जयपुर: संचार मंत्रालय के मार्गदर्शन में इलेक्ट्रॉमैग्नेटिक फील्ड (ईएमएफ) उत्सर्जन और मोबाइल टावरों के बारे में एक जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया गया। यह कार्यक्रम ‘डिजिटल इंडिया’ पहल को सुगम बनाने के लिए चलाए जा रहे राष्ट्रव्यापी अभियान का हिस्सा है। संचार राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) मनोज सिन्हा इस कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि के तौर पर उपस्थित हुए और उन्होंने इस अवसर पर अपना भाषण दिया।

राजस्थान सरकार के मुख्य सचिव श्री ओ पी मीना ने इस कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि के तौर पर हिस्सा लिया। इसके अलावा दूरसंचार विभाग के सचिव श्री जे एस दीपक और राजस्थान सरकार के अन्य वरिष्ठ अधिकारी भी पैनल में मौजूद थे। राजस्थान सरकार में उद्योग मंत्री श्री राजपाल सिंह शेखावत भी इस अवसर पर उपस्थिति थे और उन्होंने इस पहल का समर्थन किया। पैनल में दूरसंचार विभाग के वरिष्ठ सदस्य, राजस्थान सरकार के मुख्य सचिव, स्वास्थ्य मंत्रालय के सलाहकार और चिकित्सा विश्लेषक और आईआईटी-बॉम्बे के प्रोफेसर शामिल थे।

भाषण के दौरान मीना ने ईएमएफ पर लोगों को जागरूक बनाए जाने के लिए इस तरह की पहलों का समर्थन किया और इससे जुड़ी भ्रांतियों को दूर किए जाने पर जोर दिया।

इस पहल का मकसद आपसी तालमेल की कमी को दूर करना और नागरिकों एवं निवासियों, नगर निकायों के प्रमुखों, सरकारी अधिकारियों, निगम पार्षदों और रेजीडेंशियल वेल्फेयर एसोसिएशन (आरडब्ल्यूए) के प्रमुखों जैसे विभिन्न हितधारकों को ईएमएफ के उन वैज्ञानिक साक्ष्यों और तथ्यों से अवगत कराना है जो स्पष्ट रूप से यह साबित करते हैं कि मोबाइल टावरों से निकलने वाली नॉन-आयोनाइजिंग रेडिएशन मानव स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक या खतरनाक नहीं हैं। भारत सरकार के मानक सख्त हैं और यह सुनिश्चित करने के लिए इन्हें सख्ती के साथ क्रियान्वित किया गया है कि मोबाइल टावरों से उत्सर्जन तय सीमा के अंदर बना रहे और सरकारी दिशा-निर्देशों का गंभीरता के साथ पालन किया जाए। पैनल ने ऐसे वैज्ञानिक सबूत और शोध भी पेश किए जिनमें स्पष्ट रूप से यह पाया गया कि मोबाइल टावरों से निकलने वाले उत्सर्जन और मानव रोगों के बीच कोई संबंध नहीं है।

संचार राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) मनोज सिन्हा ने अपने उद्घाटन भाषण में कहा, ‘नागरिकों के संवाद और सशक्तिकरण के लिए दूरसंचार एक प्रमुख स्रोत है और यह देश के सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए भी एक प्रभावी माध्यम है। यह विभिन्न क्षेत्रों के विकास एवं आधुनिकीकरण के लिए बेहद अहम है। उन लोगों के लिए वॉइस और डेटा सेवाओं की पेशकश सिर्फ मोबाइल नेटवर्कों के जरिये ही की जा सकती है जो भारत में सामाजिक-आर्थिक रूप से इलाकों से हैं और पिछले एक दशक कनेक्टिविटी का विस्तार कर इस दिशा में तेज बदलाव हुआ है। देश को प्रगति की राह पर ले जाने के लिए बुनियादी ढांचे के लिए एक उपयुक्त पारिस्थितिकी तंत्र जरूरी है और हमें इसके लिए टावरों से जुड़ी भ्रांतियों को दूर कर देश में वैज्ञानिक प्रवृत्ति को लगातार प्रोत्साहित करना चाहिए।’

दूरसंचार विभाग में दूरसंचार अयुक्त जे एस दीपक ने अपने भाशण में कहा, ‘सरकार ने इस सेक्टर और लोगों के समक्ष पैदा हो रही चुनौतियों की पहचान की है और नागरिकों को ठोस निर्णय लेने में सक्षम बनाने पर जोर दे रही है। हम अपने नागरिकों के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध हैं और मोबाइल टावरों से निकलने वाली इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएषन के लिए दूरसंचार विभाग द्वारा निर्धारित मानक आईसीएनआईआरपी और डब्ल्यूएचओ द्वारा तय अंतर्राश्ट्रीय मानकों की तुलना में 10 गुना सख्त हैं। भारत सरकार ने यह सुनिष्चित करने के लिए पर्याप्त कदम उठाए हैं कि दूरसंचार सेवा प्रदाता (टीएसपी) इन मानकों का सख्ती से पालन करें। हम भारत को दूरसंचार सेवाएं से पूरी तरह जोड़े रखने और सषक्त बनाने के लिए लगातार मिलकर काम करना चाहते हैं और इसके लिए हमें और अधिक टावरों की आवष्यकता है।’

दूरसंचार विभाग में डीडीजी (सीएस) डॉ. आर एम चतुर्वेदी ने कहा कि लगभग 30 साल के षोध और दुनियाभर में किए गए 25,000 अध्ययनों के आधार पर डब्ल्यूएचओ इस निश्कर्श पर पहुंचाः ‘भले ही कुछ लोग और अधिक षोध कराने की जरूरत महसूस कर रहे हों, लेकिन इस क्षेत्र में वैज्ञानिक जानकारी अब कई रसायनों के लिए षोध एवं ज्ञान की तुलना में काफी अधिक व्यापक है। मौजूदा साक्ष्य स्वास्थ्य समस्याओं और लो-लेवल इलेक्ट्रोमैग्नेटिक फील्ड्स के बीच किसी तरह का संबंध होने की पुश्टि नहीं करते हैं।’ उन्होंने 50 से अधिक राश्ट्रीय प्राधिकरणों और 8 अंतर्राश्ट्रीय संगठनों से संबद्ध डब्ल्यूएचओ-नियंत्रित ईएमएफ प्रोजेक्ट का भी हवाला दिया। वे वर्श 1996 के बाद से लो-लेवल इलेक्ट्रोमैग्नेटिक फील्ड्स के संभावित खतरों के बारे में लोगों में पैदा हुई चिंताओं के लिए वैज्ञानिक रूप से मजबूत और उपयुक्त जवाब मुहैया कराने के लिए वैज्ञानिक जानकारी की समीक्षा करते रहे हैं। अब तक किए गए गहन षोध के बावजूद इसका कोई सबूत नहीं मिला है कि लो लेवल इलेक्ट्रोमैग्नेटिक फील्ड्स मानव स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक है।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेष पर गठित पांच आईआईटी, आईआईएमएस (दिल्ली), इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टॉक्सीकोलोजी रिसर्च, लखनऊ के विषेशज्ञों वाली समिति ने भी वैज्ञानिक सबूतों, अध्ययनों और उपलब्ध रिपोर्टों के आधार पर यह पाया कि मोबाइल बीटीएस टावर से निकलने वाली ईएमएफ रेडिएशन के खतरे का कोई ठोस प्रमाण नहीं है।

ईएमएफ रेडिएशन के इस महत्वपूर्ण पहलू पर और अधिक प्रकाष डालते हुए एसएमएस मेडिकल कॉलेज, जयपुर में डिपार्टमेंट ऑफ रेडियोलॉजिकल फिजिक्स के प्रोफेसर एवं प्रमुख डॉ. अरुण चोगुले ने कहा कि मोबाइल टावरों से निकलने वाली रेडिएशन सुरक्षित सीमा में हैं और इसका मानव स्वास्थ्य पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता है। डॉ. चोगुले ने ईएमएफ से संबंधित धारणाओं को स्पश्ट करते हुए कहा, ‘ईएमएफ उत्सर्जन और मानव स्वास्थ्य के बीच किसी तरह के संबंध का पता लगाने के लिए कई षोध और वैज्ञानिक अध्ययन पहले ही किए जा चुके हैं, लेकिन अब तक इनके बीच किसी तरह के संबंध की पुश्टि नहीं हुई है। हेल्थकेयर क्षेत्र के विष्लेशक भी इस पर सहमत हैं कि इस धारणा को पुश्ट करने के लिए ऐसा कोई प्रमाण नहीं है कि ईएमएफ उत्सर्जन गंभीर स्वास्थ्य समस्या पैदा कर सकता है।’

टेलीकॉम इन्फोर्समेंट रिसोर्स एंड मॉनीटरिंग (टीईआरएम) यूनिट में सीनियर डीडीजी राम नारायण ने ईएमएफ संबंधित अनुपालन के लिए दूरसंचार विभाग द्वारा निर्धारित सख्त निगरानी और प्रवर्तन व्यवस्था के बारे में विस्तार से बताया। यदि किसी बीटीएस टावर को निर्धारित ईएमएफ मानकों का उल्लंघन करते पाया जाता है तो इस स्थिति में 10 लाख रुपये का जुर्माना लगाया जा सकता है। यदि इस तरह का उल्लंघन बार बार होता है तो टावरों को हटाया भी जा सकता है।

पंजाब और हरियाणा, मद्रास, केरल, गुजरात और इलाहाबाद के उच्च न्यायालयों समेत कई भारतीय अदालतों ने मोबाइल टावरों के रेडिएशन के प्रभाव से संबंधित मामलों की सुनवाई की है और उन्होंने उन याचिकाओं को खारिज कर दिया जिनमें इस आधार पर मोबाइल टावर इंस्टॉलेषन के खिलाफ चिंता जताई गई थी कि वे लोगों के स्वास्थ्य के लिए खतरा हैं।

सरकार ने मोबाइल टावर उत्सर्जन के मुद्दे से जुड़ी गलतफहमी को दूर करने का प्रयास किया है। सरकार ने मोबाइल संचार की सुरक्षा को पुश्ट करने के लिए विभिन्न वैज्ञानिक और षोध संगठनों से सलाह मांगी है। लोगों में इसे लेकर भरोसा पैदा करने के लिए भारत सरकार ने टावरों को केंद्र सरकार के कार्यालयों की छतों पर स्थापित करने की अनुमति देने जैसे कदम उठाए हैं। मोबाइल टावर उत्सर्जन की सच्चाई से अवगत कराने के प्रयास बरकरार रहेंगे। लेकिन इसके लिए लोगों को गलत धारणाओं को पहचानने में सक्षम बनाए जाने की जरूरत होगी। सिर्फ तभी आसान एवं सुगम कनेक्टिविटी संभव होगी।