नई दिल्ली: एनसीआरबी के डेटा के मुताबिक जिन किसानों ने कर्ज न चुका पाने के कारण खुदकुशी की उनमें से 80 फीसद किसानों ने बैंकों से कर्ज लिया था न की महाजनों से। आंकड़े 2015 के हैं। डेटा के मुताबिक जिन 3,000 किसानों ने 2015 में आत्महत्या की थी उनमें से 2,474 ने बैंकों या किसी माइक्रो फाइनैन्स कंपनी से कर्ज लिया था। पहली बार एनसीआरबी ने डेटा का इस तरह से विभाजन किया है। वहीं डेटा के मुताबिक कर्ज के कारण किसानों की आत्महत्या 2015 में लगभग तीन गुणा बढ़ी थी। 2014 में जहां 1,163 किसानों ने आत्महत्या की थी वहीं 2015 में 3,097 किसानों ने आत्महत्या की।

इसके अलावा 2014 में जहां 969 किसानों ने आत्महत्या फसल के बर्बाद होने की वजह से की थी वहीं 2015 में यह 1,562 पर पहुंच गया। राज्यों के हिसाब से देखें तो महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा किसानों ने आत्महत्या की है। डेटा के मुताबिक महाराष्ट्र में 1,293 किसानों ने आत्महत्या की, वहीं कर्नाटक में 946 और तेलांगना में 632 किसानों ने आत्महत्या की। इनमें से ज्यादातर किसानों ने बैंकों से कर्ज किया था। वहीं तेलांगना में 131 और कर्नाटक में 113 किसानों ने सूदखोर महाजन से कर्ज लिया था।

वहीं इन आंकड़ों पर पुराने योजना आयोग के पूर्व सदस्य अभिजीत सेन ने कहा कि सूदखोरों से कर्ज लेने में किसानों को आसानी होती और एक तरह से यह लोन बैंकों द्वारा दिए गए लोन के मुकाबले ज्यादा फ्लैक्सिबल होते हैं। सेन ने आगे कहा कि बैंक लोन कम फ्लैक्सिबल होते हैं और माइक्रो फानैन्स कंपनियों का हाल इससे बुरा है, वे लोन वसूलने की कोशिश में गुडों द्वारा कर्जदारों को धमकाते हैं। गौरतलब है कि किसानों की आत्महत्या 2014 के मुकाबले 2015 में 41.7 फीसद तक बढ़ी है। 2014 में आंकड़ा 5,650 और जो 2015 में बढ़कर 8,007 तक पहुंच गया।