राज्यपाल की पुस्तक ‘चरैवेति! चरैवेति!!’ के उर्दू संस्मरण पर मालवीय हाल में चर्चा

लखनऊः लखनऊ विश्वविद्यालय के मालवीय सभागार में उर्दू रायटर्स फोरम द्वारा उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक की संस्मरणों पर आधारित पुस्तक ‘चरैवेति! चरैवेति!!’ के उर्दू संस्करण पर चर्चा का आयोजन किया गया। चर्चा में उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक सहित डाॅ0 अम्मार रिज़वी, लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो0 एस0पी0 सिंह, प्रो0 शारिब रूदौलवी, प्रो0 फज़ले इमाम, प्रो0 आसिफा जमानी, प्रो0 असमत मलिहाबादी, प्रो0 साबरा हबीब, प्रख्यात लेखक अनवर जलालपुरी, लखनऊ विश्वविद्यालय के उर्दू विभागाध्यक्ष डाॅ0 अब्बास रजा नैययर सहित बड़ी संख्या में उर्दू भाषा के विद्धतजन उपस्थित थे।

राज्यपाल ने इस अवसर पर अपनी पुस्तक ‘चरैवेति! चरैवेति!!’ पर विचार व्यक्त करते हुये कहा कि ‘‘संगोष्ठी में भाग लेकर लगने लगा है कि बड़ा लेखक बन गया हूँ। मैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि लेखक बनूंगा। वर्षों राजनीति में रहा तो अपने प्रेस नोट और मतदाताओं के प्रति जवाबदेही के मद्देनजर वार्षिक कार्यवृत्त ही लिखता रहा। यह भी नहीं सोचा था कि उत्तर प्रदेश का राज्यपाल बनूंगा। यह भी नहीं सोचा था कि ‘चरैवेति! चरैवेति!!’ का उर्दू अनुवाद होगा और यह भी नहीं सोचा था कि उर्दू के इतने विद्धान इस पुस्तक पर चर्चा करेंगे। जो सपना भी नहीं देखा था वह साकार हो गया।’’

श्री नाईक ने अपने लेख से पुस्तक ‘चरैवेति! चरैवेति!!’ तक के सफर पर प्रकाश डालते हुये बताया कि 84 वर्ष पुराने मराठी दैनिक समाचार पत्र सकाल ने महाराष्ट्र के तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों एवं केन्द्र मंत्रियों श्री शरद पवार, श्री सुशील कुमार शिंदे एवं श्री मनोहर जोशी के साथ उनसे अनुरोध किया कि अपने-अपने संस्मरण लिखें जो उनके समाचार पत्र के रविवारीय अंक में विशेष रूप से प्रकाशित होंगे। इस प्रकार एक वर्ष तक सीरीज चली। लोगों के आग्रह पर प्रकाशित लेखों को किताब ‘चरैवेति! चरैवेति!!’ के रूप में मराठी भाषा में प्रकाशित किया गया, जिसका लोकार्पण 25 अप्रैल, 2016 को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री द्वारा किया गया। हिंदी, उर्दू, अंग्रेजी और गुजराती अनुवाद भी किया गया जिनका लोकार्पण 9 नवम्बर, 2016 को राष्ट्रपति भवन नई दिल्ली तथा 11 नवम्बर, 2016 को राजभवन लखनऊ में सम्पन्न हुआ। पुस्तक ‘चरैवेति! चरैवेति!!’ प्रकाशित होने के बाद अनेक भाषा के विद्वानों से नये संबंध बने हैं। उन्होंने कहा कि भाषा जोड़ने का काम करती है। इसका अनुभव ‘चरैवेति! चरैवेति!!’ के अनुवाद से हुआ। राज्यपाल ने बताया कि उनकी पत्नी ने ‘चरैवेति! चरैवेति!!’ के उर्दू अनुवाद एवं प्रस्तावना की प्रशंसा करते हुये कहा कि दोनों ही बहुत सुंदर हैं।

राज्यपाल ने कहा कि अगले कुलपति सम्मेलन में उर्दू को विश्वविद्यालय स्तर पर उचित स्थान दिलाने हेतु गंभीरता से विचार किया जायेगा, ताकि उर्दू का लाभ मिल सके। उन्होंने यह भी कहा कि उर्दू उत्तर प्रदेश की दूसरी सरकारी भाषा है। वे इस संदर्भ में सरकार को विचार करने के लिये लिखेंगे कि उर्दू को और व्यवहारिक बनाया जाये। वह यह भी सुनिश्चित करेंगे कि उनका वार्षिक कार्यवृत्त उर्दू में भी प्रकाशित हो।

श्री नाईक ने कहा कि उर्दू में जोश है, मिठास है और अपना जलवा है। इसलिये उर्दू, उर्दू है। राज्यपाल के नाते वे कोशिश करेंगे कि उर्दू को उसका पूरा सम्मान मिले। संस्कृत सभी भारतीय भाषाओं की जननी है और हिंदी बड़ी बहन है। हिंदी के बाद उर्दू सबसे ज्यादा बोली और समझी जाने वाली भाषा है। उर्दू को धर्म से जोड़ना ठीक नहीं है। अनेक गैर मुस्लिम विद्वान जैसे गोपीचंद नारंग, फिराक गोरखपुरी तथा मुद्रण में मंुशी नवल किशोर आदि ने उर्दू साहित्य को समृद्ध किया। अच्छे साहित्य का एक भाषा से दूसरी भाषा में अनुवाद होना चाहिए ताकि अन्य लोग भी उसका लाभ उठायें। उन्होंनंे कहा कि अच्छी किताबों का अनुवाद होता है तो साहित्यिक एवं सांस्कृतिक जीवन समृद्ध होता है।

प्रो0 शारिब रूदौलवी ने कहा कि ‘चरैवेति! चरैवेति!!’ इंसानों को जिंदगी का रास्ता दिखाने वाली पुस्तक है। पुस्तक पढ़ने में अनुवाद नहीं, बल्कि लगता है कि राम नाईक स्वयं बोल रहे हैं। पुस्तक में युवाओं के लिए गुरूमंत्र है, जिसमें नामुनकिन जैसा कोई शब्द नहीं है। सच्ची लगन से नामुनकिन शब्द गायब हो जाता है। राम नाईक ने अपने जीवन में राजनैतिक विपक्षियों को भी पूरा सम्मान दिया है और आम आदमी की सेवा की है। उन्होंने कहा कि आज के राजनैतिक लोग इससे समाज सेवा का सबक लें।

प्रो0 फज़ले इमाम ने कहा कि किताब में सच्चाईयाँ हैं और राज्यपाल राम नाईक ने बीते हुये समय की बातें बड़ी बेबाकी से रखी हैं। किताब जीवन जीने का सलीखा सिखाती है। मानवीय जीवन पर आधारित उनकी पुस्तक समाज सेवा के प्रति समर्पित है। उन्होंने कहा कि राज्यपाल राम नाईक बेबाक कलमकार हंै।

श्री अम्मार रिज़वी ने कहा कि यह पुस्तक वर्तमान में राजनीति करने वालों के लिये एक सबक है। पुस्तक भाषा, विचार और स्वीकार्यता की दृष्टि से मुक्कमल है। उन्होंने कहा कि राज्यपाल राम नाईक ने पहले अमल किया है तब पुस्तक लिखी है।

प्रो0 आसिफा जमानी ने कहा कि किताब के कवर पेज पर छपी फोटो को देखकर ऐसा लगता है कि एक सादा और सरल इंसान मजबूती से अपने कदम आगे बढ़ा रहा है। राज्यपाल राम नाईक ने समाज सेवा करके अपने व्यक्तित्व की पहचान बनायी। उन्होंने कहा कि दो बार मौत को शिकस्त देकर उन्होंने तीसरी जिंदगी पायी है इसलिये वे लौहपुरूष जैसे हैं।

श्री अनवर जलालपुरी ने कहा कि राज्यपाल राम नाईक ने कर्म के दर्शन को अपने जीवन में उतारा है। कैंसर पर जीत पाना उनसे सीखा जा सकता है, क्योंकि उनके शब्द कोष में मायूसी जैसा कोई शब्द नहीं है। उन्होंने कहा कि राज्यपाल ने अपने जीवन में कभी अपने आदर्श से समझौता नहीं किया।

राज्यपाल ने इस अवसर पर विशिष्ट सेवाओं के लिये उर्दू रायटर फोरम की ओर से राष्ट्रीय सहारा के हिमायत जायसी, इन्किलाब उर्दू के जिलानी खां, अबुजर एवं डाॅ0 हसन अब्बास को ‘निशान-ए-अवध’ सम्मान से सम्मानित किया तथा ख्वाजा मोहम्मद युनूस, कुलपति डाॅ0 एस0पी0 सिंह, प्रो0 फज़ले इमाम, डाॅ0 नसीम निकहत, डाॅ0 मसरूर जहाँ तथा सिराज मेहदी को ‘वकार-ए-अवध’ अवार्ड देकर सम्मानित किया। कार्यक्रम में प्रो0 असमत मलिहाबाद, तारिक कमर सहित अन्य लोगों ने भी अपने विचार रखे। कार्यक्रम का संचालन डाॅ0 अब्बास रजा नैययर ने किया तथा राज्यपाल की पुस्तक ‘चरैवेति! चरैवेति!!’ के कुछ अंश भी पढे़।