257 सीटों से में सिर्फ एक पर ही मिली कामयाबी

आरएलडी प्रमुख चौधरी अजित सिंह के लिए मौजूदा विधानसभा चुनाव के नतीजे बेहद दर्द भरे हैं. क्योकि 257 सीटों से में सिर्फ एक बागपत में छपरौली ही पार्टी जीत सकी है. इस नतीजे के बाद ये कहा जा सकता है कि चौधरी परिवार की पकड़ जाट वोटरों में कम होती जा रही है.

वहीं आरएलडी इस बार मान रही थी कि वह सत्ता की चाबी हासिल करने वाला दल होगा. इसीलिए अजित सिंह ने अपने बेटे जयंत चौधरी को सीएम फेस तक घोषित कर दिया था. अजित सिंह के सामने बड़ी और पहली चुनौती परंपरागत जाट वोट को साथ जोड़ने की थी, लेकिन वह पूरी तह नाकामयाब रहे.
जाट वोटरों पर खत्म हुई चौधरी अजित सिंह की पकड़, आरएलडी को महज एक सीट आरएलडी प्रमुख चौधरी अजित सिंह के लिए मौजूदा विधानसभा चुनाव के नतीजे बेहद दर्द भरे हैं. क्योकि 257 सीटों से में सिर्फ एक बागपत में छपरौली ही पार्टी जीत सकी है. इस तस्वीर के बाद ये कहा जा सकता है कि चौधरी परिवार की पकड़ जाट वोटरों में कम होती जा रही है.

बता दें, कि 2013 में मुजफ्फरनगर दंगे के बाद मुस्लिम और जाट का साथ आरएलडी से छूट गया. जाट बीजेपी और मुस्लिम सपा के पक्ष में चला गया. यही वजह है कि जाट-मुस्लिम की दोस्ती दरकने पर 2014 के लोकसभा चुनाव में अजित सिंह और उनके बेटे जयंत भी हार गए थे.
चौधरी अजित सिंह को पहला झटका तब लगा जब गठबंधन करने को लेकर भी राजनीतिक दलों ने छोटे चौधरी को अछूत मान लिया. बीजेपी, कांग्रेस, सपा, बीएसपी यहां तक की जेडीयू ने भी सियासी दोस्ती करने के लिए हाथ पीछे खींच लिए थे.

अजित सिंह ने दूसरे दलों को छोड़ने वालों को साथ लिया और 297 सीटों पर प्रत्याशी खड़े कर दिए. लेकिन आरएलडी को झटका तब लगा जब इस बार उसको एकमात्र बागपत की छपरौली की सीट मिली. वह भी कम अंतर से.
बीजेपी के तरफ गए जाट वोटर: चौंकाने वाली बात यह है कि बीजेपी से नाराजगी के बाद भी जाट वोटर ने आखिर में ज्यादातर जगह बीजेपी को ही वोट दिया. आएलडी ने 2012 में उसके 9 विधायक जीते थे. जबकि 2002 में 14, 2007 में 8 विधायक जीते थे.