लखनऊ। भगवान को पाने के लिए भक्ति मार्ग सबसे श्रेष्ठ मार्ग है। जो भक्ति करते हैं वे किसी की निन्दा या वंदना की परवाह नही करते है। भक्ति से उनके भीतर का अहंकार पिघल जाता है। इसके साथ ही वे सहनशील होते हैं। सहनशीलता भक्ति का पहला सूत्र है। यह बात बीरबल साहनी मार्ग स्थित खाटू मन्दिर में रविवार से शुरु हुई श्रीमद् भागवत कथा के दौरान कोलकाता के कथा व्यास श्रीकांत जी महाराज ने कही। उन्होंने कहा कि जिसके मन में करुणा है दूसरों के दुख को देखकर दुखी हो जाता है। वही भक्ति कर सकता है। भक्ति में किसी प्रकार का स्वार्थ नही होना चाहिए। उन्होंने कहा कि भक्ति बिना स्वार्थ के सबके हित का कार्य करते हैं। भक्ति सरल हृदय वाले व्यक्ति को प्राप्ति होती है। चालाक इसे नही पा सकता। गोस्वामी तुलसी दास मानस में लिखते हैं कि ‘निर्मल मन जन सो कोहिय पावा, कोहि कपट छल छिद्र न भावा’। भगवान सरल व्यक्ति के ही निकट जाते हैं और चालाक से दूर रहते हैं। ज्ञान मार्ग से भी भगवान मिलते है। लेकिन वह साधको का मार्ग है। श्रीकांत जी शर्मा ने कहा कि भक्त जिस सरलता से भगवान को पा जाता है ज्ञानी उतनी सहजता से नही प्राप्त कर पाते हैं। कथा से पहले कलश यात्रा निकाली गई।
कलश यात्रा फैजाबाद रोड स्थित गुड बेकरी ओवरब्रिज के पास इन्दिरा ब्रिज से शुरु हुई जो निशातगंज, न्यू हैदराबाद होते हुए गोमती तट स्थित श्री खाटू श्याम मंदिर पर समाप्त हुई। यात्रा में 108 महिलायें कलश लिये और भगवान के जयकारे लगाते हुये चल रही थी।