तारकेश्वर मिश्र

पाकिस्तान की नापाक हरकतें खत्म होने की बजाय दिनों-दिन क्रूर और वीभत्स होती जा रही हैं। भारत सरकार के लाख दावों और पाकिस्तान से बेहतर रिशतों की दुहाई की बावजूद पाकिस्तान भारत की सीमा और देश के भीतर अशांति फैलाने की हरसंभव कोशिश कर रहा है। पिछले दिनों पाकिस्तान की ‘बॉर्डर एक्शन टीम’ (बैट) ने गश्त लगाते भारतीय सैनिकों और चैकियों पर आटोमैटिक हथियारों और मोर्टार के गोलों से हमला किया। पाकिस्तान की नापाक फौज और आतंकियों की इस ‘खूनी टुकड़ी’ ने हमारे दो जवानों को ‘शहीद’ कर दिया। उनके पार्थिव शरीर को न केवल क्षत-विक्षत किया गया, बल्कि उनके सिर भी काट दिए गए।

यह खबर सुनते ही कारगिल के कैप्टन सौरभ कालिया, लांसनायक हेमराज और सुधाकर सिंह, कांस्टेबल मनदीप के चेहरे आंखों के सामने तैरने लगे। अब सेना के जेसीओ नायब सूबेदार परमजीत सिंह और बीएसएफ की 200वीं बटालियन के हेड कांस्टेबल प्रेमसागर सरीखे जवानों को यह अमानवीय यातना झेलनी पड़ी है। हालांकि हमारी सेना ने रात में ही पाकिस्तान की दो चैकियां बर्बाद कर दीं और सात सैनिकों को मार गिराया। लेकिन इससे भी तसल्ली होने वाली नहीं है। माना कि भारत भी मुंहतोड़ उत्तर देने में सक्षम है परन्तु इससे भी बढ़कर प्रश्न ये उठ खड़ा होता है कि पाकिस्तान की हिम्मत कैसे होती है कि वह सीमा के भीतर घुसकर हमारे फौजियों के सिर काट डाले?

पाकिस्तान की इस नापाक, वीभत्स और क्रूर हरकत के बाद अहम प्रश्न यह है कि आखिरकर पाकिस्तान की नापाक हरकतें कब तक बर्दाश्त की जाती रहेंगी? इस पूरे घटनाक्रम की हमारे रक्षा मंत्री अरुण जेटली ने दो लाइनों में निंदा की है और फिर रटा-रटाया वाक्य-‘शहीदों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा।’ अब यह वाक्य नहीं सुनना है। कितनी बार सुन चुके हैं और फिर भी शहादतों के सिलसिले जारी हैं। आखिर हम कब तक पाकिस्तान की घृणित करतूतों को देखते और सहन करते रहेंगे? कितना संयम है हमारी सरकारों में! देश की जनता इस बात को लेकर आक्रोशित है कि आखिरकर कब तक भारत माता के सपूत सीमा पर अपनी जान गंवाते रहेंगे और हमारी सरकार कड़ी निंदा का रटा-रटाया अभिनय करती रहेगी।

आंकड़ों के आलोक में गत एक वर्ष में पाकिस्तान की ओर से 250 से ज्यादा बार संघर्ष विराम का उल्लंघन किया जा चुका है। क्या ये जंग के सूचक नहीं हैं? भारत सरकार और सेना ने क्या किया? बेशक हमारी सेना विश्वस्तरीय है, आधुनिक है, हथियारों से सुसज्जित है, रणनीतियों में माहिर है और सक्षम, बहादुर सैनिकों की फौज है। तो आखिर कब तक हमारे सैनिक ‘सरकलम’ होते रहेंगे या अपनी मृत देह को भी नुचवाते और कटवाते रहेंगे? इन सवालों पर फैसले कब होंगे? पाकिस्तान ने 1951 में जिनेवा संधि पर हस्ताक्षर किए थे। उसके मुताबिक, किसी युद्धबंदी या मारे गए, पकड़े गए सैनिक अथवा नागरिक के साथ अमानवीय सुलूक नहीं किया जा सकता। पाकिस्तान इस संधि का भी लगातार उल्लंघन करता रहा है।

क्या अब भारतीय सेना ऐसी बर्बरता का कोई निर्णायक बदला लेगी? क्या अब बैट जैसी फौज और आतंकियों की कुख्यात टीम को ही नेस्तनाबूद करना पड़ेगा? कुछ पुराने जनरल फौजियों का साफ मानना है कि अब पाकिस्तान की मौत ही एकमात्र विकल्प रह गया है। पाकिस्तान को बर्बाद कर देना चाहिए। क्या यह इतना आसान और व्यावहारिक है? इन सवालों की पड़ताल भारत सरकार और सेना ही करेंगी। बेशक पाकिस्तान भी एक परमाणु संपन्न देश है, लेकिन वह आंतरिक विरोधाभासों से बहुत कमजोर हो चुका है। फौज अफगानिस्तान सीमा पर तैनात है, तो दूसरी तरफ कश्मीर सरहद पर सक्रिय है।

किसी भी दृष्टिकोण से युद्ध को उचित नहीं माना जाता। इसमें जन एवं धन हानि के साथ-साथ ही ये कड़वाहट को बढ़ाता है। किन्तु जिस तरह किसी बीमारी के दवा से ठीक नहीं होने पर सर्जरी जरूरी हो जाती है ठीक उसी तरह यदि शत्रु पक्ष साधारण तौर-तरीकों से न माने तब युद्ध ही एकमात्र विकल्प बच रहता है। पाकिस्तान के साथ सटी सीमा पर जो माहौल इन दिनों चल रहा है उसको देखते हुए अब ये कहा जा सकता है कि बड़ी न सही परन्तु कारगिल की तरह कोई सीमित लड़ाई तो लडनी ही पड़ेगी।

कश्मीर घाटी के कुछ जिलों के जो हालात पता चल रहे हैं उनसे भी आम भारतीय क्षुब्ध है तथा मोदी सरकार और भाजपा की नीति और नीयत पर प्रश्नचिन्ह लग रहे हैं। ये बात पूरी तरह सही है कि हमारी सेना पाकिस्तान की प्रत्येक हरकत का मुंहतोड़ जवाब देती है। सुरक्षा मामलों के जानकार ये भी जानते हैं कि भारतीय सैनिक भी गाहे-बगाहे नियंत्रण रेखा लांघकर पाकिस्तानी खेमे में मारकाट कर आते हैं जिसका प्रचार करना कूटनीतिक लिहाज से चूंकि मुनासिब नहीं होता इसलिए पूरी तरह चुप्पी साध ली जाती है परन्तु जब दुश्मन हमारे घर में घुसकर हैवानियत दिखाता है तो उसकी खबर फैलने से पूरा देश गुस्से में उबलते हुए सरकार के पुरुषार्थ पर टीका-टिप्पणी करने लगता है। कश्मीर घाटी में सिर उठाते अलगाववादियों के साथ ही सीमा पर लगातार बने तनाव के मद्देनजर अब ये जरूरी लगने लगा है कि पाकिस्तान की बांह एक बार मरोड़ी जाए। इसके लिए दो-चार चैकियों को नष्ट करना और पांच-दस फौजियों को मार गिराना ही काफी नहीं है।

पाकिस्तान के भीतरी हालातों को देखते हुए ये मुनासिब समय है जब भारतीय फौजें बड़े पैमाने पर सर्जिकल स्ट्राईक करें। औपचारिक रूप से युद्ध लडने की जरूरत भले न हो क्योंकि देश की अर्थव्यवस्था और हथियार, गोला-बारूद आदि का भंडारण इसकी कितनी अनुमति देता है ये तो सरकार में बैठे जिम्मेदार लोग ही बता पाएंगे परन्तु मिनी वार या श्रृंखलाबद्ध सर्जिकल स्ट्राईक तो की ही जा सकती है। कश्मीर घाटी में आयातित आतंकवाद तथा सीमा पार से अलगाववादियों को मिलने वाली मदद पर रोक लगाने के लिए भी यही उचित लगता है कि पाकिस्तान को भी थोड़ा उलझाया जावे जिससे वह रक्षात्मक होने बाध्य हो सके।

पिछले 15 अगस्त को लालकिले की प्राचीर से नरेन्द्र मोदी ने बलूचिस्तान की आजादी का हल्का सा समर्थन कर जो कूटनीतिक हलचल मचाई थी उसकी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा हुई तथा दुनिया भर में फैले बलूचों ने भारत की पहल का स्वागत किया लेकिन वह मुहिम ठंडी पड़ गई। पाकिस्तान रुक-रुक कर जिस तरह की नीच हरकतें करता रहता है उन्हें रोकने के लिए छोटा या सीमित ही सही परन्तु युद्ध ही एकमात्र रास्ता बच रहता है।

पाकिस्तान की रोज-रोज की नापाक हरकतों के बरअक्स सवाल यह भी है कि हम अभी तक पाकिस्तान को ‘आतंकी राष्ट्र’ घोषित क्यों नहीं कर पाए? जबकि संसद में ऐसा एक बिल भी पेश किया गया था। बेशक वह बिल निजी हैसियत का था, लेकिन उस पर बहस तो हो सकती थी। हम अंतरराष्ट्रीय ताकतों की ओर ताकते रहे हैं। दूसरे, पाकिस्तान अभी तक हमारा सबसे पसंदीदा देश क्यों है? क्या दुर्भाग्यपूर्ण विरोधाभास है! हम सिंधु जल के बंटवारे पर पाकिस्तान को सबक सिखाना चाहते थे, लेकिन उसका मामला भी अधर में लटका हुआ है।

पाकिस्तान की ‘खूनी टुकड़ी’ बैट नियंत्रण रेखा पर ही सक्रिय रहती है, लेकिन हम उसकी काट क्यों नहीं पैदा कर सके? हम छापामार दस्ते क्यों नहीं तैयार कर सके? पाकिस्तानी फौज बदलने वाली नहीं है, तो हम किस रणनीति की प्रतीक्षा कर रहे हैं? क्यों न इस बार लाहौर और कराची पर सर्जिकल स्ट्राइक कर हम पाकिस्तान को अधमरा कर दें? बेशक यह सब आसान नहीं है। पाकिस्तान भी पलटवार कर सकता है। इन संभावनाओं को लेकर हम कब तक डरते रहेंगे और निष्क्रिय रहेंगे? कब तक इस खौफ में जीते रहेंगे कि पाकिस्तान के पास भी परमाणु अस्त्र हैं?

इसके पहले कि पाकिस्तान की तरफ से फिर कोई वहशियाना हरकत हो उसके हौसले पस्त कर देना चाहिए। सरकार की क्या मजबूरी है ये तो वही जाने किन्तु जनभावनाएं यही हैं कि पाकिस्तान को कड़ा सबक सिखाया जावे। और वह भी अविलंब। आखिर ‘शहीदों’ का बलिदान व्यर्थ नहीं जाने दिया जा सकता!

-लेखक राज्य मुख्यालय पर मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार हैं।