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मोदी सरकार के तीन साल, फाँसीवाद का बढ़ता हमला

मुश्ताक अली अन्सारी

2014 में सबका साथ- सबका विकास के नारे के साथ केन्द्र की सत्ता में आयी भाजपा आर0एस0एस0 नीति मोदी सरकार अब खुलकर अपने वास्तविक हिन्दू राष्ट्र और कारपोरेट परस्त एजेण्डे पर खुलकर काम करना शुरू कर एक तरफ देश में साम्प्रदायिक उन्माद, जातीय दंगों को उभार रही है, तो दूसरी तरफ देश के सरकारी खजाने से लेकर प्राकृतिक सम्पदाओं का मुँह बड़े कारपोरेट घरानों के लिये खोल दिया है और इसके खिलाफ उठने वाले लोकतांत्रिक आन्दोलनों पर पूरे देश में बर्बर दमन जारी है।

देश में सरकार बनने के साथ ही सामाजिक कुरीतियों, अन्धविश्वास, रूढ़िवादियों के खिलाफ लड़ने वाले और एक बेहतर लोकतांत्रिक देश बनाने का सपना देखने वाले सामाजिक कार्यकर्ता प्रो0 एम0एम0 कलबुर्गी और गोविन्द पन्सारे की हत्या ने मोदी सरकार की दिशा और नीति का खुलासा कर दिया था, असहिष्णुता की बहस ने पूरे देश में साहित्यकारों, रंगकर्मी संस्कृमियों ने अपने पुरूस्कार भी विरोधस्वरूप सरकार को वापस कर दिये थे। देश में बढ़ते हुए देश में बढ़ते हुए इस हमले ने धीमे-धीमे लोकतांत्रिक संस्थाओं और लोकतंत्र के बुनियादी मूल्यों एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर खुला हमला बोल दिया है, और मोदी सरकार के यह तीन साल लोकतंत्र को खत्म करने एंव तानाशाही को लाने के अभियान में बदल गये हैं।

एक तरफ विकास के बड़े दावे कालाधन से लेकर भ्रष्टाचार पर जीरो टालरेंस की बातें तो दूसरी तरफ गाय और गौरक्षा दल के नाम पर आम जनमानस के निजी ज़िन्दगी में खाने और पहनने के नाम पर हमला जिसके शिकार के रूप में अखलाक से लेकर पहलू खान निशाने पर आये तो अब स्वच्छता कार्यक्रम के नाम पर राजस्थान के प्रतापगढ़ जिले में नगरपालिका कर्मियों के द्वारा शौंच के दौरान महिलाओं की फोटो खीचनें पर विरोध करना कम्युनिस्ट नेता कामरेड जफर को अपनी जान देकर चुकाना पड़ा।

भूमि अधिग्रहण अध्यादेश का किसानों द्वारा भारी प्रतिरोध के बाद सरकार ने एक कदम तो पीछे खींचा लेकिन कापोरेट कर्ज से कराह रही डूबती बैंकों और फायदा पहुंचाने के लिये अचानक नोटबंदी का बम जनता के ऊपर फोड़ दिया गया यह नोटबन्दी जो कालाधन को समाप्त करने आतंकी नेटवर्क को तोड़ने, जाली करेंसी पर सर्जिकल स्ट्राइक की बड़ी-बड़ी बातें मुद्रा संकट के रूप में सामने आयी, जिसने एक तरह से देश में अघोषित आर्थिक आपातकाल लागू कर दिया मशहूर फोब्र्स पत्रिका के प्रधान सम्पादक स्टीव फोब्र्स ने सरकार के कदम की तीखी आलोचना करते हुये कहा कि ‘‘भारत ने अपनी

नकदी के साथ जो सलूक किया, वह घृणास्पद और अनैतिक है।’’ इस नोटबंदी ने देश की छोटी जोत की कृषि और छोटे व्यापार पर बड़ा हमला किया जिसका नतीजा यह निकला कि 2016 के आखेट में नोटबंदी सी पीड़ित करोड़ों लोगों के अनुभवों को दिखाने वाले आंकड़ों ने कृषि, निर्माण, सेवा, बुनिवादी ढांचों, रीयल स्टेट, व्यापार औ रनिर्यात जैसे क्षेत्रों में आर्थिक मंदी की बेहद खराब तस्वीर पेश की। आल इण्डिया मैन्यूफैक्चर्स आर्गनाइजेशन (एआईएमओ) ने सरकार को तीन सर्वेक्षण रिपोर्ट भेजी जिनमें कहा गया था, कि अतिलघु व लघु उत्पादन क्षेत्र में नोटबंदी के शुरूआती 34 दिनों के भीरत ही 35 फीसदी नौकरियां समाप्त हो गयी और आमदनी में 50 फीसदी की गिरावट हुई और अब सरकार के झूठे दावों का भाॅडा फूट गया है, जब जीडीपी में 2 प्रतिशत की गिरावट सार्वजनिक हुई है। यह नोटबंदी सीधे तौर जनता के धन पर खुला डाका साबित हुयी।

दलित समरसता और उत्थान की बात करने वाले भगवाधारी आतंकी गौरक्षादल के लोगों ने गुजरात माडल की असलियत ऊना काण्ड के बाद सामने ला दी है बर्बर अमानवीय हमले ने देश में नये दलित आंदोलन को साम्प्रदायिक कारपोरेट परस्त सरकार के खिलाफ दलित मुस्लिम एकता के आंदोलन ने भाजपा नीत गुजरात सरकार को मुख्यमंत्री तक बदलना पड़ा। हैदराबाद वि0वि0 में शोध छात्र रोहित वेमुला की संस्थानिक हत्या के बाद देश में छात्र आन्दोलन ने व्यापक स्वरूप ग्रहण किया और रोहित का सवाल देश भर में आम छात्र और जनवादी आन्दोलन की ताकतों का बड़ा सवाल बन गया, जिसका नेतृत्व जवाहर लाल नेहरू विश्व विद्यालय के जनवादी वामपंथी छात्र संगठनों ने किया, जिसका नतीजा जे0एन0यू0 को सरकार द्वारा बदनाम करने की नीति के रूप में आया तथा सरकार ने राष्ट्रद्रोह के मुदकमों में कन्हैया सहित कई छात्र नेताओं को जेलों में बंद कर दिया तथा भाजपा आर एस एस सहित उसके अनुषांगिक संगठनों ने जे0एन0यू0 शटडाउन तक का नारा दे दिया, आज भी जे0एन0यू0 के खिलाफ सरकारी साजिशें जारी हैं लेकिन जे0एन0यू0 ने रोहित वेमुला, नजीब से लेकर नोटबन्दी, किसान आन्दोलन, महिला, दलित उत्पीड़न तक आन्दोलनों की अगुवाई और भागीदारी जारी रख लोकतांत्रिक आन्दोलनों को नयी दिशा दी हैं और साथ ही शिक्षा के भगवाकरण निजीकरण के खिलाफ आन्दोलन को राष्ट्रव्यापी स्वरूप देने में अहम रोल अदा किया है।

देश में कर्ज और घाटे की खेती के चलते आत्महत्या कर रहे किसानों के द्वारा कर्जमाफी की मांग करने पर केन्द्रीय मंत्री इसे फैशन बता रहे। तो क्या यह मान लिया जाये कि प्रधानमंत्री मोदी द्वारा उ0प्र0 चुनावों में कर्ज माफी का वादा फैशन था, या फिर किसानों के द्वारा कर्ज माफी में की जा रही आत्महत्या फैशन है घाटे में जा रही कृषि को ठीक करने और 2022 तक किसानों की आमदनी को दूना करने की बात जुमला साबित होने के बाद तमिलनाडु के किसानों द्वारा पी0एम0ओ0 और जन्तर मन्तर पर कर्ज माफी तथा स्वामीनाथन समिति की सिफरिशों लागू करने की मांग पर शुरू हुये आन्दोलन ने धीरे-धीरे पूरे देश को राजस्थान, महारष्ट्र से लेकर मध्य प्रदेश तक अपनी चपेट में ले

लिया है और मध्य प्रदेश के मन्दसौर में किसान आन्दोलन में किसनों की शहादत ने आन्दोलन को नया आवेश दे दिया है, जिसका नतीजा यह है कि आने वाले समय में किसान आन्दोलन एक व्यापक आयाम ग्रहण कर सकता है जब बी0जे0पी0 नीत मोदी सरकार और नीति आयोग से लेकर स्टेट बैंक के मुखिया तक कर्ज माफी को गलत नीति करार दे रहे हैं तो उसी दौर में भारत का कार्पोरेट ऋण कई वर्ष पूर्व ही देश के जी0डी0पी0 के 50 प्रतिशत की सीमा रेखा को पार कर चुका है, पिछला वर्ष समाप्त होने तक बैंकिंग क्षेत्र की 16 प्रतिशत परिसम्पत्ति एन0पी0एन0 के बदल चुकी है। देश के दो सबसे बड़े पूंजी पति मुकेश अम्बानी पर 1.50 हजार करोड़, अडानी ग्रुप 72,000 हजार करोड़ तो वेदांता गु्रप के सेसा स्टालाइट का कर्ज 1961 हजार रोड़ से बढ़कर 2014 के बाद 80568 हजार करोड़ रूपया से भी ज्यादा हो गया। इनमें से किसी एक का भी कर्ज किसी राज्य के समस्त किसानों के कर्ज से ज्यादा है। इसके बावजूद बड़े कार्पोरेट धरनों का एन0पी0ए0 का 1.50 लाख करोड़ रूपया डूबते कर्ज के नाम पर माफ कर दिया गया था राइट आफ कर दिया गया तो दूसरी तरफ विजय माल्या जैसे बड़े बकायेदार सरकारी संरक्षण में पैसा गबन कर विदेश भाग गये।

इस कार्पोरेट परस्त नीति का विरोध करने पर मोदी के मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमनियम ने हाल ही में इस नीति का बिल्कुल स्पष्ट कर दिया उन्हांेने कहा कि वह समय-समय पर सरकार बड़े कार्पोरेट कर्जदारों को उबारने का काम करें। भले ही इससे सरकार पर क्रोनी पूंजीवाद का आरोप लगे, उन्होंने कहा कि बड़े पंूजीधरानों के कर्ज माफ करने में सरकार को समर्थ होना होगा, क्योंकि पूंजीवाद ऐसे ही चलता है। लोग गलजियां करंगें उन्हें माफ करना है? यह दोहरी नीति जो किसानों को कर्ज माफी पर अनुशासन की घुट्टी तो कार्पोरेट के लिए बैंकों की थैली खोलना सीधे तो पर जनता से गद्दारी है।

उ0प्र0 में योगी सरकार आने के बाद लगातार जनता पर हमले बढ़े हैं सहारपुर में दलितों पर सामंती हमलों में हमलावरों को खुला संरक्षण और भीम आर्मी के नेताओं कार्यकर्ताओं पर फर्जी आपराधिक मुकदमें लाठी गोली, जेल के बावजूद इस मुद्दे पर जनता का प्रतिवाद और संघर्ष जारी है। इन प्रश्नों पर और लावि00ि छात्र कल्याण का पैसा गलत इस्तेमाल करने के खिलाफ मुख्यमंत्री को काला झण्डा दिखाने के प्रतिरोध को भी सरकार बर्दाश्त नहीं कर पा रही है और पैनिक रियेक्शन में छात्र छात्राओं की गिरफ्तारी लाठी चार्ज और फर्जी मुकदमा कर जेल भेजने व वि0वि0 से उनके निष्कासन तक कराने पर आमादा हो जा रही है। उ0प्र0 में मीट बंदी, मन्दिर, गौरक्षा जैसे तमाम विवादित मुद्दों को गरमाने के बावजूद प्रदेद्या में योगी सरकार विफल साबित हो रही है, तीन महीने के कार्यकाल में ही सरकार के खिलाफ लोग सड़क पर उतरने लगे है बेतहाश अपराधों में वृद्धि अपराधी माफिया राज ने आमजन मानव को हिला कर रख दिया अै और खासतौर पर महिलाओं के खिलाफ हिंसा और अपराध में वृद्धि हुई है।

साथियों ऐसे समय में जब देश में खाने-पीने पहनने से लेकर शिक्षा स्वास्थ्य तक पर कोड लागू हो रहा है तब जिहाद घर वापसी गौरक्षा तीन तलाक आतंकवाद कश्मीर, सिविल कोड, राममन्दिर जैसे ऐजेण्डों और अन्ध राष्ट्रवाद के नाम पर साम्प्रदायिक उन्माद एवं धुव्रीकरण जारी है। तो दूसरी तरफ देश पर मजदूरों, किसानों छात्र नौजवानों के नेतृत्व में लोकतांत्रिक आन्दोलन के इस दौर में सरकार और बीजेपी ने मीड़िया के बड़े हिस्से को अपने झूठ का सहारा बना लिया है जो उसके प्रचार प्रसार में लगा है।

जनवादी आन्दोलन भी खड़े हो रहे हैं, विभिन्न विपक्षी राजनैतिक दल चुनाव के माध्यम से राजनैतिक बदलाव करने की सोंच रहे हैं, लेकिन यह उनकी भूल है, उन्हें समझना होगा कि यह फासीवाद का हमला है जो लोकतंत्र के हर हिस्से को कमजोर करेगा और चुनावी प्रक्रिया से लेकर न्याय पालिका तक को पंगु और आस्थिर कर देगा तब ऐसे दौर में ऊपरी राजनैतिक गठबन्धन या चुनाव आरएसएस बीजेपी जैसी ताकतों का मुकाबला नहीं किया जा सकता है, ऐसे समय बीजेपी के हिन्दू राष्ट्रवाद का मुकाबला शहीदे आजम भगत सिंह, और डा0 अम्बेडकर के सपने का भारत बनाने के विचार से किया जा सकता है। हमें वैकल्पिक कृषि नीति, प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से प्रेरित प्रगतिशील राष्ट्रवाद के नारे साथ जनता के बुनियादी प्रश्नों पर खड़ा होकर आन्दोलन का निर्माण करना होगा इस लड़ाई को कोई राजनैतिक धारा य कहे कि हम अकेले मुकाबला करेंगें तो आज के दौर में बड़बोलापन होगा, हमें इन लोकतंत्र विरोधी ताकतों के खिलाफ देश को बचाने के लिये सच्चे समाजवादियों अम्बेडकर वादियों, वामपंथी, प्रगतिशील, जनवादी ताकतों को एकजुट करना होगा और सरकार की जनविरोधी, कार्पोरेट परस्त नीतियों के खिलाफ जन आन्दोलनों को विकसित करना होगा। हमको समझना होगा कि मन्दसौर के किसान आन्दोलन ने भाजपा के सारे विवादित राजनैतिक मुद्दों को दरकिनार कर किसानों के मुद्दो को राजनीति के केन्द्र में ला दिया है।

(लेखक के विचार पूर्णत: निजी हैं , एवं instantkhabar.com इसमें उल्‍लेखित बातों का न तो समर्थन करता है और न ही इसके पक्ष या विपक्ष में अपनी सहमति जाहिर करता है। इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है। )

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