नई दिल्‍ली: 2014 में माओवादियों से संबंध रखने के सिलसिले में 2014 को गिरफ्तार हुए दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जीएन साईबाबा को गढ़चिरौली सेशंस कोर्ट ने दोषी ठहराया है. कोर्ट ने उनको और चार अन्य को उम्र कैद की सजा सुनाई जबकि एक को 10 साल की सजा सुनाई है. उल्‍लेखनीय है कि नौ मई, 2014 को दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जीएन साईबाबा को माओवादियों के साथ संबंध रखने के आरोप में महाराष्ट्र पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था. उनकी गिरफ्तारी के वक्‍त पुलिस ने दावा किया था कि साईबाबा को प्रतिबंधित संगठन भाकपा-माओवादी का कथित सदस्य होने, उन लोगों को साजो सामान से समर्थन देने और भर्ती में मदद करने के आरोप में पकड़ा गया था.

अदालत ने कहा कि नक्सलवादियों और उनकी विध्वंसक गतिविधियों की वजह से नक्सल प्रभावित इलाकों में विकास और औद्योगिकरण नहीं हो पा रहा है. इसलिए दोषी पाए गए कैदियों के लिए सिर्फ उम्रकैद की सजा काफी नहीं है लेकिन वो यूएपीए की जिस धारा 18 और 20 के तहत दोषी पाए गए हैं उनमें अदालत उम्रकैद की सजा ही देने के लिए मजबूर है.

महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले की पुलिस टीम ने दिल्‍ली से साईबाबा को गिरफ्तार किया था. वह दिल्ली विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के प्रोफेसर हैं. पुलिस के मुताबिक साईबाबा का नाम उस समय सामने आया, जब जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्र हेमंत मिश्रा को गिरफ्तार किया गया. उसने जांच एजेंसियों को बताया कि वह छत्तीसगढ़ के अबूझमाड़ के जंगलों में छिपे माओवादियों और प्रोफेसर के बीच 'कूरियर' का काम करता है.

पुलिस का दावा है कि मिश्रा के अलावा तीन अन्य गिरफ्तार माओवादियों कोबाड गांधी, बच्चा प्रसाद सिंह और प्रशांत राही ने भी दिल्ली में अपने संपर्क के रूप में साईबाबा का नाम लिया था.