लखनऊ: जेएनयू से गायब हुए छात्र नजीब अहमद को वापस लाने की मांग को लेकर हजरतगंज जीपीओ स्थित गांधी प्रतिमा के सामने लखनऊ के विभिन्न काॅलेजों के छात्रों ने प्रर्दशन कर राष्ट्रपति के नाम चार सूत्रीय ज्ञापन सौंपा। जिसमें इस पूरे मामले की सीबीआई जांच कराने, नजीब के परिवार की सुरक्षा की गारंटी करने, शिक्षण परिसरों में हिंसा में लिप्त छात्र संगठनों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने और विभिन्न विश्वविद्यालयों के उपकुलपतियों को केंद्र सरकार द्वारा छात्रों की सुरक्षा सुनिश्चत कराने के लिए सख्त दिशा निर्देश देने की मांग की गई है।
स्टूडेंट्स फाॅर डेमोक्रेटिक राइट्स के बैनर तले हुए विरोध प्रर्दशन में इंटिगरल विश्वद्यिालय, बीबीडीयू, एरम मेडिकल काॅलेज, बीएनसीइटी, लखनऊ विश्वविद्यालय, राममनोहर लोहिया विधि विश्वविद्यालय, बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय, शिया पीजी काॅलेज, डाॅ शकुंतला मिश्रा राष्ट्रीय पुर्नवास विश्वविद्यालय के सैकड़ों छात्र शामिल हुए। इस दौरान छात्रों ने ‘नजीब को वापस लाओ’, ‘एबीवीपी पर बैन लगाओ’ कैम्पसों में छात्रों की सुरक्षा की गांरटी करो’ आदि नारे लिखी तख्तियां ले रखी थीं।
छात्रों को सम्बोधित करते हुए अलीगढ़ विश्वविद्यालय के पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष अब्दुल हफीज गांधी ने कहा कि आज 50 दिन बाद भी जेएनयू से गायब हुए छात्र नजीब को ढंूढ़ पाने में मोदी सरकार नाकाम रही है। जो साबित करता है कि केंद्र सरकार अपने समर्थक एबीवीपी कार्यकर्ताओं द्वारा उत्पीड़न के शिकार इस छात्र को ढूंढने में कोई दिलचस्पी नहीं रखती। उन्हांेने कहा कि भाजपा सरकार में विभिन्न कैम्पसों में दलितों, मुसलमानों और संघ परिवार विरोधी वैचारिक संगठनों पर फासीवादी हमले बढ़े हैं। जिससे लोकतंत्र ही खतरे में पड़ गया है।

धरने को सम्बोधित करते हुए इंटिगरल विश्वविद्यालय के छात्र मो0 ओवैस ने कहा कि नजीब का परिवार पिछले 50 दिनों से खौफ और दहशत में जी रहा है। उनका परिवार आने वाले हर अज्ञात फोन को इस उम्मीद से उठाता है कि नजीब का फोन होगा। ये वक्त देश के सभी छात्रों का नजीब के परिवार के साथ खड़े होने का है। क्योंकि आज अगर हम नजीब के साथ नहीं खड़े हुए तो कल हमारे साथ भी कोई नहीं खड़ा होगा। रिहाई मंच के अध्यक्ष मोहम्मद शुऐब ने कहा कि नजीब यूपी के बदायूं का रहने वाला है इसलिए उसकी बरामदगी की मांग सपा सरकार को भी करनी चाहिए थी। लेकिन अपने को मुसलमानों का रहनुमा बताने वाली सपा के सांसदों ने एक बार भी केंद्र सरकार पर नजीब को ढ़ूंढने का दबाव नहीं बनाया। जो साबित करता है कि मुलायम के कुनबे को मुसलमानों का वोट तो चाहिए लेकिन उनकी सुरक्षा की चिंता उसे नहीं है।

धरने को सम्बोधित करते हुए वरिष्ठ पत्रकार सिद्वार्थ कलहंस ने कहा कि समाज के सबसे कमजोर तबकों के छात्रों पर हमला कर लोकतंत्र विरोधी ताकतें देश से लोकतांत्रिक मूल्यों को ही खत्म कर देने पर तुली हैं। रोहित वेमुला और नजीब जैसे छात्र देश के सबसे कमजोर माने जाने वाले दलित और मुस्लिम समाज के प्रतिनिधि हैं। जो तमाम भेदभावों को झेलते हुए उच्च शिक्षण संस्थानों तक पहंुचते हैं। इसीलिए उन्हें मार कर या गायब कर इन समाजों की विकास की गति को रोकने की कोशिश होती है। यह महज इत्तेफाक नहीं है कि दोनों ही मामलों में दलित और मुस्लिम विरोध संघ परिवार के छात्र संगठन एबीवीपी की भूमिका आपराधिक है।

जनआगाज के राष्ट्रीय महासचिव शाहरुख अहमद ने कहा कि पिछली सरकारों में तो सिर्फ कैम्पसों की शिक्षण व्यवस्था पर सवाल उठता था लेकिन मोदी सरकार में तो कैम्पसों से छात्रों को ही गायब कर दिया जा रहा है। इस सरकार की शिक्षा के क्षेत्र में यही एक उपलब्धी है। बीबीडी के छात्र मो0 मिन्नतुल्लाह ने कहा कि नजीब के गायब होने के बाद आज हर मां-बाप अपने बच्चों को किसी विश्वद्यिालय में भेजने से डर रहे हंै। यह डर न सिर्फ किसी परिवार को नुकसान पहंुचाएगा बल्कि देश के विकास को भी बाधित करेगा।

पत्रकार संदीप राऊजी ने कहा कि जो व्यक्ति या संगठन संघ परिवार से असहमत है उसे निशाना बनाया जा रहा है। जबकि साम्प्रदायिक और दलित विरोधी हिंसा करने वालों को खुली छूट मिली हुई है।
जेएनयू के छात्र रहे फैजान, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के पूर्व छात्रनेता मुमताज, एरम मेडिकल काॅलेज के डाॅ कलीम, इंटिगरल विश्वविद्यालय के फरहान, शाहनवाज सिद्दीकी, खालिद, अरजद मलिक ने भी विरोध प्रर्दशन को सम्बोधित किया।

धरने को प्रोफेसर रमेश दीक्षित, डीवाइएफआई के राधेश्याम, एसएफआई के अनुपम यादव, छात्र नेता शरद पटेल और रिहाई मंच प्रवक्ता शाहनवाज आलम ने भी सर्मथन दिया और सम्बोधित किया।