नई दिल्ली। मशहूर अर्थशास्त्री देविंदर शर्मा का मानना है कि नोटबंदी का फैसला दरअसल बैंकों के खस्ता हालात ठीक करने लिए लिया गया है। इसका एक बड़ा मकसद ये भी है। शर्मा ने कहा कि कई सरकारी बैंकों के डूबने का खतरा पैदा हो गया था। एक बैंक भी डूबता तो बड़ी दिक्कत शुरू हो सकती थी। ऐसे में अब मोदी सरकार के पास लोगों के घरों की सेविंग बैंकों में जमा करवाने के अलावा बैंकों को बचाने का दूसरा कोर्इ चारा नहीं था।
बैंकों की रिपोर्ट के मुताबिक नोटबंदी के बाद पहले तीन दिन में तीन लाख करोड़ रुपये एकत्र किए गए हैं। लेकिन उद्योगपतियों को जो टैक्स माफ किया गया है वह इससे बहुत अधिक है। सरकारों ने उद्योगपतियों को पिछले 12 साल में करीब 48 लाख करोड़ रुपये की टैक्स छूट दे दी है। अकेले वर्ष 2015-16 में ही उद्योगपतियों के 6.23 लाख करोड़ रुपये माफ किए गए हैं।
क़र्ज़ माफ करने के पीछे सरकार की ओर से तर्क दिया गया कि इससे एक्सपोर्ट बढ़ेगा और जॉब क्रिएट होंगे लेकिन ऐसा नहीं हो पाया है। पिछले तीन साल में बैंकों ने उद्योगपतियों का 1.14 लाख करोड़ रुपये का एनपीए माफ किया गया है। पार्लियामेंट में बताया गया है कि करीब 6 लाख करोड़ रुपये का और एनपीए है। अगर सरकार के पास ये पैसा होता तो बैंकों में वो इतना डाल सकती थी। इससे बैंकों की सेहत अच्छी रहती। अर्थशास्त्री मानते हैं कि अब सरकार के नए कदम से बैंकों में पैसा आ जाएगा। वह अपनी ब्याज दरें सस्ती कर देंगे। लेकिन चुनौती ये है कि यह पैसा वापस एनपीए में न चला जाए।
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