बुंदेलखंड में बदहाली के ऐसे बादल छाए हैं कि सालों बाद भी छंटने का नाम नहीं ले रहे हैं । बुंदेलखंड में सालों से पड़ने वाले सूखे ने किसानों को बर्बाद कर दिया है । हज़ारों करोड़ों रुपए के पैकेज बुंदेलखंड के नाम पर नेता-अधिकारी हड़प जाते हैं और किसान मौत को लगा लेता है ।

मध्यप्रदेश का सागर संभाग बुंदेलखंड में आता है, यहां से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की कैबिनेट में 5 मंत्री शामिल हैं लेकिन बात जब बुंदेलखंड के विकास और फायदे की तो नतीजा सिफर ही रहता है । सूखे की मार, किसानों की मौत से संभाग का दर्द साफ उजागर होता है। भाजपा सरकार के 13 सालों के सफर में अकेले बुंदेलखंड के 1187 किसान ऐसे हैं, जो मौत को गले लगा चुके हैं। सिलसिला अभी थमा नहीं है। 2017 के आधे ही साल में करीब 10 मौतें सागर जिले से सामने आ चुकी हैं।

9 सालों में बुंदेलखंड 8 बार सूखे का सामना कर चका है, ज़मीनें बंजर हो गई हैं और किसान बदहाल । किसानों पर कर्ज़ लगातार बढ़ता ही जा रहा है जो टूट जाते हैं वो मौत को गले लगा लेते हैं ।
बुंदेलखंड में सूखे की स्थिति इतनी भयानक है कि गांव के गांव खाली हो गए हैं, लेकिन सरकारें और जनप्रतिनिधि इस समस्या को गंभीरता से नहीं लेते हैं । सूखे से निपटने के लिए कोई योजना तैयार नहीं की जाती है । सरकार सिंचाई की नई योजनाएं लाती जिससे खेती का रकबा बढ़ता। सूखे से निपटा जा सकता था। कर्ज वसूली का तकादा करने वालों पर नकेल कसने की कोशिश करते। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ ।

हैरानी तो इस बात की है कि सरकार और मंत्री ये बात मानने को तैयार ही नहीं होते हैं कि किसान कर्ज़ और सूखे की वजह से मौत को लगे लगा रहे हैं । दैनिक भास्कर अख़बार से बात करते हुए मप्र की राज्यमंत्री ललिता यादव कहती हैं कि सरकार किसानों के हित में काम कर रही है। जहां तक किसानों की आत्महत्या के जो आंकड़े बताए गए हैं। उनमें अन्य कई कारण भी हो सकते हैं।

वहीं पीएचई मंत्री कुसुम महदेले बेहद ही असंवेदनशील तरीके से कहती हैं कि आत्महत्या के मामलों में जरूरी नहीं उनका कारण खेती ही हो। अन्य कारण भी आत्महत्या के होते हैं। पूरे बुंदेलखंड को देख सकते हैं कि 10 साल पहले क्या था और अब क्या हैं ।
मध्यप्रदेश के वित्तमंत्री जयंत मलैया भी यही कहते हैं कि किसानों की मौत के जो आंकड़े सामने हैं उसमें केवल खेती के नुकसान से जोड़कर नहीं देखा जा सकता है ।

पंचायत मंत्री गोपाल भार्गव का कहना है कि हमारी पूरी प्रयास रहती है कि क्षेत्र का विकास हो। जहां तक किसानों की बात है, तो उनके लिए सरकार काम कर रही है। आत्महत्या दुखद हैं। फिर भी किसानों को समस्याएं है, तो हमारे पास आएं, उन्हें हम हल करेंगे।

बुंदेलखंड का ग्राउंड वाटर लेवल लगातार कम होता जा रहा है, और यहां का किसान बरसाती पानी के भरोसे खेती करता है । सेंट्रल ग्राउंड वाटर की रिपोर्ट के मुताबिक बुंदेलखंड क्षेत्रों में कुओं का पानी का स्तर नीचे जा रहा है। भू-जल 2 से 4 मीटर कम हुआ है। वहीं बड़े बांधों के नहीं होने से बारिश के दौरान 70 हजार मिलियन क्यूबिक मीटर पानी में से 15 हजार मिलियन क्यूबिक मीटर पानी ही जमीन में उतर पाता है। 1999 से 2008 के बीच के बारिश के दिनों की संख्या भी 52 से घट कर 27 हो गई है।

सूखे की वजह से बुंदेलखंड की ज़मीन बंजर होती जा रही है। छतरपुर ज़िले की 70 हज़ार एकड़ जमीन बंजर हो गई है, जबकि पन्ना की 50 हज़ार एकड़, टीकमगढ़ की 12 हज़ार एकड़ और दमोह की 62 हजार एकड़ ज़मीन बंजर हो गई है । सूखे का आलम ये है कि बुंदेलखंड के इस बीहड़ीकरण के कारण 471 गांव के सामने अस्तित्व का खतरा खड़ा हो गया है।