नई दिल्ली: भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने आगरा कोर्ट में कहा है कि ताजमहल पूर्व में एक मकबरा था ना कि कोई मंदिर। ये मुस्लिम वास्तुकला की एक उत्कुष्ट कृति है। एएसआई ने आगरा स्थित कोर्ट ऑफ सिविल जज (सिनियर डिविजन) को लिखित जवाब में गुरुवार (24 अगस्त) को ये बात कही है। साथ ही वर्ल्ड हेरिटेज साइट को ये मानने से साफ इंकार कर दिया कि पूर्व ये हिंदू भगवान शिव का मंदिर था। दरअसल साल 2015 में छह वकीलों ने मुकदमा दायर किया था, जिसमें दावा किया गया कि ताजमहल पूर्व में एक शिव मंदिर था। जिसका नाम तेजो महल था। इसलिए हिंदू धर्म के मानने वालों को ताजमहल परिसर के दर्शन और आरती की अनुमति दी जानी चाहिए। साथ ही स्मारक के उन कमरों को खोलने की भी मांग की गई थी जिन्हें बंद किया गया है। गौरतलब है कि वर्ममान में केवल मुस्लिम समुदाय के ही लोग ताजमहल परिसर के पास नमाज पढ़ सकते हैं। यहां ताजमहल परिसर में स्थित मस्जिद में हर शुक्रवार को मुस्लिम समुदाय के लोग नमाज अता करने आते हैं। कोर्ट में मामले में अगली सुनवाई की तारीख 11 सितंबर दी है। कोर्ट ने अपने जवाब से पहले केंद्र सरकार और केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय के साथ गृह सचिव व एएसआई को नोटिस जारी किया था। देश में एएसआई को पुरातात्विक अनुसंधान और ऐतिहासिक स्मारकों के संरक्षण के साथ इनके शोध की जिम्मेदारी दी गई है।

वहीं कोर्ट में याचिकाकर्ताओं की सुनवाई से पहले एएसआई और केंद्र के वकील ने कहा कि उनकी याचिका में कोई दम नहीं है। याचिकार्ताओं को ताजमहल परिसर में पूजा करने का अधिकार नहीं दिया जा सकता। ना ही कोई धार्मिक क्रियाकलाप की अनुमति दी जा सकती है। ये मुस्लिम स्मारक है। कोर्ट ने याचिकार्ताओं को जवाब में ये बातें कहीं हैं। इस दौरान कोर्ट ने कहा एएसआई भी ताजमहल के हिंदू धर्म से जुड़े होने की बात को नकार चुका है। ये बात वर्तमान तथ्यों से भी साबित होती है कि ताजमहल का निर्माण सत्रहवीं शताब्दी में शाहजहां ने एक समाधि के रूप में करवाया था। शाहजहां ने ताजमहल का निर्माण अपनी रानी मुमताज की याद में करवाया था। वहीं साल 2015 में केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय लोकसभा में कह चुका है कि ताजमहल पहले शिव मंदिर था इसका कोई सबूत नहीं मिलता है।