नई दिल्लीः स्वच्छ भारत अभियान के तीन साल पूरे होने पर आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली के विज्ञान भवन में स्वच्छता पुरस्कार का वितरण किया. इस मौके पर प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में कहा कि जब मैंने इस अभियान की शुरुआत की थी तो मुझे बड़ी आलोचना झेलनी पड़ी. इस संदर्भ में कहा कि तीन साल पहले मैं अमेरिका में था, 1 अक्टूबर रात देर से आया और 2 अक्टूबर को झाड़ू लगाना शुरू कर दिया. उस समय मेरी काफी आलोचना की गई थी, 2 अक्टूबर छुट्टी का दिन होता है लेकिन छुट्टी खराब की थी. मेरा स्वभाव है कि मैं सब कुछ चुपचाप झेलता रहता हूं, धीरे-धीरे अपनी कैपेसिटी बढ़ा रहा हूं. पीएम ने कहा, 'महात्माजी ने जो कहा वह गलत नहीं हो सकता, इसलिए इस रास्ते को चुना. हर भारतीय को स्वच्छता पसंद है.'

पीएम ने कहा कि स्वच्छता होनी चाहिए ये सभी जानते है. लेकिन सवाल था कि शुरुआत कौन करे? पीएम ने कहा कि यदि एक हजार महात्‍मा गांधी आ जाएं, 1 लाख नरेंद्र मोदी आ जाएं राज्‍यों के मुख्‍यमंत्री मिल जाएं तो भी स्वच्छता का सपना पूरा नहीं हो सकता है. लेकिन सवा सौ करोड़ देशवासी मिल जाएं तो ये सपना पूरा हो सकता है. पीएम ने कहा कि एक हजार महात्मा गांधी, 1 लाख मोदी भी मिलकर स्वच्छ भारत का सपना पूरा नहीं कर सकते हैं, जब तक जनता साथ नहीं जुड़ेगी तब तक यह पूरा होगा.

पीएम मोदी ने कहा कि जब तक जनता नहीं मिलेगी स्वच्छता का सपना पूरा नहीं हो सकता. स्वराज का शस्त्र था सत्याग्रह, श्रेष्ठ भारत का शस्त्र है स्वच्छता. इसके साथ ही कहा कि स्‍वच्‍छता पर नेता, सरकार चर्चा इसलिए नहीं करते क्‍योंकि कहीं खुद पर न पड़ जाए. पीएम मोदी ने कहा कि स्‍वच्‍छता के लिए वैचारिक आंदोलन जरूरी है. समाज में बदलाव के विषय पर राजनीति होना गलत है. स्‍वच्‍छता को जिम्‍मेदारी समझकर निभाना होगा.

पीएम मोदी ने यह भी कहा कि पांच साल बाद जो गंदगी करेगा उसकी खबर बनेगी. अब ये मिशन किसी सरकार का नहीं है बल्कि पूरे देश का है. हमें स्वराज्य मिला, श्रेष्ठ भारत का मंत्र स्वच्छता है. स्‍वच्‍छता के विषय पर महिला के नजरिये से देखें तभी इसका महत्‍व समझ में आएगा. स्‍वच्‍छता के लिए वैचारिक आंदोलन की जरूरत है. परिवार के सभी लोग सही जगह पर चीजें रखें तो मां को राहत मिलेगी. पीएम मोदी ने कहा कि टॉयलेट नहीं होने से महिलाओं को असुरक्षा होती है. सोच बदलकर ही स्‍वच्‍छता की अहमियत समझ में आएगी.

पीएम मोदी ने पुराने दिन याद करते हुए कहा, 'राजनीति में आने से पहले संगठन में रहकर भी सफाई के लिए काम किया, पैसा इकट्ठा करके गुजरात में एक गांव गोद लिया और उसमें स्वच्छता की व्यवस्था करवाई. पूरे गांव में हमने टॉयलेट बनवाए थे, लेकिन बाद में जब मैं गया तो देखा वहां पर बकरियां बंधी हुई थी.'

घरों में महिलाओं का लंबा वक्‍त सफाई में बीतता है. स्‍वच्‍छता को धर्म मान लें तो 50 हजार रुपये बचा सकते हैं. स्‍वच्‍छता नहीं होने से सालाना 50 हजार रुपये खर्च होते हैं.