रामकथा मानस मसान शूरू पहले दिन उमडी जनमैदिनी

वाराणसी: काशी में मानस का महिमा मंत्र है। वेद आदेश करते है और उपनिषद उपदेश देते है। ब्रह्माण्ड के सबसे बडे उपदेशक विश्वनाथ यहां बैठे है। शमशान एक ज्ञान भूमि है और प्रत्येक व्यक्ति को मन से इसका भय निकालना चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति के मन से प्रलोभन निकल जाये और मृत्यु का भय निकल जाये तो जीवन का मोक्ष अवश्य होता हैं।

भगवान श्रीनाथ की नगरी नाथद्वारा से निकली कथा भगवान विश्वनाथ के पटांगन पर आज पहुंची है और सतुआ बाबा की पावन तपस्थली में संकट मोचन की कृपा से आठ सौवीं कथा करने का सौभाग्य मिला है। यह संयोग ही है कि सात सौवीं कथा का सौभाग्य भी भगवान कैलाशनाथ के चरणों में करने का मौका मिला था। यह उद्गार राष्ट्र संत मोरारी बापू ने व्यक्त किया। वाराणसी के मणिकर्णिका घाट के सामने गंगा पार सतुआ बाबा की गौशाला में संत कृपा सनातन संस्थान की ओर से आयोजित मोरारी बापू की आठ सौवी रामकथा के प्रथम दिन शनिवार शाम को हजारों जनमैदिनी को व्यासपीठ से आशीर्वचन प्रदान करते हुए बापू ने जीवन के यथार्थ को बताते हुए मृत्यु एवं मसान की व्याख्या की।

काशी ज्ञान खानी है
दीपावली एवं नये वर्ष की शुभ कामना देते हुए मोरारी बापू ने कहा कि जहां मृत्यु होती है वहां मसान का जिक्र होता है। आदमी अपनी आयुष से ज्यादा भय के कारण मरता है। मृत्यु से बडा कोई सच नही है और यही परम सत्य है। मृत्यु ध्रुव है और प्राण का बचाव नही हो सकता है। मृत्यु कही भी होती हो लेकिन देह की अंतिम जगह मसान ही होती है। मसान ऐसी जगह है जहां सबका स्वीकार होता है, यहां किसी की उपेक्षा नही होती है और यही प्रेम है। बाबा विश्व नाथ की करूणा है कि काशी में मृत्यु होने पर जीवन मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त हो जाता है। काशी को महा शमशान माना गया है। यह सत्य, प्रेम और करूणा की भूमि है। शमशान ग्रीडा देते है और विश्वनाथ यहां क्रीडा करते है। सदा के लिए सोना हो तो शमसान जाओं और सदा के लिए जागना हो तो मसान जाओं।
मानस स्वयं मसान है जो सदा विश्राम देती है। जो व्यक्ति मानस मसान को समझ लेता है वह स्वयं जागृत होता है। मानस वाद विवाद का नही संवाद का विषय है। जिनकों भजन करना होता है उन्हे विवाद नही करना चाहिए क्योंकि विवाद करने से समय नष्ट होता है।
रामचरित मानस के प्रत्येक काण्ड में मृत्यु का वर्णन आया है लेकिन गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस में तीन बार मसान शब्द का प्रयोग किया है। रामचरित मानस में सात सौपान है और प्रत्येक सौपान को काण्ड शब्द दिया गया है। रामचरित मानस के प्रत्येक काण्ड में मृत्यु का वर्णन है। सिर्फ उत्तर काण्ड में किसी की भी मृत्यु का वर्णन नही मिलता है। इस काण्ड में महाकाल का वर्णन है और महाकाल भी एक शमशान है। उत्तर काण्ड अमरत्व का काण्ड है।

विज्ञान विशुद्ध होना चाहिए

विज्ञान विशुद्ध होना चाहिए। जो विज्ञान विशुद्ध नही रहा उसने हिरोशिमा तथा नागासाकी जैसा रूप दिखाया। संवेदन शून्य विज्ञान विशुद्ध विज्ञान नही हो सकता। हनुमान एवं वाल्मिकी विशुद्ध वैज्ञानिक है। शक्ति की खोज वैज्ञानिक के अलावा कोई नही कर सकता है। माॅं सीता आदिशक्ति है इसलिए भगवान राम ने सीता की खोज के लिए हनुमानजी को भेजा। सगर्भा शक्ति की रक्षा करने के लिए वााल्मिकी के आश्रम का चयन किया गया।

गुरूकृपा से सब कुछ संभव

गुरू कृपा से सब कुछ हो सकता है। गुरू की वन्दना महिमा करते हुए बापू ने कहा कि कोई समर्थ बुद्ध पुरुष के मिलने पर ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश तीनों की पूजा हो जाती है। गुरू से श्रेष्ट कोई नही है। गुरू नम्र होता है और तन व मन से तंदुरस्त होता है। वह अपने आश्रितों के शुभत्व के लिए कुछ न कुछ कार्य निरन्तर करता रहता है। गुरू का बैठना भी स्मरण चिन्तन में लगा रहना है। जो संशय से जगत को मुक्त रखता है और अपने ज्ञान व अनुभव से निरन्तर निवारण करता है वही सच्चा गुरू है।

हनुमान का आश्रय अवश्य करे

हनुमानजी के आश्रय से बल, बुद्धि और विद्या मिलती है। हनुमान जैसा परम तत्व कोई नही है। हनुमानजी हमें आध्यात्म की ओर प्रेरित करते है। हनुमान चालीसा हमें सिद्ध करती है और शुद्धषुद्ध करती है। हमें हनुमानजी का आश्रय अवश्य करना चाहिए।
बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी में 21 से 29 अक्टूबर तक आयोजित रामकथा मानस मसान के प्रथम दिन कथा सांय 4 बजें शुरू हुई। उससे पूर्व मोरारी बापू भावनगर से चार्टर विमान से रवाना होकर वाराणसी एयरपोर्ट पहुंचे। वहां से हैलीकाप्टर से रवाना होकर बीएचयू हैलीपेड पर उतरे। जहां संत कृपा सनातन संस्थान तथा कथा के मुख्य आयोजनकर्ता मदन पालीवाल, प्रकाश पुरोहित, रविन्द्र जोषी, रूपेश व्यास, विकास पुरोहित, मंत्रराज पालीवाल ने बापू की अगवानी की। इस दौरान काशी नरेषश कुंवर अनंत नारायण सिंह भी सपरिवार बापू से आशीर्वाद लेने पहुंचे।