समाजवादी चिन्तक दीपक का पत्र प्रक्षेपास्त्र

लखनऊ: समाजवादी चिन्तक और समाजवादी चिन्तन सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने समाजवादी पार्टी के प्रमुख महासचिव रामगोपाल यादव पर पत्र-प्रक्षेपास्त्र से प्रहार करते हुए सपा को लगातार मिल रही हार के लिए रामगोपाल जी को सर्वाधिक जिम्मेदार बताया है। श्री मिश्र ने प्रोफेसर की एकाधिकारवादी सोच व कार्यप्रणाली को आत्मघाती बतलाया और कहा कि रामगोपाल जी प्रतिबद्ध कार्यकर्ताओं की जगह पूंजीवादी लोगों को अधिक तरजीह दी। उन्होंने समाजवादी विचारधारा व पार्टी के स्वभाविक प्रवाह को भी काफी नुकसान पहुंचाया है। पत्र में श्री मिश्र ने श्री रामगोपाल पर श्री अखिलेश को भरमाने और नैतिक तकाजों को ध्वस्त करने का भी आरोप लगाया है। श्री मिश्र ने कहा कि पार्टी को एक करने का प्रयास होना चाहिए। समाजवादी विचारों पर चलते हुए सतत् संघर्ष कर ही सपा दोबारा सत्ता पर वापस आ सकती है, बैसाखी के बल पर नहीं। मुलायम-शिवपाल समेत मूल कार्यकर्ताओं का अपमान व उपेक्षा बंद होना चाहिए।

आदरणीय रामगोपाल जी,

सादर अभिवादन,

मान्यवर,

आपने पूर्ववर्ती पत्र का उत्तर नहीं दिया। मौन साध लिया, मूक हो गए। आपका मौन स्वीकारिता का परिचायक है। “मौनं स्वीकृति लक्ष्णम्।“, दिल्ली के पत्रकारों में आजकल चर्चा है कि समाजवादी पार्टी (सपा) को वैचारिक दृष्टिकोण से गत 7-8 वर्षों में काफी आघात पहुंचा है। इसकी सांगठनिक वैचारिक ताकत क्षींण हुई है जितने विचारवान संगठक जैसे नेता या चेहरे रहे हैं, कुछ को “राम“ ले गए और जो इत्तफाकन बचे, उन्हें “रामगोपाल“ ले गए। सर्वश्री जनेश्वर मिश्र, रामशरण दास, मोहन सिंह, बृजभूषण तिवारी सदृश नक्षत्र “राम“ को प्यारे हो गए और सेकुलर थिंकर कमाल फारूखी, प्रतिबद्ध समाजवादी डा० सुनीलम् व हमारे जैसे दीपकों को एक के बाद एक आपने ग्रस लिया।

“सूरज“ को रोशनी से अदावत जरूर है

इसने किसी चिराग को जलने नहीं दिया।“

निःसंदेह, यही कारण है आज समाजवादी पार्टी विचार जगत में उस मुकाम पर नहीं है जहाँ कभी थी या जहाँ होना चाहिए। आप सरीखे “सूरज“ की ताकतवर नियामक उपस्थिति के बावजूद अंधेरा व अंधापन गहराता जा रहा है। आप ने हम सभी के साथ घोर अन्याय तो किया ही साथ ही साथ स्वयं की भी प्रदत्त व स्वघोषित भूमिका के साथ न्याय नहीं किया। आप बड़े हैं, मैं आपका सम्मान करता हूँ, इसलिए आपको अन्यायी नहीं कर सकता।

“जी बहुत चाहता है सच बोलें

क्या करें हौसला नहीं होता“

महोदय, जहाँ तक मेरी स्मृति साथ दे रही है, आपके ही सशक्त हस्ताक्षर से भाई अखिलेश प्रदेश अध्यक्ष के दायित्व से पदच्युत हुए थे। यदि आपके मन में भाई अखिलेश के प्रति अगाध, अज्ञेय, अपार व अप्रतिम प्रतिबद्धता थी तो आप पत्र पर हस्ताक्षर नहीं करते या नेताजी के समक्ष ही सविनय अवज्ञा कर देते। नेताजी के सामने अपना तर्क रखते। नेताजी का आप पर अतिशय अंधविश्वास रहा है, वो आपकी बात कदापि न टालते किन्तु आपने पत्र जारी कर दिया और पत्र-निर्गमन के बाद “विधवा-विलाप“ व “वितंडा“ करने लगे। इससे तत्कालीन राजनीतिक परिस्थितियाँ काफी जटिल, भ्रामक व भयावह हो गईं। विपक्षियों व विरोधियों को समाजवादी नेतृत्व पर पदलोलुपता का निरर्थक आरोप लगाने का मौका मिल गया। समूची सपा के साथ-साथ नेताजी, शिवपाल जी व भाई अखिलेश की भी लोकछवि लांछित हुई। आपका मौन पूरे दल पर भारी पड़ा। नेताजी के इस बयान के बाद कि निर्वाचित विधायक ही मुख्यमंत्री का चयन करेंगे, के पश्चात् भी नेताजी के “लक्ष्मण“ शिवपाल जी ने अखबार में वक्तव्य दिया कि वे स्वयं अखिलेश जी के नाम का प्रस्ताव मुख्यमंत्री के लिए करेंगे। उन्होंने यहाँ तक कहा कि स्टाम्प पेपर पर लिख लीजिए अखिलेश जी ही सीएम बनेंगे। मेरे जैसे अकिंचन व्यक्ति ने उस झंझावत के बीच कहा कि अखिलेश जी ही मुख्यमंत्री पद के सपा के चेहरे होंगे। चेहरा एक-दो दिन में नहीं बनते। कितनी नदियाँ मिलती है तब कोई सागर बनता है। नदियों को बचाना समन्दर की जिम्मेदारी होती है, इसलिए महानगर बादल के माध्यम से नदियों को पानी देता है। नदियां सूखेंगी तो समन्दर भी समन्दर नहीं रह जाएगा।

सपा के किसी भी व्यक्ति ने कभी नहीं कहा कि अखिलेश जी सीएम नहीं होंगे फिर भी कुछ मूढ़ लोग चिल्लाते रहे कि “चेहरा घोषित करो-चेहरा घोषित करो“। बेवजह भ्रम फैलता रहा और आपने भ्रम के स्याह अंधेरे के मध्य ऐसा कोई कार्य नहीं किया जिससे परिस्थितियाँ सुधरे। यदि आप बड़े होने का दायित्व बड़प्पन के साथ निभाते तो तस्वीर इतनी वीभत्स न होती। अपनी समाजवादी पार्टी की इतनी बुरी पराजय नहीं होती।
श्रीमन्, हमारे दल का इतिहास गवाह है कि सभी प्रमुख राष्ट्रीय महासचिव समाजवादी विचार व पार्टी को बढ़ाने के लिए उत्तर प्रदेश के बाहर के प्रांतों की अनवरत व अनगिनत यायावरी करते रहे हैं, चाहे वे बाबू कपिलदेव जी हों या मोहन सिंह जी, परिणामस्वरूप नेताजी की सफल सभाएं होती थी और सपा के प्रत्याशी कर्नाटक, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश में निर्वाचित होते रहे। आपने अन्य प्रदेशों का प्रवास तो मीलों दूर, उत्तर प्रदेश के भी सभी जिलों की प्रवासी-यात्रायें नहीं की। वह प्रवाह व परम्परा कुंद व कुंठित हो गई। फलतः, आज उत्तर प्रदेश के बाहर सभासद व प्रधान तक के लाले पड़े हुए हैं। क्या यह सच नहीं है कि आज पार्टी के मूल कार्यकर्ताओं के ऊपर आप द्वारा पोषित व संरक्षित दल-बदल की विधा के सिद्धपुरूष नरेश अग्रवाल व किरणमय नंदा सदृश पूंजीपतियों का एक “गिरोह“ काबिज हो चुका है जिसके कारण कार्यकर्ताओं का बड़ा समूह अपने भविष्य को लेकर सशंकित व उदासीन है। अधिकांश कार्यकर्ता उदासीन न होते तो सपा भले ही सरकार न बना पाती पर कम से कम 145 सीटें बिना बैसाखी के जीतती।

आप बड़े हैं, मैं आपका सम्मान करता हूँ इसलिए यह कदापि नहीं कह सकता कि इधर हो रही लगातार पराजयों का मुख्य कारण आपकी नकारात्मक सोच व कार्यप्रणाली है। पर यह सत्य है कि गत 7-8 वर्षों में जैसे-जैसे दल में आप मजबूत होते गए, वैसे-वैसे दल कमजोर होता गया, आप विस्तृत होते गए दल उसी अनुपात में संकुचित होता गया।

श्रीमन्, आपने दर्पयुक्त अवमानकारी भावभंगिमा में कहा कि “अखिलेश चाहे भी तो राष्ट्रीय अध्यक्ष पर नहीं छोड़ सकते।“ छोटे लोहिया जनेश्वर मिश्र जी का कद व वय श्रद्धेय नेताजी से बड़ा था। यह कथन स्वयं नेताजी का है। राष्ट्रीय उपाध्यक्ष जनेश्वर जी ने भी कभी राष्ट्रीय अध्यक्ष नेताजी के नाम को मीडिया में उस तरह से नहीं लिया जिस तरह से आप भाई अखिलेश जी का लेते है। आपका लहजा प्रतिबिम्बित करता है गोया राष्ट्रीय अध्यक्ष जी आपके कर-कंदुक हों। महासचिव का काम अध्यक्ष का गुरुत्व व गरिमा बढ़ाना है न कि उसकी सर्वोच्चता का अवमूल्यन करना जो आप बार-बार करते रहे हैं। तथैव, आप बड़े हैं, मैं आपका सम्मान करता हूँ। आदरणीय शिवपाल जी ने आपको “शकुनि“ की संज्ञा दी। नेताजी ने भी शिवपाल जी के कथन पर अपनी स्वीकृति की मुहर लगाई, लेकिन मुझे आपको “शकुनि“ की उपाधि देने पर घोर आपत्ति है, शकुनि ने कभी भी पिता-पुत्र के पवित्र रिश्ते के मध्य रार-दरार पैदा करने का कुत्सित षडयंत्र नहीं किया। पिता के लिए त्याग करने वाले श्रवण कुमार का यह देश देवताओं से भी बढ़कर सम्मान करता है जबकि श्रवण कुमार न राजा थे न ऋषि।

मान्यवर, आपने कहा कि श्री शिवपाल हवा में है। आपके यह कथन आपके “दृष्टि-दोष“ का परिफलन है। आपके सर्वतोन्मुखी मुखर विरोध के बावजूद उन्हें 1 लाख 26 हजार 8 सौ 34 वोट मिले और वे 52 हजार से अधिक मतों से जीते। मैं मनसा-वाचा-कर्मणा समाजवादी हूँ, शिवपाल जी के साथ इसलिए हूँ मुझे लगता है कि उनके साथ काफी अन्याय हुआ है। आप भारतीय राजनीति में किसी भी दल के प्रथम महासचिव, राज्यसभा दल के नेता व संसदीय बोर्ड के सचिव होंगे जिसने अपने ही दल के प्रत्याशी को हराने के लिए काम किया और मुंह की खाई। आपका नाम इतिहास के पन्नों पर सबक के रूप में लिखा जाएगा। राजनीति में परम्परा रही है कि पराजय के बाद जिम्मेदार पद पर बैठे नेता अपने पद से इस्तीफा देते हैं। पहले लोकसभा निर्वाचन, फिर विधानसभा तत्पश्चात् दिल्ली नगर निगम के चुनावों में पार्टी बुरी तरह हारी परन्तु किसी ने भी अपने पद से त्याग-पत्र नहीं दिया। कम से कम दिखाने के लिए ही सही दोनों प्रांतों के अध्यक्षों को स्वयं त्यागपत्र देना चाहिए। लेकिन लगता है सिद्धांतो के साथ-साथ नैतिक तकाजों से भी अब दल का सरोकार पूर्णतया टूट चुका है। यह होना जितना दुःखद है उससे अधिक दुर्भाग्यपूर्ण आपकी मौजूदगी के रहते हुए होना है। हारे उत्तर प्रदेश व दिल्ली में, हटाए गए आसाम के प्रदेश अध्यक्ष श्री हाफिज चौधरी को। इलाज की जरूरत हाथों को है और दवा हो रही है पैरों की।

“कैसे मसीहा हो, बीमार का ख्याल अच्छा है,

सब बिगड़ा जाता है कहते हो हाल अच्छा है।“

श्रीमान, जगत में आपकी ख्याति पढ़े-लिखे व्यक्ति की है। लोग आपके नाम के पूर्व किसी विश्वविद्यालय में एक भी क्लास पढ़ाए बिना ही प्रोफेसर लगाते है। विधानसभा चुनाव के दौरान नरेन्द्र मोदी जी उत्तर प्रदेश समेत भाजपा के कई स्टार प्रचारक राममनोहर लोहिया व समाजवाद का नाम लेकर सपा पर प्रहार-दर-प्रहार करते रहे, आपने एक बार भी उनका प्रत्युत्तर नहीं दिया। एक बार बोले भी तो बोले कि एक नेता उत्तर प्रदेश में जहाँ जायेंगे पीटे जायेंगे। ये मार-पीट करने व कराने की बात आप जैसे वरिष्ठ नेता (जो पार्टी के नियंता व नियंत्रक की भूमिका में हो), द्वारा कहने से पार्टी की साख बेहद गिरी।

हे महामना, आप जब पार्टी-संविधान की दुहाई देते है तब मुझे इटली के तानाशाह एवं एकाधिकारवादी सोच के नेता मुसोलिनी की याद आ जाती है जो कदम-दर-कदम संविधान को कदमों तले मसलते हुए संविधान की दुहाई देते थे जो इटली कभी रोम के रूप में दुनिया का सिरमौर होता था, आज पहचान के लिऐ मोहताज है हमारी समाजवादी पार्टी व पक्ष की तरह, कभी हम भारतीय राजनीति की दिशा तय करते थे आज अस्तित्व के लिए कभी कांग्रेस तो कभी बसपा की बैसाखी थामने के लिए अभिशप्त हैं। हमारे दल की स्थिति उस व्यक्ति जैसी हो गई है जो सारे पेड़ काटकर साया तलाशता है।

“खुद अपने हाथ से काटकर सारे शज़र

अजीब शख्स हैं साया तलाश करते हैं।

महोदय, नेताजी व शिवपाल जी की उपेक्षा एवं आपकी हठधर्मिता की कीमत सभी चुका रहे हैं। पार्टी को एक करने का प्रयास शुरू करें, अपमान सहकर भी आपके पीछे खड़ा रहूंगा।

दूसरा “मुलायम“ व दूसरा “शिवपाल“ बनाने में पार्टी को कम से कम चालीस साल लगेंगे। पता नहीं वातानुकूलित कारों और अर्जित अकूत सम्पत्ति के कारण कुख्यात “समाजवादी“ बन पायेंगे भी कि नहीं। मुझे संदेह है। जब नेताजी व शिवपाल जी का कोई विकल्प नहीं, तो बेहतर है इन्हें ससम्मान साथ लेकर चलें।
“आज तूफ़ान से बचने की कोई राह तो है

कल न तदबीर चलेगी न मुकद्दर होगा।“

इत्यलम्,

आपका,

दीपक मिश्र