नई दिल्ली: विश्व प्रसिद्ध फ्रांसीसी अर्थशास्त्री गॉय सोरमन ने मंगलवार को कहा कि भारत सरकार का 500 और 1,000 का नोट बंद करने का फैसला एक स्मार्ट राजनीतिक कदम है, लेकिन इससे भ्रष्टाचार समाप्त नहीं होगा. उन्होंने कहा कि 'अधिक नियमन' वाली अर्थव्यवस्था में भ्रष्टाचार बढ़ता है. सोरमन ने कहा कि राजनीतिक नजरिये से बैंक नोटों को बदलना एक स्मार्ट कदम है. इससे कुछ समय के लिए वाणिज्यिक लेनदेन बंद हो सकता है और अर्थव्यवस्था सुस्त पड़ सकती है, हालांकि, यह भ्रष्टाचार को गहराई से खत्म नहीं कर सकता. सोरमन ने पीटीआई से साक्षात्कार में कहा, 'अत्यधिक नियमन वाली अर्थव्यवस्था में भ्रष्टाचार बढ़ता है. भ्रष्टाचार वास्तव में लालफीताशाही और अफसरशाही के इर्दगिर्द घूमता है. ऐसे में भ्रष्टाचार को कम करने के लिए नियमन को कुछ कम किया जाना चाहिए.' उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जल्दबाजी में संचालन का तरीका कुछ निराशाजनक है. इसके लिए पहले से बताए गए कार्यक्रम के जरिये एक स्पष्ट रास्ता एक अधिक विश्वसनीय तरीका होता. सोरमन ने कई पुस्तकें लिखी हैं. इनमें ‘इकनॉमिस्ट डजन्ट लाई : ए डिफेंस ऑफ द फ्री मार्केट इन ए टाइम ऑफ क्राइसिस’ भी शामिल है. जानी-मानी अर्थशास्त्री और वित्त मंत्रालय की पूर्व प्रधान आर्थिक सलाहकार इला पटनायक ने कहा कि प्रधानमंत्री द्वारा अचानक 500 और 1,000 का नोट बंद करने के फैसले के कई उद्देश्य हैं. इससे निश्चित रूप से वे लोग बुरी तरह प्रभावित होंगे, जिनके पास नकद में कालाधन है. भ्रष्ट अधिकारी, राजनेता और कई अन्य सोच रहे हैं कि वे इस स्थिति में नकदी से कैसे निपटें.' हालांकि, इसके साथ ही उन्होंने कहा कि मौजूदा ऊंचे मूल्य के नोटों को नए नोटों से बदला जाएगा. ऐसे में यह नहीं कहा जा सकता कि भ्रष्टाचार में नकदी का इस्तेमाल बंद हो जाएगा. पटनायक ने कहा कि इस आशंका में कि फिर से नोटों को बंद किया जा सकता है, भ्रष्टाचार में डॉलर, सोने या हीरे का इस्तेमाल होने लगेगा.