नई दिल्ली: वर्ष 2013 की अंतिम तिमाही से लेकर मई, 2014 में हुए लोकसभा चुनाव तक प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (उस समय वह भारतीय जनता पार्टी की ओर से पीएम पद के प्रत्याशी घोषित कर दिए गए थे) ने कई-कई बार काले धन के खिलाफ जंग का वादा दोहराते हुए हर भारतीय के बैंक खाते में 15-15 लाख रुपये आने की बात कही थी| सरकार बनाने के बाद भी काले धन को लेकर बातें होती रहीं, और विपक्षी दल इस बात का उलाहना देते रहे कि पीएम का चुनावी वादा हवाई वादा बनकर रह गया, और कहीं से किसी तरह का काला धन पकड़ में आने के कोई आसार नज़र नहीं आ रहे हैं।

अब पिछले महीने की 8 तारीख को रात 8 बजे अचानक टीवी पर देश के सामने आकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 500 तथा 1,000 रुपये के नोटों को सिर्फ चार घंटे बाद मध्यरात्रि से बंद कर देने की घोषणा कर दी, और कहा कि इससे काला धन, आतंकवाद और नकली नोटों की समस्या से निजात मिलेगी लेकिन उसके बाद जब से बैंक और एटीएम खुले, देशभर में लंबी-लंबी रेंगती कतारें देखने को मिलीं, और लोगों को अपने-अपने कामकाज छोड़कर छोटे नोटों के लिए (और नए नोटों के लिए भी) घंटों जद्दोजहद करनी पड़ी।

इसके बाद विपक्षी दलों ने अलग-अलग और मिल-जुलकर भी सरकार पर चौतरफा हमला बोल दिया, और जनता को परेशान करने वाले इस फैसले की कड़ी आलोचना करने लगे| लगभग हर बड़ी-छोटी विपक्षी पार्टी ने प्रधानमंत्री के इस फैसले के पीछे की मंशा की तारीफ की, लेकिन इसे जनता के लिए अहितकारी और परेशान करने वाला बताया।

इसी बीच, बिहार सरकार में भागीदार राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के अध्यक्ष तथा राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने बुधवार को एक बार फिर हर भारतीय के बैंक खाते में 15 लाख रुपये लाने के वादे का ज़िक्र कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ताना दिया है, और सवाल किया है कि पीएम जनता को बेवकूफ क्यों बना रहे हैं।