तारकेश्वर मिश्र

कांग्रेस के पूर्व सांसद एवं प्रवक्ता संदीप दीक्षित, आम आदमी पार्टी की विधायक अलका लांभा और गुजरात के युवा नेता हार्दिक पटेल ने अमरनाथ यात्रियों पर आतंकी हमले को प्रायोजित करार देकर संदेह जताया है और साजिश का नाम दिया है। निष्कर्ष के तौर पर इन तीनों महानुभावों का मानना है कि चूंकि गुजरात में इसी साल चुनाव हैं, लिहाजा बाबा भोलेनाथ के भक्तों में गुजराती ही आतंकियों के शिकार बने। आतंकी हमले से लोगों की सहानुभूति अर्जित करने की साजिश रची गई है। ये आरोप और संदेह नए नहीं हैं। एक ओर जहां सारा देश कश्मीर में यात्रियों के साथ घटी दर्दनाक घटना से दुखी और क्षोभ में है ऐसे में इस संवेदनशील मुद्दे पर राजनीति करना अफसोसजनक व शर्मनाक है।

संदीप दीक्षित हमेशा विवादास्पद बयानों के लिये सुर्खियां बटोरते हैं। यही संदीप दीक्षित थे, जिन्होंने सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत को ‘सड़क का गुंडा’ करार दिया था। कांग्रेस ने निजी बयान मानकर तब भी और आज भी पल्ला झाड़ा है। कांग्रेस में मणिशंकर अय्यर और दिग्विजय सिंह तक ऐसे ही बयानों की परंपरा रही है। जब मुंबई में पाकिस्तान के आतंकियों ने 26/11 आतंकी हमला किया था, तब कांग्रेस के दिग्विजय सिंह ने उसे आरएसएस की साजिश करार दिया था। यह संयोग है कि गुजरात की बस और तीर्थ यात्री ही आतंकियों के निशाने पर आए और मरने वालों में पांच गुजराती महिलाएं थीं। सवाल है कि कोई भी सरकार या नेता चुनाव जीतने के लिए, अपने ही देशवासियों को, आतंकवाद के हवाले कर सकते हैं? अपने ही नागरिकों को मरवा सकते हैं? अरे भारत के नादान नेताओ! आतंकवाद से लड़ो! आपस में ऐसे शक करने की रत्ती भर भी गुंजाइश नहीं है। यह ऐसा दौर है, जब लोग चर्चाएं करने लगे हैं कि कश्मीर भारत के हाथों से निकल जाएगा।
आंतकवाद पर राजनीति की देश में पुरानी रवायत है। देखा जाए तो कश्मीर और कश्मीरियत जीवन-मौत के बीच झूल रहे हैं। बेशक 2017 में ही, बीते छह महीनों के दौरान 92 आतंकियों को ढेर किया गया, लेकिन 40 जवान भी ‘शहीद’ हुए और 37 नागरिक भी मारे गए हैं। मोदी सरकार के तीन सालों के कार्यकाल में कुल 483 आतंकी मार दिए गए, लेकिन आतंकवाद को नेस्तनाबूद नहीं किया जा सका है। हैरत और अफसोस है कि हमारे नेता और राजनीतिक दल एक-दूसरे पर आरोप मढ़ रहे हैं और ऐसे आतंकी हमलों को सरकार की साजिश करार दे रहे हैं। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी का बयान भी संदेहास्पद प्रकार का है। हमें आतंकवाद से भी लड़ना है। उधर, कश्मीर में और नियंत्रण रेखा पर कोई भी कार्रवाई करने की छूट मोदी सरकार ने सेना को दे दी है। मकसद है-आतंकियों का समूलनाश! लेकिन आतंकवाद में बार-बार पाकिस्तान कनेक्शन सामने आया है। कसाब को तो फांसी पर लटका दिया गया, लेकिन चार-पांच ‘जिंदा कसाब’ आज भी हमारी गिरफ्त में हैं।

सच तो यह है कि धर्मनिरपेक्षता और वोटों की राजनीति में भारत भी उसी तरह आतंकवाद का पोषक बन रहा है जिस तरह कभी पाकिस्तान बना था। पाकिस्तान ने अपने पडोसी मुल्कों को परेशान करने के लिए आतंकबाद को फलने फूलने में मदद की और आज वही आतंकबाद उसको निगलने को तैयार है भारत भी उसी तर्ज पर आगे बढ़ रहा है यहौ के नेता चंद वोट और कुर्सी पर बने रहने के लिए किसी भी विचारधारा और व्यक्ति का समर्थन करने को तैयार हैं। भारत के राजनेता और बुद्धजीवी एक आतंकवादी की फांसी रोकने के लिए हस्ताक्षर अभियान चलाते हैं मोस्ट वांटेड आतंकवादी हाफिज सईद को हाफिज जी कहकर इज्जत नवाजते हैं। कश्मीर में हिज्बुल कमांडर के एनकाउंटर पर चैराहे जाम होते है और पाकिस्तान जिन्दावाद के नारे लगते हैं और सरकार संयुक्त राष्ट्र संघ में केवल आतंकवाद पर बात उठाकर अपनी पीठ थपथपाती नजर आती है।

अमरनाथ यात्रियों पर हमले का मास्टरमाइंड लश्कर आतंकी अबू इस्माइल है। बीते कुछ समय से वह अनंतनाग क्षेत्र का कमांडर है, लेकिन पाकिस्तान का मूल निवासी है। पाकिस्तान लगातार संघर्षविराम का उल्लंघन कर रहा है, गोलाबारी कर रहा है। दरअसल यह भारत के खिलाफ एक ‘छाया युद्ध’ है, जो लंबे वक्त से जारी है। इस पर सर्जिकल स्ट्राइक की जाए या कोई अन्य हमला बोला जाए, इसे तोड़ना और खत्म करना जरूरी है। उसके बिना आतंकवाद का खात्मा असंभव है। कांग्रेस ने आतंकवाद के ऐसे दौर देखे और झेले हैं। फिर भी शक करना या साजिश करार देना देशद्रोही हरकत है। आखिर हमारी सरकार, अपने ही देश में, किन-किन मोर्चों पर लड़ेगी? कांग्रेस में ही एक तबके ने भारतीय सेना द्वारा सर्जिकल स्ट्राइक पर भी शक जताया था। आखिर उनका हासिल क्या रहा?पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों ने अनंतनाग में अमरनाथ यात्रियों पर हमला कर एक बार फिर अपने कायरतापूर्ण हरकत का परिचय दिया है। यह हमला वैसे समय में किया गया जब यात्री अमरनाथ गुफा के दर्शन कर लौट रहे थे।

कुछ दिन पहले खबर आयी थी कि आतंकी अमरनाथ यात्रियों को निशाना बना सकते हैं। इसके बावजूद इस तरह की घटना का होना सुरक्षा की दृष्टि से लापरवाही का संकेत देती है। सवाल यह है कि अमरनाथ यात्रा की सुरक्षा के लिये पहले से ही चाक चैबंद सुरक्षा व्यवस्था की जाती है, तब ऐसी चूक क्यों हो जाती है। घटना में यह बात सामने आयी है कि जिस बस पर तीर्थयात्री सवार थे उस बस का रजिस्ट्रेशन नहीं था। जबकि यात्रा पर जाने वाली सभी बसों का रजिस्ट्रेशन किया जाता है। दूसरी ओर यात्रा के नियमों के मुताबिक शाम सात बजे के बाद इस रुट पर कोई बस नहीं जा सकती, ऐसे में रात आठ बजकर 20 मिनट पर इस बस के रास्ते पर होना सुरक्षा खामी को दर्शाता है। अमरनाथ यात्रा की सुरक्षा पर गौर किया जाये तो इस बार इसकी सुरक्षा के लिये करीब चालीस हजार जवानों को लगाया गया है और ड्रोन कैमरे से इसकी निगरानी की जा रही है।
फिर यह हमला कैसे हुआ यह जांच का विषय है। याद कीजिये पिछले 25 जून को कश्मीर क्षेत्र के आईजी ने अमरनाथ यात्रियों पर हमले की आशंका जतायी थी और इसके लिये अलर्ट भी जारी किया था। बावजूद इसके हमला हुआ। इसलिये सुरक्षा खामी ही इसकी बड़ी वजह है इससे इनकार नहीं किया जा सकता है। मालूम हो कि इस समय पाकिस्तान समर्थित आतंकी घुसपैठ कर भारत में बड़े हमले की फिराक में हैं। साथ ही वे दहशत फैलाकर भारत को अशांत करना चाहते हैं। पवित्र अमरनाथ यात्रा पर यह हमला उसी साजिश का हिस्सा है।
इससे पहले भी यात्रियों पर हमले हुए हैं और सुरक्षा खामियों को ठीक करने का दावा किया जाता रहा है। लेकिन हर बार चूक कैसे हो रही है इसकी सुक्षम जांच होनी चाहिये। प्रधानमंत्री मोदी के हालिया विदेश दौरों से भारत की साख बढने से चीन और पाकिस्तान को झटका लगा है, जिससे वे बौखलाये हुए हैं। इसलिये आनेवाले दिनों में सीमाओं पर संभावित खतरे से इनकार नहीं किया जा सकता है। प्रधानमंत्री मोदी नेे भी इस हमले पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा है कि भारत ऐसे कायरतापूर्ण हमले और घृणा के नापाक मंसूबों के आगे झुकने वाला नहीं है। यह भी ध्यान देने की बात है कि स्थानीय मदद के बिना इस तरह की घटनाओं को अंजाम देना मुश्किल है। इसलिये वैसे लोगों की भी पहचान की जानी चाहिये जो आतंकवादियों को मदद पहुंचाते हैं। तभी ऐसी घटनाओं को रोका जा सकता है।

अमरनाथ यात्रियों पर आतंकी हमले के बाद पूरा देश आतंक के खिलाफ एकजुट दिखा। जम्मू-कश्मीर में अलगाववादियों तक ने अमरनाथ यात्रियों पर आतंकी हमले की निंदा की है। सरकार और सेना आतंकवादियों के खिलाफ जवाबी कार्रवाई करने के लिए चिंतन-मंथन में जुटी है, लेकिन कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी इसमें भी राजनीति करने से नहीं चूके। राहुल गांधी ने ट्वीट किए, जिनमें उन्होंने सीधा आरोप लगाया कि मोदी के राजनीतिक फायदे की कीमत पूरा देश चुका हैै। राहुल गांधी ने अमरनाथ यात्रियों पर आतंकी हमले के लिए जम्मू-कश्मीर में पीडीपी और बीजेपी की गठबंधन की सरकार को जिम्मेदार बताया है। इससे पहले उन्होंने सर्जिकल स्ट्राइक के बाद आरोप लगाया था कि प्रधानमंत्री सैनिकों के खून की दलाली कर रहे हैं। अब सवाल ये है कि बार-बार आतंकवाद और राष्ट्रीय सुरक्षा को राजनीति का मुद्दा क्यों बना रहे हैं राहुल गांधी ?
वर्तमान हालातों के मद्देनजर जो तस्वीर उभरकर सामने आ रही है उसके अनुसार सीमा पर पाकिस्तान को मुंह तोड़ जवाब देने के साथ ही कूटनीतिक मोर्चे पर पुनरू उसके खिलाफ एक बड़ा अभियान चलाने पर विचार करने की जरूरत है। देश का मानस भी चाहता है कि पाकिस्तान को ईंट का जवाब पत्थर से दिया जाना चाहिए। जरूरत इस बात की है कि आंतकवाद को जात-पात, धर्म के चश्मे से न देखा जाए। आंतकी का कोई धर्म या सपं्रदाय नहीं होता। आंतकवाद पर राजनीति का खामियाजा देश के सारे नागरिक भोगते हैं। इस मुद्दे पर राजनीति बंद होना ही श्रेयस्कर है।

-लेखक राज्य मुख्यालय पर मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार हैं।

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