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राष्ट्रवाद को फिर से परिभाषित करने की कोशिश ग़ैरज़रूरी: प्रणव मुख़र्जी

अलीगढ: भारतीय राष्ट्रवाद का विचार वैसा बिलकुल भी नहीं है जैसा यूरोपियन देश कहते हैं और इसे फिर से परिभाषित करने की कोशिश अनावश्यक है. ये बातें पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने मंगलवार को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में कहीं. मुखर्जी मोहम्मदन एंग्लो ऑरिएंटल कॉलेज के संस्थापक सर सैयद अहमद खान के 200वें जन्मदिवस समारोह को संबोधित कर रहे थे.

उन्होंने कहा कि राष्ट्रवाद की परिभाषा को फिर से परिभाषित करने के लिए समय-समय पर प्रयास किए गए हैं. ऐसे प्रयास अनावश्यक हैं क्योंकि हमारी राष्ट्रवाद और राष्ट्रीय पहचान की अवधारणा पहचान के आधुनिक और उत्तर आधुनिक निर्माण से पहले ही होती है. यूरोपीय राष्ट्र के संदर्भों में राष्ट्रवाद की अवधारणा भारतीय सभ्यता में एक नई घटना है.

मुखर्जी ने कहा कि क्षेत्र, राजतंत्र, सांसारिक और आध्यात्मिक प्राधिकरण भारत में राष्ट्रवाद को परिभाषित नहीं कर सकते. उन्होंने आगे कहा कि राष्ट्रवाद कानून द्वारा लागू नहीं किया जा सकता है, इसके अलावा ये अदालती हुक्म या फिर घोषणा से भी लागू नहीं किया जा सकता.

उन्होंने कहा कि भारत क्या है? लगभग 3.3 मिलियन किलोमीटर की विशाल भूमि, जिस पर सात धर्मों के लोग व्यवसाय करते हैं, अपने निजी जीवन में 100 भाषाएं बोलते हैं, जो एक संविधान से बंधा हुआ है, जिसका एक राष्ट्रीय ध्वज और एक पहचान है.

उन्होंने भारत सरकार की आधुनिक संरचना पर भी बात की. उन्होंने कहा कि अंग्रेजों ने अपनी अवधारणा पर भारतीय राज्यों की बुनियाद बनाने की कोशिश की. उन्होंने कहा कि भारतीय राज्य का अस्तित्व लंबे समय तक माना जाता है. भारतीय सभ्यता समाज उन्मुख है ना कि राजनीतिक प्रभुत्व वाली.

सभा को संबोधित करते हुए मुखर्जी ने छात्रों से खान के वैज्ञानिक कौशल और स्वभाव से प्ररणा लेने को कहा. आईआईटी, आईआईएम, एनआईआईटी और आईआईएसईआर जैसे संस्थानों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि लक्ष्य सिर्फ आजीविका हासिल करने के बारे में नहीं होना चाहिए, बल्कि रिसर्च को आगे बढ़ाने और भारत को एक ज्ञानी समाज बनाने का होना चाहिए.

मुखर्जी ने कहा कि भारत के कई नोबेल पुरस्कार विजेताओं ने भारत के बाहर शोध करके ये प्रतिष्ठित सम्मान हासिल किया. उन्होंने कहा कि बुनियादी शोध पर वापस जाना हमेशा ही महत्वपूर्ण होता है.

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