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अजमेर दरगाह दीवान की गद्दी को लेकर सियासत

अजमेर: अजमेर की प्रसिद्ध सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह के दीवान की गद्दी को लेकर सियासत शुरू हो गई है। दरगाह के दीवान जैनुल आबेदीन के बीफ और तीन तलाक पर दिए गए बयान को लेकर सूफी जैनुल के भाई अलाउद्दीन आलिमी ने उन्हें दरगाह के दीवान पद से हटाने का ऐलान किया है। जैनुल की जगह अलिमि ने खुद को दरगाह का दीवान घोषित करते हुए गद्दी पर कब्जा कर लिया है। उन्होंने स्वयं को सज्जादानशीन भी घोषित किया है। हालांकि अभी उर्स चल रहा है, लेकिन उर्स के बाद यह मामला और तुल पकड़ सकता है।

अचानक बदले घटनाक्रम के बाद अलिमि ने जानकारी दी कि आबेदीन का तीन तलाक को लेकर दिया बयान गलत है। उन्होंने कहा कि वे एक मुफ्ती से मिले थे। उन्होंने इस मामले में प्रमुख मुफ्तियों से मिलकर आबेदीन के खिलाफ फतवा जारी करने की सलाह दी थी। अब आलिमि ने देश के प्रमुख मौलवियों से मांग की है कि वे आबेदीन के खिलाफ फतवा जारी करें। अलिमि ने कहा कि हमारे खानदान की प्राचीन रस्मों रिवाज के अनुसार परिवार ने बैठक कर तय किया है कि जो व्यक्ति हनफी मुसलमान ही नहीं रह गया है। उसे दीवान के सरकारी ओहदे पर रहने का कोई अधिकार नहीं है। उन्होंने कहा कि अपने परिवार की रजामंदी के बाद दीवान की गद्दी पर वैध कब्जा लिया है। यह उन्होंने मौरुसी अमले व आम जायरीनों की मौजूदगी में किया।
जानकारों के मुताबिक मौजूदा दरगाह दीवान के इंतकाल के बाद ही दीवान की गद्दी पर दूसरा कोई बैठ सकता है। फिलहाल जैनुअल आबेदीन की ओर से इस सबंध में कुछ बयान नहीं आया है।

दरगाह अजमेर के गद्दी नशीन हाजी सैय्यद सलमान चिश्ती कहते हैं- “आबेदीन का बयान पूरी तरह से राजनीति से प्रेरित है। वे मीडिया के सामने इस प्रकार के बयान देकर सुर्खियां बटोरना चाहते हैं। अजमेर दरगाह में आठ सौ सालों से शुद्ध शाकाहारी लंगर चलता आ रहा है। लंगर में दलिया और मीठे चावल ही बनते हैं। बीफ तो बहुत बड़ी बात है कभी मटन और चिकन तक दरगाह में नहीं पहुंचा है। इस परंपरा को हमारे पूर्वजों ने कायम किया है। उनके बीफ वाले बयान से पूरे देश में गलत संदेश गया है।”

जैनुअल आबेदीन दिया था यह बयान-

अजमेर दरगाह दीवान सैयद जैनुअल आबेदीन ने उर्स के मौके पर ऐलान किया कि वे बीफ कभी नहीं खाएंगे। साथ ही, उन्होंने मुस्लिम समाज से अपील की है कि वे बीफ नहीं खाएं। उन्होंने केन्द्र सरकार से गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करने की मांग की है। उन्होंने कहा कि मैं यह अपील करना चाहता हूं कि किसी भी तरह का जानवर नहीं काटा जाना चाहिए। उन्होंने मुसलमानों से कहा था कि बीफ त्याग कर सद्भावना की मिसाल पेश करें। आबेदीन ने तीन तलाक के लिए राय दी थी कि एक समय में तीन तलाक के उच्चारण को शरीयत ने नापसंद किया है। मुसलमान इस प्रक्रिया में शरीयत की नाफरमानी से बचें।

दरगाह दीवान की गद्दी- बादशाह अकबर के जमाने से यह परंपरा शुरू हुई थी। 1947 में जब देश का विभाजन हुआ तो चिश्ती के परिजन पाकिस्तान चले गए। उनके परिवार के निकट के रिश्तेदारों ने दीवान की गद्दी संभाली। जब देश में संविधान लागू हुआ तो परंपरागत रूप से प्रचलित सभी ओहदों को समाप्त कर दिया गया था। लेकिन धार्मिक मान्यताओं के आधार लंबी कानूनी लड़ाई के बाद अजमेर दरगाह दीवान के पद पर आबेदीन के परिजनों की नियुक्ति होती आई है। इसके बाद 1952 में दरगाह एक्ट वजूद में आया और दरगाह कमेटियों का गठन हुआ। दरगाह दीवान को सरकार से 150 प्रतिमाह वेतन मिलता है।

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