नई दिल्ली: संसदीय समिति द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उनके अचानक लिए गए नोटबंदी के फैसले पर सफाई के लिए तलब किया जा सकता है। पीटीआई के अनुसार, वरिष्ठ कांग्रेस नेता वीके थॉमस के नेतृत्व वाली लोक लेखा समिति (पीएसी) रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) गवर्नर के बाद पीएम को भी तलब करना चाहती है। पीएसी ने आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल को 20 जनवरी 2017 को उसके समक्ष पेश होकर यह साफ करने को कहा है कि नोटबंदी का फैसला कैसे लिया गया और इसका देश की अर्थव्यवस्था पर क्या असर होगा। पटेल को इस संबंध में 10 सवाल भेजे गए हैं, जिनके जरिए फैसला लेने में केंद्रीय बैंक की भूमिका, अर्थव्यवस्था पर प्रभाव और आरबीआई गवर्नर के रेगुलेशंस में पिछले दो महीनों में आए बदलाव पर जानकारी मांगी गई है। नोटबंदी के पास पैदा हुई नकदी की समस्या कुछ हद तक कम जरूर हुई है, मगर अभी भी पर्याप्त मात्रा में नए नोटों की सप्लाई नहीं हो पा रही है और अर्थशास्त्रियों ने जीडीपी वृद्धि दर में कमी की आशंका जताई है।
थॉमस ने कहा, ”समिति को मामले से जुड़े किसी भी व्यक्ति को बुलाने का अधिकार है। लेकिन वह 20 जनवरी की बैठक के नतीजे पर निर्भर करेगा। हम पीएम को नोटबंदी के मुद्दे पर बुला सकते हैं अगर सदस्य एकमत से यह फैसला लें।” थॉमस ने यह भी कहा कि जब वह नोटबंदी के बाद पीएम से मिले तो ”उन्होंने कहा कि दिसंबर अंत तक 50 दिन में हालात सामान्य हो जाएंगे, मगर ऐसा लगता नहीं।” आरबीआई गवर्नर को विपक्षी दलों के कोप का भाजन बननना पड़ा है क्योंकि पर्याप्त नकदी उपलब्ध नहीं हो सकी और बैंकों से जमा निकालने पर भी तरह-तरह की पाबंदियां हैं।
संसदीय समिति ने आरबीआई गवर्नर से पूछा है कि अगर नकदी निकालने पर पाबंदी लगाने को लेकर कोई कानून नहीं है तो उन पर ”शक्तियों का दुरुपयोग करने के लिए” मुकदमा क्यों न चले और उन्हें हटाया क्यों न जाए। पीएसी ने यह भी जानना चाहा है कि कितनी नकदी पर प्रतिबंध लगा था और उसमें से कितनी बैंकिंग व्यवस्था में लौट आई है।
पीएसी ने पटेल से जानना चाहा है कि ”कितने नोट बंद किए गए और पुरानी करंसी में से कितना वापस जमा किया जा चुका है? जब 8 नवंबर को आरबीआई ने सरकार को नोटबंदी की सलाह दी तो कितने नोटों के वापस लौटने की संभावना थी?”
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