लखनऊ: आधुनिक जीवन शैली समाज में विभिन्न प्रकार की विषमताओं को जन्म दे रही हैं। जिसके कारण हमारे मानसिक स्वास्थ्य और खुशहाली पर प्रश्न चिन्ह लगता जा रहा है। बिना मानसिक स्वास्थ्य के शारीरिक स्वास्थ्य की कल्पना बेमानी है। आज के समाज में लोगों को सम्पूर्ण स्वास्थ्य उपलब्ध कराने के लिए मनोवैज्ञानिकों एवं समाज विज्ञानियों को एक साथ आने की आवश्यकता है।

यह कहना है जे.एन.पी.जी. काॅलेज के सहायक प्रवक्ता डाॅ. विनोद चन्द्रा का जो कि एमिटी इंस्टीट्यूट आॅफ बिहैवोरियल एण्ड एलाइड साइंसेज (आईबास), एमिटी विश्वविद्यालय लखनऊ परिसर द्वारा समाज एवं स्वास्थ्यपरकता विषय पर आयोजित राष्ट्रीय सम्मेलन को सम्बोधित कर रहे थे।

इस अवसर पर डाॅ. चन्द्रा ने कहा कि समाज में सकारात्मक बदलाव और सकारात्मकता को बढ़ावा देने के लिए मनोवैज्ञानिकों और मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े विशेषज्ञों को सम्पूर्णता में प्रयास करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि सम्पूर्ण स्वस्थ जीवन का रास्ता सम्पूर्ण खुशहाली से आरम्भ होता है।

इसके पूर्व डाॅ. विनोद चन्द्रा, समाजसेविका कविता भटनागर, केजीएमयू लखनऊ की मनोवैज्ञानिक डाॅ. श्वेता सिंह, इलाहाबाद विश्वविद्यालय की प्रवक्ता डाॅ. रश्मि कुमार और डीन छात्र कल्याण एवं निदेशिका आईबास प्रो. मंजू अग्रवाल ने दीप प्रज्ज्वलित कर सम्मेलन का शुभारम्भ किया।

अतिथियों का स्वागत करते हुए प्रो. मंजू अग्रवाल ने कहा कि समाज में सम्पूर्ण स्वास्थ्य के लिए व्यक्ति को आत्मशांति की तलाश करते हुए समाज मंे स्थापित अनावश्यक वर्जनाओं से छुटकारा प्राप्त करना होगा।
सम्मेलन को सम्बोधिक करते हुए डाॅ. श्वेता ंिसंह ने समाज में आधुनिकता प्रदत्त मानसिक जटिलताओं जैसे आॅव्सेसिव कम्पलसिव डिसआॅडर के बारे में चर्चा करते हुए बताया कि इस तरह की मानसिक जटिलताओं से छुटकारा पाने में काॅगनेटिव बिहैवोरियल थेरेपी और काॅगनेटिव ड्रिल काफी प्रभावी सिद्ध होती है।

हिप्नोथेरेपी के विशेषज्ञ डाॅ. राजेश सिंह ने खुशहाली और सम्पूर्ण स्वास्थ्य के बीच सम्बंध को रेखांकित करते हुए कहा कि सम्पूर्ण मानसिक स्वास्थ्य के लिए खुशहाली एक प्राथमिक शर्त है। उन्होंने कहा कि अगर व्यक्ति अपनेआप को विपरीत परिस्थितियों में भी खुश रखने की कला सीख जाए तो जीवन की आपाधापी और तानव भरे क्षण उसके मानसिक स्वास्थ्य पर असर नहीं डाल सकते।

सम्मेलन में सम्पूर्ण स्वास्थ्य पर चर्चा हेतु तीन वैज्ञानिक सत्रों का आयोजन किया गया जिसमें इलाहाबाद, वाराणसी, दिल्ली, हरियाणा और लखनऊ आदि शहरों से आये मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों, शिक्षाविदों एवं शोधार्थियों ने चर्चा-परिचर्चा की।