लखनऊः उत्तर प्रदेश के राज्यपाल श्रीराम नाईक ने आज मौलाना आजाद इंस्टिट्यट आफ साईंस एण्ड टेक्नोलाॅजी ह्युमैनिटीज, महमूदाबाद, सीतापुर के वार्षिक दिवस समारोह का उद्घाटन किया। इस अवसर पर पूर्व मंत्री डाॅ0 अम्मार रिज़वी, प्रमुख सचिव उच्च शिक्षा श्री जितेन्द्र कुमार, कुलपति लखनऊ विश्वविद्यालय प्रो0 एस0पी0 सिंह, कुलपति छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय कानपुर प्रो0 जे0वी0 वैशम्पायन, उर्दू अंजुमन जर्मनी के महासचिव प्रो0 आरिफ नकवी सहित अन्य गणमान्य नागरिक एवं विद्यार्थीगण उपस्थित थे।

राज्यपाल ने इस अवसर पर मौलाना अबुल कलाम आजाद को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुये कहा कि मौलाना आजाद प्रसिद्ध कवि, लेखक, पत्रकार, स्वतंत्रता सेनानी एवं देश के पहले शिक्षा मंत्री थे। उन्हें अनेक भाषाओं पर प्रभुत्व प्राप्त था। उन्होंने साम्प्रदायिक सौहार्द को बढ़ावा दिया तथा वे देश के विभाजन के खिलाफ थे। मौलाना आजाद ने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान तथा विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की स्थापना की तथा 14 वर्ष तक की आयु के सभी बच्चों की निःशुल्क शिक्षा पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि ऐसे व्यक्तित्व का शुमार देश के महान शिक्षाविद् के रूप में किया जाता है।

श्री नाईक ने कहा कि शिक्षा देने में लड़के और लड़कियों में कोई भेदभाव नहीं होना चाहिये। पूर्व में लड़कियों को शिक्षा नहीं दी जाती थी। लड़कियों को भी उच्च शिक्षा देने की आवश्यकता है। पूर्व राष्ट्रपति व शिक्षाविद् डाॅ0 राधाकृष्णन ने इस दृष्टि में बदलाव लाने के लिये कहा था कि जब एक लड़का शिक्षित होता है तो सिर्फ एक परिवार शिक्षित होता है, पर जब एक लड़की शिक्षित होती है तो दो परिवारों में शिक्षा का चलन बढ़ता है। कुलाधिपति के नाते उन्होंने विश्वविद्यालयों के दीक्षान्त समारोह में यह पाया है कि लड़के और लड़की समान रूप से शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं किन्तु स्वर्ण, रजत एवं कांस्य पदक लगभग 65 प्रतिशत लड़कियों को प्राप्त हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि उच्च शिक्षा की जो नींव मौलाना आजाद ने डाली है, हमें उसका अनुसरण करना चाहियें।

राज्यपाल ने कहा कि वर्तमान में विश्व में तकनीक और प्रौद्योगिकी पर आधारित अधिक से अधिक शिक्षित और प्रशिक्षित जनशक्ति की आवश्यकता है। तकनीकी शिक्षा का यह परिणाम देखने को मिला है कि अमेरिका जैसे आधुनिक देश में भी आई0टी0 एवं स्वास्थ्य के क्षेत्र में सबसे ज्यादा काम करने वाले भारतीय हैं। शिक्षण संस्थान अपने विद्यार्थियों को गुणवत्तायुक्त सर्वोत्तम ज्ञान देने का प्रयास करें। छात्रों की शैक्षिक गुणवत्ता से ही संस्थान की पहचान होती है। छात्रों को सम्बोधित करते हुये उन्होंने कहा कि विद्यार्थी अच्छी शिक्षा ग्रहण करके अपना छात्र धर्म निभायें। सुविधाओं की मांग न करते हुये छात्र विद्या अर्जित करें। छात्र केवल किताबी कीड़े न बनकर बुद्धि और शरीर को स्वस्थ रखने के लिये अन्य गतिविधियों में भी भाग लें। उन्होंने विद्यार्थियों को व्यक्तित्व विकास के चार मंत्र भी बताये।

राज्यपाल ने कहा कि शहीदों ने देश को आजाद कराने के लिये वंदे मातरम् कहते कहते फांसी के फंदे को स्वीकार किया। उन्होंने बताया कि 1950 में संविधान में राष्ट्रगान व राष्ट्रगीत को मान्यता दी गयी थी किन्तु आजादी के 45 वर्ष बाद तक संसद में ‘जन गण मन’ एवं ‘वंदे मातरम्’ नहीं गाया जाता था। राज्यपाल ने बताया कि उनका मत था कि देश की सबसे बडी पंचायत यानि संसद में यह गाये जायेंगे तो उसका संदेश पूरे देश तक पहुँचेगा। इस प्रयास के बाद संसद में 24 नवम्बर, 1992 में राष्ट्रगान ‘जन गण मन’ तथा 23 दिसम्बर, 1992 को राष्ट्रगीत ‘वंदे मातरम्’ गाये जाने का शुभारम्भ हुआ। उन्होंने कहा कि संविधान द्वारा दी गयी मान्यता का सम्मान सबको करना चाहिये।

पूर्व मंत्री डाॅ0 अम्मार रिज़वी ने आये हुये सभी महानुभावों का स्वागत किया। उन्होंने राज्यपाल की प्रशंसा करते हुये कहा कि उच्च शिक्षा के क्षेत्र में उनके द्वारा उठाये गये कदम सराहनीय हैं। उन्होंने यह भी कहा कि श्री नाईक द्वारा लिखी गयी पुस्तक ‘चरैवेति! चरैवेति!!’ सामाजिक क्षेत्र में काम करने वालों के साथ-साथ आम आदमी एवं छात्र-छात्राओं के लिये प्रेरणा का स्रोत है।
कार्यक्रम में प्रमुख सचिव उच्च शिक्षा श्री जितेन्द्र कुमार, लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो0 एस0पी0 सिंह, प्रो0 आरिफ नकवी सहित अन्य लोगों ने भी अपने विचार रखे। कार्यक्रम में राज्यपाल ने विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट योगदान देने वाले महानुभावों को सम्मानित भी किया।