अहमदाबाद: मोहम्मद हनीफ अब जाकर सुप्रीम कोर्ट से अहमदाबाद के सीरियल टिफिन ब्लास्ट केस में छूटे हैं. 29 मई 2002 को अहमदाबाद में पांच बसों में टिफिन ब्लास्ट हुए थे जिसमें एक दर्जन से ज्यादा लोग घायल हुए थे. अप्रैल 2003 में हनीफ को क्राइम ब्रांच ने इसमें शामिल होने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया था.

हनीफ का कहना है कि वे निर्दोष थे और उन्हें गलत फंसाया गया था. पहले निचली अदालत ने फिर हाईकोर्ट ने उन्हें दोषी ठहराया. अब सुप्रीम कोर्ट ने बरी कर दिया है. लेकिन इन 14 सालों में उनका पूरा परिवार तहस-नहस हो गया, रोजगार उजड़ गया. गिरफ्तारी के वक्त वे कपड़ों का व्यवसाय करते थे. गिरफ्तारी के बाद उनका नाम आतंकी मामलों में जुड़ने से लोगों ने उनसे किसी भी तरह का लेनदेन बंद कर दिया.

सन 2006 में हनीफ को अहमदाबाद की ट्रायल कोर्ट ने 10 साल की सजा सुनाई. अगले साल सदमे से मां की और फिर 2008 में डिप्रेशन के चलते पत्नी की मौत हो गई. उनके चारों बच्चों को भाई के परिवार ने संभाला. बाद में हाईकोर्ट ने उनकी सजा आजीवन कारावास में बदल दी, लेकिन अब 14 साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें निर्दोष मानकर बरी कर दिया है.

इस मामले में कुल 21 आरोपी थे जिसमें से चार्जशीट के वक्त ही चार बरी कर दिए गए. ट्रायल कोर्ट ने 12 और लोगों को बरी कर दिया. बचे पांच दोषियों में से एक को हाईकोर्ट ने बरी किया. अब बाकी के चार में से हनीफ समेत दो को सुप्रीम कोर्ट ने बरी किया है. अन्य दो को दोषी माना, लेकिन अब तक की जेल की उनकी सजा पूरी मानकर उन्हें भी छोड़ दिया गया.

जमियल उलमा ए हिन्द के मुफ्ती अब्दुल कय्यूम पिछले कुछ महिनों से कोर्ट के मामले में इन सभी की मदद कर रहे हैं. कय्यूम भी 11 साल अक्षरधाम आतंकवादी हमले में जेल काटने के बाद निर्दोष छूटे थे. उनका कहना है कि अक्षरधाम, हरेन पंड्या हत्या और टिफिन ब्लास्ट, इन सभी मामलों में लोगों का बरी होना बता रहा है कि पुलिस ने इन मामलों में ज्यादती की थी. इसीलिए जमियत ने ऐसे मामलों में जांच के बाद निर्दोष लगने वाले लोगों की कानूनी मदद करने का फैसला किया.

सन 2002 के दंगों के बाद यह एक और केस है जिसमें सालों जेल में काटने के बाद लोग निर्दोष छूटे हैं. इस मसले से पुलिस से जहां लोगों की नाउम्मीदी बढ़ी थी वहीं सुप्रीम कोर्ट से एक बार और आशा जगी है कि देश में न्याय का राज अभी खत्म नहीं हुआ है.