लखनऊ: शायर-ए-आज़म कै़फी आज़मी भारत के महान शायर, संगठक, राष्ट्रीय एकता एवं समाजवादी वैचारिकी के अग्रदूत थे। उन्होंने अपने उद्बोधन में कहा था कि ‘‘वे गुलाम भारत (14 जनवरी 1919) में पैदा हुए, आजाद भारत में जवान हुए और समाजवादी भारत में सुपुर्दे ख़ाक होना चाहते हैं।’’ कै़फी जैसी शायरी करते थे वैसा ही जीवन जिए। वे गरीबों, कमजोरों और पीड़ितों की बुलंद आवाज थे। वे सही मायने में सामाजिक न्याय, सामाजिक सद्भाव व समाजवाद के योद्धा थे। उन्होंने मुंशी प्रेमचन्द्र, डा0 लोहिया, साहिर लुधियानवी, निराला की महान परम्परा को आगे बढ़ाया। उनके व्यक्तित्व व योगदान को शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता। वे किसानों और मजदूरों के बड़े नेता थे। मुम्बई-हैदराबाद से लेकर आजमगढ़ तक उन्होंने कई बार मजदूरों व किसानों के सवाल पर धरना-प्रदर्शन दिया। मुझे सैयद अतहर हुसैन उर्फ कै़फी आज़मी को करीब से देखने और आजमगढ़ में उनके एक कार्यक्रम में भाग लेने का सौभाग्य मिला है। कै़फी साहब अपने आप में चलते-फिरते ज्ञानपुंज थे। चाहे सामाजिक जीवन हो या सिनेमा, कै़फी ने मेयार (आदर्श स्तर) से कभी समझौता नहीं किया।

यह बातें समाजवादी चिन्तक, समाजवादी चिन्तन सभा के अध्यक्ष, समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता व सचिव दीपक मिश्र ने कै़फी आज़मी की जयंती के उपलक्ष्य में समाजवादी चिन्तन सभा के तत्वावधान में 1, विधायक निवास स्थित सभाकक्ष में आयोजित संगोष्ठी में कही। श्री मिश्र ने बताया कि कै़फी हिन्दुस्तान रिपब्लिकन सोशलिस्ट एसोसिएशन के संयोजक भगत सिंह व डा0 लोहिया के विचारों से प्रभावित थे।

उन्होंने लिखा हैः- ‘‘हम बचायेंगे, सजायेंगे, संवारेंगे तुझे,

हर मिटे नक्श को चमका के उभारेंगे तुझे।

राह इमदाद की देखें ये भले तौर नहीं,

हम भगत सिंह के साथी हैं कोई और नहीं।’’
‘‘कर चले जां फिदा जान-ओ-तन साथियों, अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों’’ जैसे गीतों से कै़फी ने उन साम्प्रदायिक शक्तियों को उत्तर दिया, जो मुसलमानों की देशभक्ति पर सवालिया निशान लगाते हैं।
कै़फी आज़मी ने ‘‘औरत’’ लिखकर मूर्तिभंजक लोहिया की सप्त क्रांति का समर्थन किया था, जिसमें उन्होंने लिखा है कि…..
‘‘तोड़कर रस्म का बुत बंदे-कदामत से निकल,

जोफे इशरत से निकल, वहमे नज़ाकत से निकल।

नफ़्स के खींचे हुए हल्क़-ए-अज़मत से निकल,

यह भी एक कैद है, कैदे मोहब्बत से निकल।’’

कै़फी ने वर्ग संघर्ष, बेरोजगारी, साम्प्रदायिकता जैसे सुलगते सवालों को उठाया। उन्होंने लोहिया की तरह राम, कृष्ण व शिव का उल्लेख अपनी शायरी में देश की सोई आत्मा जगाने के लिए किया।
कै़फी आज़मी मुलायम सिंह यादव को उर्दू और मुसलमानों का सच्चा हिमायती मानते थे। यही कारण है कि उर्दू के लिए पद्मश्री ठुकराने वाले कै़फी ने मुलायम द्वारा प्रदत्त ‘‘यशभारती’’ सम्मान स्वीकारा।
दीपक ने कहा कि ‘‘लोहिया के विचारों और कै़फी की शायरी को साम्प्रदायिकता के विरूद्ध चल रहे निर्णायक व सतत संघर्ष में हथियार बनाया जाएगा।’’

संगोष्ठी में समाजवादी चिन्तन सभा के प्रदेश महासचिव अभय यादव, लुआक्टा के अध्यक्ष डा0 मनोज पाण्डेय, नवाब अली अकबर, अग्रवाल सभा के अध्यक्ष राजेश अग्रवाल, समाजवादी युवजन सभा के प्रदेश सचिव डी0पी0 यादव, हिन्दी शिक्षक मंच के अध्यक्ष दीपक राय, खुर्शीद अहमद, निसार समेत कई वक्ताआें ने विचार व्यक्त किए।
संगोष्ठी के अंत में विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए क़ैफी आज़मी को भारत-रत्न से विभूषित करने की मांग की गई।