सूफ़िया किराम ने दुनिया के सामने धर्म का प्रचार करने के लिए सुन्नते रसूल का अहसन तरीका पेश किया। उन्होंने भारतीय सभ्यता और संस्कृति अपनायी और लोगों प्यार, मुहब्बत और ख़ुलूस का बर्ताव किया और आपके पास आने वाले से उसके धर्म और जाती न पूछते हुए उसके दुःख दर्द को दूर करने की कोशिश की। यही कारण है कि उनके किरदार और अख़लाक़ की बदौलत लाखों की संख्या में लोगों ने इस्लाम क़ुबूल किया।

उन्होंने मुसलमानों के पिछड़ेपन का ज़िक्र करते हुए कहा कि हमारी इस बुरी दशा का कारण कुरान व हदीस की शिक्षाओं का पालन न करना है। सूफ़ी विद्वानों ने प्रेम, भाईचारे, और मानव सेवा का जो पाठ पढ़ाया है उस पर अमल करके ही हम सफलता की राह पर अग्रसर हो सकते हैं।

उक्त विचार हजरत मौलाना सैयद मुहम्मद अशरफ किछौछवी (संस्थापक अध्यक्ष आल इंडिया उलमा व मशाईख बोर्ड) ने कलियर शरीफ में अल्जमेतुल अशरफ़ीअ जियाए मखदूम के संगे बुनियाद के अवसर पर जलसा को संबोधित करते हुए व्यक्त किया।

मौलाना किछौछवी ने कहा कि हमारी जिम्मेदारी है कि बुज़ुर्गानेदीन ने इस्लाम की जिन शिक्षाओं को हम तक पहुँचाया है

उसपर अमल करें और अपने किरदार व अमल द्वारा इस्लाम की सही तस्वीर पेश करें। हज़रत ने ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ का कथन '' मुहब्बत सबके लिए नफरत किसी से नहीं '' का हवाला देते हुए कहा कि हमें शांति, प्रेम और भाई चारा का वातावरण बांये रखना है और देश के विकास और खुशहाली में में अपना रोल अदा करना है।

कारी मुशर्रफ हुसैन ने कहा कि मदरसे दीन का किला हैं और दीं की तब्लीग में उनका महत्वपूर्ण चरित्र है। मदरसों ने बुज़ुर्गाने दीं के मिशन को जारी रखा है। उन्होंने आशा व्यक्त की कि इन शा अल्लाह आने वाले समय में अल्जमेतुल अशरफ़ीअ जियाए मखदूम भी दीं व सुन्नियत के प्रचार व प्रसार में अपना महत्वपूर्ण रोल अदा करेगा।

सभा का आगाज़ करि इरशाद की तिलावत से हुआ, सञ्चालन कारी इरफान अशरफी ने अंजाम दिया। करि मुर्सलीन ने नात का नज़राना पेश किया। कारी आसिम अशरफी (व्यवस्थापक) ने आने वाले मेहमानों को धन्यवाद् ज्ञापित किया। जलसा में अली शान, आज़ाद साबरी, अली खान, इकरार खान आदि के अलावा बड़ी संख्या में लोग मोजूद रहे। सभा का समापन सलात व सलाम और देश में समृद्धि और शांति की विशेष दुआ पर हुआ।