इलाहाबाद: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक बेहद अहम टिप्पणी करते हुए गुरुवार को ट्रिपल तलाक या मुस्लिम पुरुषों द्वारा सिर्फ तीन बार 'तलाक' कहकर पत्नी को तलाक दे दिए जाने को असंवैधानिक बताया है, और कहा है कि इससे महिला अधिकारों का हनन होता है. हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि कोई भी पर्सनल लॉ बोर्ड देश के संविधान से ऊपर नहीं हो सकता.

गौरतलब है कि तीन बार तलाक को चुनौती देने वाली उन याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में भी सुनवाई जारी है, जिनमें महिलाओं का आरोप है कि उन्हें फेसबुक, स्काइप और व्हॉट्सऐप के ज़रिये भी तलाक दिया जा रहा है.

मुस्लिम भारत में अल्पसंख्यक हैं, लेकिन उनकी तादाद सभी अल्पसंख्यक समुदायों में सबसे ज़्यादा है. भारत के संविधान में मुस्लिमों को उनकी शादियां, तलाक तथा विरासत के मुद्दों को अपने सिविल कोड के ज़रिये तय करने का अधिकार मिला हुआ है.

सुप्रीम कोर्ट की एक पीठ ने इसी साल केंद्र सरकार से यह जांचने के लिए कहा था कि क्या इस कानून में दखल देने से इस समुदाय के मौलिक अधिकारों का हनन होता है.

महिला अधिकारों के लिए संघर्षरत कार्यकर्ता लंबे समय से मुस्लिम पर्सनल लॉ में बदलाव की मांग करते आ रहे हैं. उनके अनुसार मुस्लिम पर्सनल लॉ महिलाओं के प्रति भेदभाव करता है, और समानता के अधिकार का उल्लंघन करता है. महिला कार्यकर्ताओं की मांग है कि एक ऐसा स्पष्ट कानून हो, जो बहुविवाह, एकतरफा तलाक और बालविवाह को अपराध घोषित करे. ये महिला कार्यकर्ता 'हलाला' की प्रथा को भी खत्म करवाना चाहते हैं, जिसके तहत किसी महिला को तलाक के बाद अपने पूर्व पति से दोबारा शादी करने के लिए किसी अन्य पुरुष से विवाह करना और तलाक लेना अनिवार्य है.

सुप्रीम कोर्ट में जिन याचिकाओं पर सुनवाई जारी है, उनमें जयपुर की 25-वर्षीय आफरीन रहमान की अर्ज़ी भी शामिल है, जिसके पति ने उसे स्पीड पोस्ट के ज़रिये तलाक दे दिया था.