दोनों की साझा वैचारिक विरासत पर व्यापक विमर्श जरूरीः दीपक

लखनऊ: समाजवादी चिन्तक एवं समाजवादी चिन्तन सभा के संयोजन में महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, समाजवादी चिन्तक, भारतीय मेधा का मान पूरी दुनिया में बढ़ाने वाले डा0 राममनोहर लोहिया को उनके महाप्रयाण अर्द्धसदी तथा ‘‘एकात्म मानवदर्शन’’ के प्रणेता पंडित दीनदयान उपाध्याय को जन्मशताब्दी के उपलक्ष्य में सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘‘भारत-रत्न’’ से विभूषित करने के लिए व्यापक जनमत बनाने के लिए व्यापक अभियान की शुरुआत की गई है।

लोहिया व दीनदयाल उपाध्याय के लिए हस्ताक्षर अभियान आरम्भ 12 अप्रैल को इसलिए चुना गया है, क्योंकि इसी दिन 1964 में दोनों ने संयुक्त वक्तव्य जारी कर भारतीय राजनीति में नए अध्याय व विमर्श का सूत्रपात किया था।

इस अवसर पर प्रेस क्लब लखनऊ स्थित सभागार में आयोजित प्रेस-वार्ता को सम्बोधित करते हुए चिन्तन सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष दीपक मिश्र ने कहा कि दोनों को भारत-रत्न न देना इतिहास की त्रुटि है, जिसे स्वर्णिम भविष्य के लिए सुधारने का समय आ गया है। लोहिया व दीनदयाल को सम्मानित करने से भारतीय राजनीति की त्यागमयी वैचारिक प्रतिबद्धता वाली ऋषि परम्परा को ताकत मिलेगी। देश का भला होगा। विचार विहीन राजनीति समाज और देश को काफी नुकसान पहुंचाती है। वास्तविक आदर्श एवं प्रेरणा के अभाव में नई पीढ़ी भटक जाती है।

श्री मिश्र ने बतलाया कि पूरे देश में हस्ताक्षर अभियान के साथ-साथ लोहिया-दीनदयाल की साझा वैचारिक विरासत पर परिचर्चाओं का आयोजन किया जाएगा। दोनों विभूतियों के योगदान पर साहित्य का प्रकाशन कर वितरित किया जाएगा।

दीपक ने बतलाया कि भारत-रत्न की सूची में लोहिया व दीनदयाल का नाम न होना दुःखद एवं दुर्भाग्यपूर्ण है। दोनों जीवनपर्यन्त यायावर व फक्कड़ रहे। दोनों सम्पत्ति के नाम पर कभी दो जोड़ी कपड़े व दो जून के भोजन से अधिक कुछ भी अर्जित नहीं किया। लोकतंत्र एवं समाजवादी विचारधारा को मजबूत करने मंे लोहिया व दीनदयाल का योगदान गाँधी के साथ सर्वाधिक रहा है। लोहिया ने भारतीय मेधा व मनीषा का मान पूरे देश में बढ़ाया। अल्बर्ट आइंस्टीन एवं लास्की जैसे महान विभूतियों की टिप्पणियां इसकी साक्षी हैं। लोहिया के रंगभेद विरोधी अमरीकी सत्याग्रह पर अनेक पुस्तकें लिखी गईं। राजनेता के इतर समाज सुधारक, अर्थशास्त्री, समाजशास्त्री, इतिहासकार, पत्रकार व लेखक के रूप में भी दोनों का योगदान अप्रतिम व शब्देतर है। राष्ट्रकवि रामधारी दिनकर एवं महादेवी वर्मा के अनुसार लोहिया यदि राजनीतिज्ञ न होते तो सबसे बड़े साहित्यकार होते। लोहिया ने ‘‘जन’’, ‘‘मैनकाइण्ड’’, ‘‘कृषक (बांग्ला)’’, ‘‘इंकलाब’’, ‘‘कांग्रेस सोशलिस्ट’’ का संपादन किया तो पंडित जी ने ‘‘राष्ट्रधर्म’’, ‘‘पां×चजन्य’’, ‘‘तरूण भारत’’ के माध्यम से पत्रकारिता व राजनीति को नया आयाम दिया। दोनों लोकमान्य तिलक एवं महात्मा गांधी की परम्परा के अनमोल मोती हैं।
हमारा लक्ष्य 12 अक्टूबर 2017 (लोहिया पुण्यतिथि) तक तीन महीनों में पूरे भारत से तीन लाख हस्ताक्षर कर भारतीय गणराज्य के प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी को सौंपना है। प्रधानमंत्री जी स्वयं कई बार खुद को डा0 लोहिया एवं पंडित दीनदयाल को अपना आदर्श बता चुके हैं। हर बड़े अवसर पर मोदी जी लोहिया व पंडित दीनदयाल का नाम लेते हैं। चाहे वो 24 सितम्बर का कोझिकोड़ सम्मेलन हो या नववर्ष के उपलक्ष्य में राष्ट्र के नाम उद्बोधन हो। हमें आश्चर्य है कि मोदी राज में लोहिया व दीनदयाल के लिए ‘‘न्याय’’ हेतु न केवल मांग करना पड़ रहा है अपितु अभियान चलाने के लिए विवश होना पड़ रहा है।
हम सभी लोहिया व दीनदयाल के आभारी हैं जिन्होंने लोकतंत्र, स्वतंत्रता एवं समाजवाद की रोशनी वंचितों तक पहुंचाई।

एक प्रतिबद्ध समाजवादी द्वारा दीनदयाल जी के ‘‘भारत-रत्न’’ की मांग के पीछे साझा वैचारिक विरासत एवं दोनों महान नेताओं के बीच की सादृश्यतायें (समानतायें) हैं। दोनों की वैदेशिक नीति, अर्थचिन्तन, भारतीय मनीषा के संरक्षण सम्बंधी अवधारणाओं में काफी समानतायें है। लोहिया अपना चुनाव छोड़कर पंडित दीनदयाल को जिताने के लिए 1963 में जौनपुर पहुंचे थे, जबकि उनके खिलाफ कांग्रेस में केन्द्रीय मंत्री बालकृष्ण विश्वनाथ केसकर को मैदान में उतारा था। अटल बिहारी बाजपेयी एवं नानाजी देशमुख दोनों के मध्य संवाद-सूत्र का काम करते थे।

हस्ताक्षर अभियान को सफल बनाने के लिए जमाल दरविश (हैदराबाद) एम मार्तण्डनम् (चेन्नई), मो0 हाशिम (मुम्बई), सुखविन्दर हुड़ा (चड़ीगढ़), केलन राई (सिलीगुड़ी), फय्याज अहमद भट्ट (कश्मीर) को सहसंयोजक बनाया गया। उल्लेखनीय है कि 23 मार्च को प्रधानमंत्री जी को पत्र लिखकर व ट्वीट कर लोहिया व दीनदयाल हेतु ‘‘भारत-रत्न’’ की मांग की थी।

श्री मिश्र ने लोहिया एवं दीनदयाल के संयुक्त वक्तव्य की कसौटी पर मोदी सरकार को पूर्णतया विफल बताते हुए कहा कि वैदेशिक मामलों में केन्द्र सरकार ने अपनी साख खो दी है। भारत एवं पाकिस्तान, दोनों से रिश्ते खराब हो चुके हैं। युद्धोन्माद की सोच केवल दोनों मुल्कों पर काबिज सत्तासीनों एवं हथियारों के व्यापारियों के अलावा किसी का भला नहीं होगा। भारत के ऊपर 485 बिलियन डालर का कर्ज है तो पाकिस्तान 120 बिलियन डालर के ऋण में डूबा है। मानव विकास सूचकांक पर भारत 131वें तो पाकिस्तान 147वें स्थान पर है। गरीबी व बेरोजगारी दूर करने की बजाय दोनों मुल्कों के हुक्मरान ‘‘बम, युद्ध व नफरत’’ की सियासत कर रहे हैं।

सभी अवगत हैं कि इसके पहले समाजवादियों ने लोकमान्य तिलक के लिए हस्ताक्षर अभियान चलाया था जो पूर्णतया अपने उद्देश्य में सफल रहा। इस बार सफलता की पूरी उम्मीद है।
प्रेस-वार्ता में षिक्षक नेता व लुआक्टा के अध्यक्ष डाॅ. मनोज पाण्डेय, इतिहासविद् प्रो. पंकज कुमार, अग्रवाल समाज के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजेष अग्रवाल, अभय सिंह यादव, डाॅ. सुनील, देवी प्रसाद यादव, छात्र नेता प्रभात मिश्र भी मौजूद रहे।