लखनऊ: लखनऊ साहित्य फेस्टिवल में “पार्टिसिपेशन एंड पोजिशन ऑफ वोमेन- अपराइजिंग ऑफ 1857- रिडिफिनिशन ऑफ सोशल स्टैटसः देन एंड नाउ“ नामक एक महान राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय महत्व की पुस्तक का विमोचन किया गया। इसकी लेखिका, प्रोफेसर कीर्ति नारायण ने इस कार्यक्रम के विभिन्न पहलुआें को बताया लेकिन उनका मुख्य फोकस ‘महिला कारक’ पर था। यह विमोचन कार्यक्रम प्रभावशाली था और वह इस स्तर पर विद्रोह से जुड़े कई खिलाड़ियों की वंशज थीं। मुख्य अतिथि नवाब वाजिद अली शाह की पहली बेगम के वंशज डा0 एस0ए0 सादिक थे। अंतिम मुगल शासक बहादुर शाह द्वितीय की पौत्रवधु सुल्ताना बेगम कोलकाता से आई थीं। बेगम हजरत महल की वंशज मंजिलत भी कोलकाता से आई थीं। इसके अलावा, इस विद्रोह के दौरान अन्य अज्ञात लेकिन महत्वपूर्ण वंशज थे जिन्होंने कई प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तरीकों से सहयोग करने में असली भूमिका निभाई थी।

इस विमोचन कार्यक्रम में लेखक द्वारा की गई प्रस्तुति द्वारा जीवंत पैनल चर्चा की गई। इस पैनल का संचालन क्लेयरमाउंट मैकेना कॉलेज, क्लेयरमाउंट, कैलीफोर्निया में दक्षिण एशियाई इतिहास की ब्राउन फेमिली प्रोफेसर नीता कुमार द्वारा किया गया। अन्य प्रख्यात पैनलिस्ट वाइस-एडमिरल पी0एस0 दास थे, जिन्होंने राष्ट्रीय सुरक्षा विशेषज्ञ समूह में होते हुए प्रधानमंत्री के कार्यालय में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड में भी सेवा की है। दिल्ली विश्वविद्यालय की इतिहासकार और प्रोफेसर सीमा अल्वी भी मौजूद थीं। एडमिरल दास ने कहा, “डा0 नारायण का कार्य मौलिक प्रकृति का है तथा इसे अभी तक वृहद रूप से स्पर्श नहीं किया गया है। यह केवल इतिहासकारों के लिए ही नहीं बल्कि सभी भारतीयों के लिए उपयोगी पुस्तक होगी।“ अल्वी ने टिप्पणी की, “यह पुस्तक महिला विद्रोहियों के योगदान को दर्शाते हुए 1857 के विद्रोह पर प्रकाश डालती है। सुंदर ढंग से प्रस्तुत की गई, कर्तव्यपूर्ण ढंग से शोध की हुई और स्पष्टतापूर्वक लिखी गई यह पुस्तक इतिहासकारों और प्रबुद्ध पाठकों दोनों के लिए एक उपहार है।“

लेखिका की बातें

प्रोफेसर नारायण ने कहा कि यह पुस्तक कई सालों की प्राथमिक और द्वितीयक शोध का नतीजा है। इसमें व्यापक यात्रा और वंशजों और विशेषज्ञों के व्यक्ति साक्षात्कार शामिल है। “हमने कई अज्ञात महिलाओं को प्रकट किया है जो समाज के विभिन्न हिस्सों की थीं और उन्नति में अपना योगदान दिया है।“ प्रोफेसर नारायण गिरि इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट स्टडीज, लखनऊ में परियोजना निदेशक थीं, जहाँ “मेरी एक अद्भुत शोध सहायिका, डा0 अमीना हसन थीं, जो इस पुस्तक की रीढ़ की हड्डी हैं। भूगोलवेत्ता के रूप में उन्होंने मेधावी इतिहासकार होना साबित किया है।“

वह जय हिंद कॉलेज, मुंबई के प्रधानाचार्य पद से सेवानिवृत्त हुईं और हांगकांग के चीनी विश्वविद्यालय में अनुबद्ध प्रोफेसर थीं, जहाँ उन्होंने भारतीय इतिहास को पेश किया। उन्होंने महिलाओं पर व्यापक रूप से काम किया है, बहुत ज्यादा व्यापक रूप से प्रकाशन किया है तथा कई पुरस्कार प्राप्त किये हैं। इस पुस्तक के संबंध में तीन कार्यक्रम दिल्ली और कोलकाता में विमोचन कार्यक्रम के बाद दिसंबर में मुंबई में होने हैं। “लखनऊ मेरे लिए महत्वपूर्ण हैं, क्यांकि मैंने लोरेटो और विश्वविद्यालय से पढ़ाई की है, अतः मैंने यहाँ पर प्रथम विमोचन करने की योजना बनाई।“