नई दिल्‍ली: रविवार से शुरू होने जा रहे चीन के 'वन बेल्‍ट वन रोड' सम्‍मेलन में भारत के शामिल होने की संभावना नहीं है. सूत्रों के मुताबिक भारत के अपने किसी भी प्रतिनिधि को उसमें हिस्‍सा लेने के लिए नहीं भेजेगा. यानी कि चीन के अन्‍य देशों के साथ मिलकर पोर्ट, रेलवे और सड़क के संपर्क विकसित करने की महत्‍वाकांक्षी योजना का बायकॉट करने का भारत ने फैसला किया है. दरअसल इस प्रोजेक्‍ट का एक हिस्‍सा पाक अधिकृत कश्‍मीर (पीओके) से होकर गुजरता है. इसे चीन और पाकिस्‍तान के बीच (चीन-पाकिस्‍तान इकोनॉमिक कॉरीडोर) भी कहा जाता है. भारत शुरू से इसका विरोध करता रहा है क्‍योंकि उसका मानना है कि पीओके पाकिस्‍तान का नहीं बल्कि भारत का हिस्‍सा है.

हालांकि इस फोरम के शुरू होने में अब 24 घंटे का ही समय रह गया है लेकिन विदेश विभाग ने शनिवार को इस बारे में किसी भी प्रकार की कोई आधिकारिक टिप्‍पणी नहीं की. भारत के बायकॉट की बात इस वक्‍त उभर कर आई है जब एक दिन पहले ही शुक्रवार को नेपाल ने भी फोरम में शिरकत करने के लिए हामी भर दी. श्रीलंका और पाकिस्‍तान पहले से ही इसमें हिस्‍सा लेने के लिए तैयार हैं. इसके साथ ही अमेरिका ने भी यू-टर्न लेते हुए इसमें शामिल होने पर सहमति दे दी है.

इससे पहले एशिया को यूरोप से जोड़ने वाली चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग की महत्वाकांक्षी 'वन बेल्ट वन रोड' पहल में शामिल होने के लिए नेपाल ने शुक्रवार को चीन के साथ करार पर हस्ताक्षर कर दिये. यह कदम भारत के लिए चिंता पैदा कर सकता है. बीजिंग में 14 और 15 मई को होने वाली ‘वन बेल्ट वन रोड’ (ओबीओआर) फोरम से पहले समझौते पर दस्तखत किये गये हैं. चीन ने पिछले साल के आखिर में नेपाल को ओबीओआर पर मसौदा प्रस्ताव भेजा था. महीने भर लंबे परामर्श के बाद नेपाली पक्ष ने कुछ बदलावों के साथ बीजिंग को मसौदा वापस भेज दिया था. नेपाल का चीन के साथ करार पर हस्ताक्षर करना भारत के लिए चिंता पैदा करने वाला है.

भारत ने बीजिंग की इस पहल का विरोध किया है. भारत को ओबीओआर के तहत चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर को लेकर आपत्ति है क्योंकि इसके पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) से गुजरने का प्रस्ताव है. परंपरागत रूप से नेपाल के साथ अच्छे आर्थिक और राजनीतिक संबंध रखने वाले भारत को पिछले कुछ सालों में चीन से लगातार स्पर्धा का सामना करना पड़ा है. चारों तरफ जमीनी सीमा से घिरा नेपाल आयात के मामले में प्रमुखता से भारत पर निर्भर है और समुद्री संपर्क के लिए पूरी तरह भारतीय बंदरगाहों पर आश्रित है.