नई दिल्ली। प्रसिद्द अर्थशास्त्री प्रोफेसर अरुण कुमार नोटबंदी के फैसले पर अपनी बेबाक राय रखते हुए कहा कि यह फैसला ऐसा है जैसे किसी ने शरीर से गन्दा खून साफ़ करने के उद्देश्य से 85 प्रतिशत खून तो निकल लिया लेकिन रिप्लेस 5 प्रतिष्ठा ही किया। अब ऐसे में जो हालत रोगी की होगी वही हालत इस समय देश की है ।

प्रोफेसर अरुण कुमार ने सरकार के नोटबंदी के फैसले पर बातचीत करते हुए एक न्यूज़ चैनल पर विस्तार पूर्वक समझाया कि अगर वह 3 लाख करोड़ रुपए डिमॉनटाइज करने में सफल रहती है तो भी यह सिर्फ 1 फीसदी टोटल ब्लैक वेल्थ का और 3 फीसदी से भी कम टोटल ब्लैक इनकम का हिस्सा होगा जो एक साल में जेनरेट होती है। कैश फॉल क्या है? जब आप कैश निकालते हैं, कैश बिजनेस में सर्कुलेट होता है, वर्क फ्रॉम होम में, ट्रेड में हर जगह इस्तेमाल होता है। कैश किसी इकॉनमी के खून की तरह है। अगर आप उसे ही सकआउट कर देंगे। मानिए कि किसी के शरीर से 85 फीसदी खून आप निकाल लें और 5 फीसदी को ही रिप्लेस करें तो इसके गंभीर परिणाम होंगे। संभावना है कि अर्थव्यवस्था ही इससे धराशायी हो जाए। जब आप करेंसी को रिप्लेस कर रहे हैं तो इसमें 8-9 महीने की अवधि लगने वाली है और इस दौरान आपने ट्रांजेक्शन को मुश्किल कर दिया है। आप इनकम के सर्कुलेशन को मुश्किल कर रहे हैं। इंडस्ट्री, बिजनेस में हर जगह। यह इकॉनमी में हैमरेज पैदा कर रहा है और यही वजह है कि सिर्फ ब्लैक ही नहीं बल्कि वाइट मनी भी इफेक्ट हो रही है।
नोटबंदी फैसले के मेरिट और डिमेरिट पर उन्होंने कहा कि पॉइंट ये है कि ये एक सख्त फैसला है, इसमें कोई संदेह नहीं है। 1978 में भी ऐसा कदम उठाया गया था लेकिन उस वक्त बंद किए गए 5 हजार और 10 हजार के नोट किसी ने देखे भी नहीं थे। मेरी जेब में ढाई सौ रुपए बमुश्किल हुआ करते थे। मैंने 5 हजार और 10 हजार के नोट कभी नहीं देखे थे। लेकिन आज 500 और 1 हजार रुपए के नोट हर किसी के पास हैं, गरीबों को छोड़कर। 500 और 1 हजार रुपए को जब आप निकाल रहे हैं तो आप सिर्फ ब्लैक इनकम को ही नहीं बल्कि पूरे बिजनस को इफेक्ट कर रहे हैं। जो ब्लैक इकॉनमी जेनरेट नहीं कर रहे हैं वो भी इफेक्ट हो रहे हैं। ये इसका एक नेगेटिव पहलू है।

पॉजिटिव पहलू ये है कि टेंपररी पीरियड के लिए आपके ब्लैक मनी को अलग कर दिया है। 3 लाख करोड़ कैश है, लेकिन चालाक लोग इसे आसानी से रिसाइकल कर लेंगे। एक बिजनेसमैन ने कहा कि उसके पास 20 करोड़ रुपए कैश हैं और उसने वर्कर्स को 4 महीने की सैलरी अडवांस में दे डाली। ऐसी रिपोर्ट्स हैं कि जन धन योजना में, मालिक मजदूरों का इस्तेमाल कर ब्लैक मनी को वाइट कर रहे हैं। ज्वैलरी खरीदकर बैक डेट की रिसिप्ट दी जा रही है। यह खेल छोटा और अनिश्चित है लेकिन इससे होने वाला नुकसान बहुत बड़ा।