्रेस व सोनिया का प्रेम नकली है। आज की कांग्रेस पूरी तरह से एक परिवार की बंधक हो चुकी है तथा यह परिवार अपना पुराना इतिहास व भूगोल भूल चुका है । यही कारण है कि आज की कांग्रेस पूरी तरह से जनता से कटती जा रही है। कांग्रेस जब तक परिवार वाद से नहीं मुक्त होगी तब तक उसका उत्थान नहीं होगा।

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