ऑल इंडिया उलमा व मशाइख बोर्ड द्वारा '' सूफीवाद और मानवता'' विषय पर सेमिनार आयोजित

लखनऊ: ऑल इंडिया उलमा व मशाइख बोर्ड के बैनर तले विश्वेश्वरय्या सभागार लखनऊ में आयोजित सेमिनार में उलमा ने सूफिया की शिक्षाओं को घर-घर पहुंचाने का संकल्प किया सूफिया के संबंध में भारत के एक विशिष्ट विचारधारा की अचानक बदलती हुई वफादारी पर चिंता भी जताया।

ऑल इंडिया उलमा व मशाईख बोर्ड के संस्थापक व राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना सय्यद मोहम्मद अशरफ किछौछ्वी ने कहा कि आज हज़रत ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती रहमतुल्लाह तआला अलैह का नाम लेकर जो एकता का नारा बुलंद कर रहे हैं हम उनके संदेश का स्वागत करते हैं.लेकिन कुछ शर्तें हैं उन शर्तों को अगर एकता का नारा देने वाले पूरा कर देते हैं तो हम उन्हें अपनी सम्मेलनों अपनी खानकाहों में भी बुलाएंगे और उन्हें अपने गले से भी लगाएंगे।

मौलाना ने कहा कि हम को शक इस लिए हुआ कि जब हम दैनिक इन्किलाब में उनका शजरा देखा जिस में उन्होंने अपना शजरा तरीक़त लिखा है लेकिन दर असल वह शजरा खिलाफत है। और फिर शजरा में जिन लोगों का नाम ख्वाजा गरीब नवाज से मिलाया गया है उन के पुस्तकों में धार्मिक स्थलों पर जाने की मनाही है.व अवलियाउल्लाह से वसीले का इन्कार किया है। ऐसे लोगों का इतिहास जब ख्वाजा गरीब नवाज से मिलाया गया तो जाहिर है कि जो हजरत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती से आस्था रखते हैं उन का फिक्रमंद होना बजा है।

मौलाना किछौछ्वी ने कहा कि एक तरफ तो आप ने दरगाहों पर जाने को मना किया है, बुत परस्ती और हराम बताते हैं, दूसरी ओर आज उनसे अपना रिश्ता जोड़ने की कोशिश कर रहे हो! यह कहते हो कि हमारा सिलसिला वहाबियत से नहीं है बल्कि हमारा सिलसिला चिश्तितय से है।
उन्होंने कहा कि यदि आप वास्तव में चिश्ती बनना चाहते हैं तो ऐसे लोगों से दूरी रखनी होगी जिन लोगों ने अपनी किताबों में सूफिया के माध्यम का इन्कार किया है। जिस दिन ऐसा करके दिखा दोगे उसी दिन हमारा इत्तिहाद हो जायेगा।

उन्होंने इस अवसर पर यह भी कहा कि अहले सुन्नत व जमाअत अपने सारे मतभेद समाप्त करके एक हो जाएं, जब तक आपसी मतभेद खत्म नहीं होगा और इसी तरह से यह लोग सुन्नी मुसलमानों को गुमराह करते रहेंगे।

शाह अम्मार अहमद अहमदी ने कहा कि ऑल इंडिया उलमा व मशाइख बोर्ड भारत में कट्टरपंथी तत्वों को उजागर करने में सफल हुआ है और इस हद तक कि प्रसिद्ध और सक्रिय और अपनी पहचान पर अब तक गर्व करने तथाकथित मुस्लिम संगठन अपने लिए नयी पहचान बनाने की खोज में हैं।

उन्होंने कहा कि लगभग सौ साल के इतिहास में अचानक अपनी पहचान बचाने के लिए हनफ़ी और चिश्ती होने का ढोंग रच रहे हैं वही लोग दस दशकों से सूफीवाद के खिलाफ किताबें लिख कर इस बात का खुला सबूत दे रहे थे कि वह कट्टरपंथी और आतंवादी विचारधारा के उपदेशक और संरक्षक हैं और यह भी कि वह अपने भाषण, लेखन, किताबें, पाठ्यक्रम, शिक्षण से केवल अपने खाड़ी देशों के आकाओं के कट्टरपंथी विचारों का प्रचार किया है। लेकिन अब समय की मांग इससे अलग है। वहाबी पूरी दुनिया में आतंकवाद के हवाले से जाने जाते हैं इसलिए जनता और सरकार दोनों को धोखा देने के लिए सूफीवाद और हजरत ख्वाजा ग़रीब नवाज़ का सहारा लेने की मजबूरी का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि कितने दुख की बात है कि दरगाह ख्वाजा गरीब नवाज को अपनी कट्टरपंथी धार्मिक विचारों की वजह से शिर्क और बिदअत का केंद्र बताते रहने के बाद अचानक ख्वाजा की शरण में अजमेर पहुंच गए हैं। मानो उन्हें भी ख्वाजा अजमेरी का ही वसीला चाहिए।

शाह अम्मार अहमद अहमद ने कहा कि अगर वास्तव में चिश्ती बनना चाते हैं और. और इत्तिहाद के इच्छुक हैं तो उन्हें किसी ऐसी जाति को चुनना होगा जो सभी के लिए योग्य सम्मान हो, हमारी निगाह में सबसे उपयुक्त और अनुकूलित व्यक्ति हज़रत हाजी शाह इम्दादुल्लाह मक्की हैं जिन्होंने '' फैसले हफ्त मसला'' लिखकर बहुत पहले सभी मसलों का समाधान किया था. अकाबरीने देवबंद भी उन्हें अपना पेशवा और मुरब्बी स्वीकार करते हैं। ऐसे हालात में अगर मुसलमानों के बीच एकता चाहते हैं तो हमें हज़रत हाजी शाह इम्दादुल्लाह मक्की के अकीदे और विचारों को स्वीकार करना होगा।
इस सेमिनार में देश के कोने-कोने से भागीदारी के लिए लोग पहुँचे।

सय्यद आलमगीर अशरफ (अध्यक्ष बोर्ड महाराष्ट्र) मौलाना मोहम्मद कैसर रजा अल्वी हनफ़ी, डॉक्टर सईद बिन मखाशिन, सैयद मोहम्मद अनवार (सज्जादा नशीन मकनपुर), डॉ अनवार अहमद खान बगदादी, मौलाना मिसबाहुल मुराद, मुफ्ती सनाउल मुस्तफा, डॉक्टर सैयद शफीक अशरफी, मुफ्ती सय्यद वसीम अशरफ, मौलाना सय्यद मुक्तदा हुसैन मदारी, मुफ्ती हबीबुर्रहमान, मौलाना गयासुद्दीन, मौलाना वजाहत मियां शीरी, मौलाना सय्यद अज्बर अली, मोलाना अनवर अहमद शीरी, मौलाना इकबाल मिस्बाही ने अपने लेख पेश किए।

कार्यक्रम का अंत शाह अम्मार अहमद अहमदी नैयर मियां की दुआ और सलाम पर हुआ।