नई दिल्ली: जनवरी 2014 में जब यूपीए सरकार ने 2005 से पहले जारी हुए 31 मार्च तक के नोट बदलने का फैसला लिया था तब बीजेपी प्रवक्ता मीनाक्षी लेखी ने तत्कालीन वित्त मंत्री के इस कदम की आलोचना की थी. बीजेपी की प्रवक्ता मीनाक्षी लेखी ने तत्कालीन वित्तमंत्री पी. चिदंबरम को निशाने पर लिया था और कालेधन पर अंकुश लगाने के लिए नोटबंदी के इस फैसले को लेखी ने 'गरीब विरोधी' कदम करार दिया था.

लेखी ने कहा था '500 के नोट को विमुद्रीकरण करने की वित्त मंत्री की नई चाल विदेशों में जमा काले धन को संरक्षण प्रदान करने की है…यह कदम पूरी तरह से गरीब-विरोधी है.'

उन्होंने पी. चिदंबरम पर 'आम औरत' और 'आदमी' को परेशान करने की योजना बनाने का आरोप लगाया था. खासकर उन लोगों को जो अशिक्षित हैं और जिनके पास बैंक खाता नहीं है. उन्होंने अपने बयान में कहा था कि देश की 65 फीसदी जनता के पास बैंक खाते नहीं है. ऐसे लोग नकद पैसे रखते हैं और पुराने नोट को बदलने से उन्हें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा. मीनाक्षी लेखी ने कहा था 'ऐसे लोग जिनके पास छोटी बचत है, बैंक खाता नहीं है, उनकी जिंदगी प्रभावित होगी. वर्तमान योजना से कालेधन पर लगाम नहीं लगेगी.'

तीन साल बाद जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र के नाम संदेश देकर 500 और 1000 रुपये के नोट पर बंदी लगा दी है और करोड़ों लोग बैंक में लंबी लाइन लगाकर नोट बदलने का इंतजार कर रहे हैं, ऐसी स्थिति में बीजेपी ने मीनाक्षी लेखी की जगह भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को सरकार के बचाव में उतार दिया है.

भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने कहा कि सरकार के निर्णय का विरोध करने वाली विपक्षी पार्टियां कालेधन का समर्थन करती हैं. उन्होंने कहा 'मैं कालाधन रखने वालों, नकली नोट, आतंकवादियों, हवाला कारोबारियों, नक्सलवादियों और ड्रग तस्करों का दर्द समझ सकता हूं. मुझे सबसे ज्यादा हैरानी इस बात से हुई कि इसमे कुछ राजनीति पार्टियां भी शामिल हैं.'
हालांकि पीएम मोदी के इस कदम की प्रशंसा हो रही है लेकिन कई विपक्षी दलों ने सरकार पर निशाना साधते हुए कहा है कि इससे गरीबों को परेशानी हो रही है.