लखनऊः साहित्य के रूप में सबसे सुंदर ग्रंथ है देश का संविधान, जिसके शिल्पकार बाबा साहब अम्बेडकर थे। बाबा साहब अम्बेडकर ने संविधान के रूप में देश को शाश्वत ग्रंथ दिया है। डाॅ0 अम्बेडकर एक अच्छे वक्ता, लेखक और वकील थे। उनका संदेश था ‘शिक्षित बनो, आगे बढ़ो’। यह मेरा सौभाग्य है कि मुझे उन्हें देखने, सुनने और मिलने का अवसर प्राप्त हुआ। डाॅ0 अम्बेडकर में सबको साथ लेकर चलने की अद्भुत क्षमता थी। आज की युवा पीढ़ी को उनके जीवन दर्शन से प्रेरणा प्राप्त करनी चाहिए।

उक्त विचार उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक आज बसंत लाल औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान, मोहान रोड लखनऊ में बुद्ध अम्बेडकर कल्याण एसोसिएशन द्वारा आयोजित राष्ट्रीय दलित साहित्यकार सेमिनार एवं सम्मान समारोह में डाॅ0 अम्बेडकर को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करने के बाद व्यक्त कर रहे थे। राज्यपाल ने कार्यक्रम में पूर्व राज्यपाल माता प्रसाद को अंग वस्त्र एवं स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया। राज्यपाल ने 93 वर्षीय माता प्रसाद पाण्डेय को जन्म दिवस की बधाई देते हुए उनके शतायु होने की कामना की। इस अवसर पर साहित्य के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने के लिए वी0आर0 अम्बेडकर, एन0के0 गौतम सहित अन्य को राज्यपाल ने सम्मानित भी किया। इस अवसर पर संस्था के पदाधिकारीगण एवं बड़ी संख्या में साहित्यकार भी उपस्थित थे।

राज्यपाल ने डाॅ0 अब्दुल कलाम की जयंती पर अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि उनके जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिए। राष्ट्रपति पद का कार्यभार पूर्ण होने के बाद भी वे जीवन पर्यन्त शिक्षक के रूप युवा पीढ़ी का मार्गदर्शन करते रहे। राज्यपाल ने पूर्व राज्यपाल श्री माता प्रसाद द्वारा उत्तर प्रदेश में एवं अरूणांचल प्रदेश का राज्यपाल रहते हुए किए गए कार्यों की प्रशंसा करते हुए कहा कि उनका जीवन सादगीपूर्ण रहा है। श्री माता प्रसाद ने सदैव जनहित के कार्य किए हैं। राज्यपाल ने कहा कि श्री माता प्रसाद के शतायु होने के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में उन्हें जरूर बुलाया जाए।

श्री नाईक ने कहा कि साहित्य बड़ा या छोटा नहीं होता है बल्कि उसमें क्या लिखा गया है वह महत्वपूर्ण होता है। लेखक की लेखनी में ताकत होती है। अच्छे साहित्य से लोगों को जागरूक कर समाज की अच्छाई को सामने लाने तथा बुराईयों को दूर करने का प्रयास करना चाहिए। अंग्रेजों ने 1857 के प्रथम स्वतंत्रता समर को बगावत बताया था परन्तु स्वातंत्र्य वीर सावरकर ने पहली बार इसे प्रथम स्वतंत्रता समर कहा, जिससे बाद अंग्रेजों ने उनकी पुस्तक को प्रतिबंधित कर दिया था। उन्होंने कहा कि अच्छे साहित्य के माध्यम से समाज को दिशा देनी चाहिए।

राज्यपाल ने कहा कि लेखक द्वारा लिखे गए साहित्य का मूल्यांकन पाठक करते हैं। पढ़ने की आदत से व्यक्ति का विकास होता है तथा समाज भी आगे बढ़ता है। राज्यपाल ने बताया कि उनका साहित्यकारों से सदैव मुधर संबंध रहा है। उन्होंने अपने संस्मरणों पर आधारित मराठी पुस्तक ‘चरैवेति! चरैवेति!!’ के बारे में चर्चा करते हुए बताया कि यह हिन्दी, अंग्रेजी, उर्दू एवं गुजराती भाषा में प्रकाशित हो चुकी है तथा शीघ्र ही संस्कृत भाषा में प्रकाशित होने वाली है। इसके साथ ही बांग्ला, फारसी तथा जर्मन भाषा में भी प्रकाशित करने के प्रस्ताव उनके पास आए हैं।

विशिष्ट अतिथि माता प्रसाद पाण्डेय सेमिनार में आए हुए साहित्यकारों को बधाई देते हुए कहा कि साहित्य के माध्यम से दलित समाज का उत्थान किया जा सकता है। उत्कृष्ट लेखन से समाज में व्याप्त विषमता को दूर करने का प्रयास करने की जरूरत है। अनेक भारतीय भाषाओं में दलित साहित्य लिखा जा रहा है तथा उस पर शोध भी हो रहा है। मराठी में दलित साहित्य को सम्मान प्राप्त हुआ है। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश में हिन्दी साहित्य के साथ दलित साहित्य पर कार्य होना चाहिए।

कार्यक्रम में श्री राज्यपाल द्वारा 7 पुस्तकों का लोकार्पण किया गया। डाॅ0 वी0आर0 अम्बेडकर ने स्वागत उद्बोधन दिया तथा कार्यक्रम का संचालन नानक चन्द्र द्वारा किया गया। इस अवसर पर महाराष्ट्र से आए मुख्य वक्ता डाॅ0 एम0डी0 इंगोले सहित अन्य लोगों ने भी अपने विचार रखे। राज्यपाल ने मंच पर उपस्थित अतिथियों एवं आयोजक संस्था के पदाधिकारियों को अपनी पुस्तक ‘चरैवेति! चरैवेति!!’ तथा अपनी वार्षिक रिपोर्ट ‘राजभवन में राम नाईक’ की प्रति भी भेंट की।