सेरम इंस्टीट्यूट आॅफ इंडिया को तत्काल प्रतिबंधित कर हो पूरे मामले की हो जांच

लखनऊ । रिहाई मंच ने स्वाईन फ्लू की वैक्सीन बनाने वाली दवा कम्पनी सेरम इंस्टीट्यूट आॅफ इंडिया द्वारा लोकसभा चुनावों के दौरान भाजपा को करोड़ों रूपए चंदा देने की जांच की मांग करते हुए कहा है कि इस बिमारी को जानबूझ कर महामारी की तरह फैलने दिया जा रहा है। संगठन ने दवा कम्पनी और भाजपा के गठजोड़ की जांच के लिए सर्वाेच्च न्यायालय के मौजूदा जज की निगरानी में जांच आयोग गठित करने की मांग की है।

नागरिक परिषद नेता रामकृष्ण ने जारी बयान में कहा कि यह आश्चर्य की बात है कि स्वाईन फ्लू की वैक्सीन बनाने वाली दवा कम्पनी ने भाजपा को छोड़ किसी भी अन्य राजनीतिक दल को लोकसभा चुनावों में चंदा नहीं दिया। जिससे स्पष्ट होता है कि दवा कम्पनी को लाभ पहंुचाने के लिए सरकार इस बीमारी को महामारी की तरह फैलने दे रही है। उन्होंने कहा कि दवा कम्पनी से मिले मोटे चंदे और स्वास्थ बजट में मोदी सरकार द्वारा बीस प्रतिशत की कटौती महज संयोग नहीं है। यह देश के स्वास्थ के साथ दवा कम्पनीयों को फायदा पहुंचाने का गंदा खेल है। उन्होंने कहा कि मोदी और संघ परिवार को इसका जवाब देना होगा कि सेरम इंस्टिट्यूट आॅफ इंडिया ने उसे 2013-2014 में तीन किश्तों में ऐक्सिस बैंक, पुणे-4 से चैक संख्या 196633 के जरिए साठ लाख, चैक संख्या 196636 से चालीस लाख और चैक संख्या 196635 के जरिए पचपन लाख रूपया चंदे में क्यों दिया। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार और निजी दवा कम्पनी मिलकर एक साजिश के तहत स्वाईन फ्लू के वायरस को फैलाने में लगी हैं ताकि दवा कम्पनी को फायदा पहंुच सके जैसा कि अफ्रीका और दूसरे गरीब देशों में पहले भी दवा कम्पनियां काॅरपोरेट परस्त सरकारों से गठजोड़ करके करती रही हैं।  

रामकृष्ण ने मौजूदा संसद सत्र में विपक्षी पाटिर्यों द्वारा इस सवाल को संसद में न उठाने पर कड़ी प्रतिक्रिया दर्ज कराते हुए कहा कि राजनीतिक दल निजी दवा कम्पनियों के साथ मिल कर चंदाखोरी कर रहीं हैं, जिसके चलते आदिवासियों और दलितों को दवा कम्पनियों ने प्रयोगशाला का चूहा बना दिया है। उन्होंने स्वाईन फ्लू से हुई मौतों को हत्या करार देते हुए सरकारों से मृतकों को दस-दस लाख रूपए मुआवजा देने और सेरम इंस्टिट्यूट आॅफ इंडिया को तत्काल प्रतिबंधित करने और उसके खिलाफ राजद्रोह का मुकदमा दर्ज करने की मांग की है। 

रिहाई मंच नेता राघवेन्द्र प्रताप सिंह ने कहा कि उत्तर भारत में हुई बेमौसम बरसात के बाद उत्तर प्रदेश के हमीरपुर के कुनैठा गांव के किसान इंद्रपाल ने बढ़ते कर्ज और मौसम की मार से परेशान होकर खेत में फांसी लगा ली, वहीं इसी जिले के भरूआ सुमेरपुर परहेटा के 68 वर्षीय किसान राजाभैया तिवारी और उन्नाव के ओरस थाना क्षेत्र के गांव पूराचांद निवासी विरेंद्र सिंह को दिल का दौर पड़ने से खेत में ही मौत हो गई। ये मौतें इस बात की तस्दीक करती हैं कि इस बरसात ने किसान की आर्थिक स्थिति को पूरी तरह तोड़ दिया है। इस बरसात के अभी आगामी दो-तीन दिनों तक जारी रहने की सम्भावना के चलते किसानों का मनोबल टूट चुका है लिहाजा सरकार को चाहिए कि वह इस स्थिति को गम्भीरता से लेते हुए पूरे सूबे को आपदाग्रस्त घोषित करते हुए तबाह हुई फसलों का मुआवजा देने की गारंटी करे। 

रिहाई मंच के प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य अनिल यादव ने कहा कि जिस तरह हमीरपुर के मौदहा तहसील की एसडीएम प्रवीणा अग्रवाल ने जिस तरह किसान के आत्म हत्या से अनभिज्ञता जाहिर की उससे साबित होता है कि प्रशासन जानबूझ कर कर्ज के बोझ से दबे किसानों की आत्महत्या को नजरअंदाज कर रहा है। उन्होंने एसडीएम को तत्काल बर्खास्त करने और सभी जिला प्रशासनिक अधिकारियों को इस संकट की घड़ी में घटनाओं को दबाने के बजाए कर्ज से दबे किसानों के साथ खड़े होने की प्रदेश सरकार से हिदायत देने की मांग की। उन्होंने कहा कि यह बड़ा ही शर्मनाक है कि जिन इलाकों के किसान आत्महत्या कर रहे हैं उन क्षेत्रों के सांसद हिंदुओं से दस-दस बच्चे पैदा करने की बात कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि ऐसे सांसदों को मोदी सरकार से आपदाग्रस्त किसानों के लिए विशेष पैकेज लाना चाहिए ताकि किसान बच सके।