नई दिल्ली: सैन्य ठिकानों पर बढ़ते हमले सरकार के लिए चिंता का कारण बने हुए हैं. सेना के जवान बड़ी संख्या में सीमाओं पर तैनात हैं. इसके कारण सैन्य कैंपों की सुरक्षा के लिए जवानों की कमी है. सैन्य ठिकानों की सुरक्षा को लेकर रक्षा मंत्रालय और गृह मंत्रालय में खींचतान चल रही है. सेना कैंपों की सुरक्षा के लिए अर्धसैनिक बल चाहती है जबकि गृह मंत्रालय के अधीन काम करने वाले इंटेलीजेंस ब्यूरो का सुझाव है कि कैंपों की सुरक्षा के लिए प्रशिक्षित कुत्तों को लगाया जाए.

पहले पठानकोट फिर उड़ी और फिर नगरोटा के सैनिक ठिकानों पर आतंकी हमले हुए. यह इसलिए मुमकिन हो रहे हैं क्योंकि सैन्य कैंपों की चौहद्दी जितनी सुरक्षित होनी चाहिए थी, उतनी नहीं है. यह बात सेना भी मानती है. रक्षा मामलों की संसदीय समिति के सामने सेना ने माना है कि उसके पास कैंपों की सुरक्षा के लिए जरूरत के मुताबिक तादाद में जवान नहीं हैं. उसकी ज्यादातर टुकड़ियां सीमा पर लगी हुई हैं. अब कैंपों की सुरक्षा को लेकर गृह मंत्रालय और रक्षा मंत्रालय में खींचतान चल रही है.

सेना का सुझाव है कि इस काम में लोकल पुलिस और अर्धसैनिक बलों को लगाया जाए. जबकि आईबी का सुझाव है कि पैरीमीटर की सुरक्षा में सेना ट्रेंड कुत्तों को लगाए. सेना का कहना है कि प्रशिक्षित कुत्ते मिल नहीं रहे और नए कुत्तों को प्रशिक्षित करने में समय लगेगा.

वैसे रक्षा मंत्रालय ने एक कमेटी भी गठित की है जो सेना के सभी कैंपों की सुरक्षा को लेकर एक रिपोर्ट मंत्रालय को दे चुकी है. इस रिपोर्ट में स्मार्ट फेंसिंग के साथ कैंपों के आसपास लाइट लगाने और आसपास लगी झड़ियां काटने का सुझाव भी है.

केंद्रीय गृह मंत्रालय ने संसदीय कमेटी को यह भी बताया कि नगरोटा पर हुए हमले के पीछे जैश ए मोहम्मद का हाथ था और तीनों आतंकवादी पाकिस्तानी थे. मारे गए आतंकियों के पास से एक चिट मिली जिसमें अफजल गुरु स्क्वॉड लिखा हुआ है. यही नहीं नाइट विजन डिवाइस, हथियार और जीपीएस सेट भी इस बात की तस्दीक करते हैं कि हमलावर पाकिस्तान से ही आए थे.

संसदीय कमेटी ने चिंता जताई कि इंटेलिजेंस की सूचनाएं मिलने के बावजूद इस तरह के हमले हो रहे हैं. संसदीय कमेटी ने केंद्रीय गृह मंत्रालय और रक्षा मंत्रालय को आड़े हाथों लिया और जानना चाहा कि आखिर सेना अपने ही कैंपों की सुरक्षा क्यों नहीं कर पा रही.