श्रेणियाँ: उत्तर प्रदेश

जमीअत उलमा ने मतदाता जागरूकता रैली निकाली

कानपुर :- भारत के धर्मनिरपेक्षता को मजबूत बनाने, अधिकारों को पाने और देश की समृद्धि व विकास के लिये वोट का उपयोग करने के लिए मतदाता सूची में प्रविष्टि चाहिए जिसकी अवधि बढ़ाकर 15 नवंबर कर दी गई है इस अवसर का लाभ अवश्य लें और अपना और अपने बच्चों के जो 18 साल की उम्र के हो गए हैं उनका मतदाता सूची में करवायें और इस बात को सुनिश्चित कर लें कि आपका नाम मतदाता सूची में है , यह जाँच लें अगर कोई गलती हो तो उसे सही करा लें इन विचारों को जमीअत उलमा के प्रदेश अध्यक्ष मौलाना मुहम्मद मतीनुल हक़ उसामा क़ासमी ने मतदाता जागरूकता रैली को झण्डी दिखाने के बाद व्यक्त किया।
मौलाना मुहम्मद मतीनुल हक उसामा क़ासमी ने कहा कि देश को आजाद कराने और यहां लोकतंत्र को मजबूत करने और यहां के नागरिकों को बराबरी का अधिकार दिलाने के लिए हमारे पूर्वजों विशेष कर उलमा किराम ने जो कुर्बानियां दी हैं उन्हें भुलाया नहीं जा सकता है। चूंकि हमारे देश की व्यवस्था लोकतांत्रिक है, लोकतंत्र की रक्षा और संरक्षण के लिए उलेमा ने हमेशा संघर्ष किया है इसी संदर्भ में जमीअत उलमा कानपुर नगर द्वारा मतदाता सूची में प्रविष्टि के लिए जागरूकता रैली निकालकर लोगों को इसका महत्व बताया जा रही है क्योंकि हमारे देश में मतदान के द्वारा ही सरकारों का गठन होता है और मतदान के लिए सूची में नाम होना चाहिए। हमारे देश का हर वयस्क पुरूष-महिला अपने वोट के द्वारा सरकार बनाने और गिराने पावर रखता है वोट डालना हमारी राजनीतिक व समाजी ज़िम्मेदारी है अपने मताधिकार के प्रयोग के लिए हम खुद भी अपना नाम दर्ज करायें और अपने घर के लोगों को दोस्त और मित्रों को भी प्रोत्साहित करें। कुछ लोग ये भी सोचते हैं कि लाखों वोटों की तुलना में एक व्यक्ति के वोट की क्या स्थिति है? इससे देश और राष्ट्र के भविष्य पर क्या प्रभाव हो सकता है? लेकिन खूब समझ लीजिए कि अव्वल तो अगर हर व्यक्ति यही सोचने लगे तो ज़ाहिर है कि पूरी आबादी में किसी एक वोट का भी सही उपयोग नहीं हो सकेगा ये सोच सरासर गलत है क्योंकि मतदाता सूची में प्रविष्टि मताधिकार के अलावा भी बहुत महत्वपूर्ण है ये देश के निवासी होने का सबूत देता है और कई अवसरों पर यह आवश्यकता आती है। मौलाना ने हिदायत की कि देश की लोकतांत्रिक प्रणाली को मजबूत बनाने में जो जिम्मेदारियों हमारे ऊपर लागू होती हैं, हम उन्हें पूरी करें।

कानपुर :- उच्चतम न्यायालय और वर्तमान भारत सरकार की ओर से तीन तलाक को बहाना बनाकर इंसानी फितरत के मुताबिक इस्लाम धर्म के खूबसूरत निज़ाम को मिटाने की नाकाम कोशिश किये जाने पर समाज में निकाह, तलाक पोषण और विरासत के संबंध में कम ज्ञान व अज्ञानता के कारण पैदा होने वाली गलतफहमी के निवारण , जागरूकता पैदा करने और सरकार द्वारा मुस्लिम पर्सनल ला में हस्तक्षेप की कोशिश को विफल करने के साथ ही मुसलमानों और देशवासियों को तलाक क्यों?, कब? और कैसे? यानी तलाक की जरूरत, कारण और तरीके के मार्गदर्शन और इस्लामी कानून ए तलाक के लाभ से अवगत करने और इसके दुरुपयोग को रोकने के लिए जमीअत उलमा नगर व कुल हिन्द इस्लामिक इल्मी अकादमी कानपुर की ओर से उलेमा, इमामों और बुद्धिजीवियों का एक जलसा हक एजुकेशन एंड रिसर्च फाउण्डेशन जमीअत बिल्डिंग रजबी रोड कानपुर में प्रदेश अध्यक्ष हज़रत मौलाना मुहम्मद मतीनुल हक उसामा क़ासमी अध्यक्ष कुल हिन्द इस्लामिक इल्मी अकादमी व कार्यवाहक काजी ए शहर कानपुर की अध्यक्षता में आयोजित हुआ।
जलसे में मदरसा मज़हरूल उलूम निखट्टू शाह के प्राचार्य व इस्लामिक इल्मी अकादमी के महासचिव मुफ्ती इकबाल अहमद क़ासमी ने शिरकत करते हुए फरमाया कि तलाक-एक नापसंदीदा काम है लेकिन जिस निज़ाम ए शादी में तलाक का विकल्प न हो वह पूरा निज़ाम नहीं है। यही वजह है कि दुनिया की जिन क़ौमों ने तलाक का विकल्प नहीं रखा है उनकी हालत नाक़ाबिले दीद है। इस्लामी निज़ाम ए निकाह में तलाक का विकल्प रखा ताकि अगर बदक़िस्मती से मियाँ-बीवी में अनबन हो जाए और सुलह की सारी कोशिशें विफल हो जाये तो बहुत ही आसानी से अलग हो सके। उन्होंने कहा कि यह बात सरासर गलत है कि केवल पुरुषों को तलाक का अधिकार दिया गया है बल्कि स्त्री को भी तलाक देने का अधिकार दिया गया है जैसे खुला, तफ्वीज़ ए तलाक और फस्खे निकाह। उन्होनें तलाक की खर्चां के मसले की व्याख्या करते हुए कहा कि इस्लाम में औरत को कभी असहाय नहीं रखा गया इसके खर्चां की पूरी जिम्मेदारी कहीं पिता, पुत्र व अन्य लोगों पर है तथा बच्चों की परवरिश की पूरी लागत भी वह पूर्व पति से ले सकती है।
कार्यक्रम के अध्यक्ष मौलाना मुहम्मद मतीनुल हक़ उसामा क़ासमी ने कहा कि समस्या समानता का नहीं कामों के वितरण का है, इस्लामी शरीअत न्याय पर आधारित है इसीलिए इस्लाम ने पुरुषों और महिलाओं के स्वभाव व संरचना को ध्यान में रखते हुए दोनो लोगों के काम और सारी जिम्मेदारी बिल्कुल अलग-अलग रखी हैं। जो काम पुरुष अंजाम दे सकता है वह औरत नहीं कर सकती और जो काम औरत कर सकती है वह पुरुष नहीं कर सकता। इस्लाम ने पुरूष को वह जिम्मेदारियांँ दी हैं जो वह बखूबी निभा सकता है और औरत को वह जिम्मेदारियां दी हैं जो उसके स्वभाव के अनुकूल हैं। इसीलिए उनके अधिकार भी अलग रखे हैं। जहाँ तक अधिकारों का संबंध है दोनों के स्वभाव और संरचना के आधार पर बराबर रखे गयें हैं। उन्होंने सवाल किया कि जिन लोगों ने महिला को स्वतंत्रता के नाम पर घर से निकाला उन्होंने औरत को कौन से सम्मान के काम दिए सिवाये थर्ड क्लास के काम करने के! महिलाओं को क्या दिया? इस पर निगाह रखने की जरूरत है।
कार्यक्रम के अन्त में लोगों के द्वारा पूछे गए प्रश्नों के उत्तर मदरसा जामे उल उलूम के शिक्षक व मुफ्ती हक़ एजूकेशन वाइस चेयरमैन मौलाना मुफ्ती अब्दुर्रशीद कासमी ने दिए।

Share

हाल की खबर

सरयू नहर में नहाने गये तीन बच्चों की मौत, एक बालिका लापता

मृतको में एक ही परिवार की दो सगी बहने, परिजनो में मचा कोहरामएसडीएम-सीओ समेत पुलिस…

मई 1, 2024

बाइक सवार दोस्तों को घसीट कर ले गई कंबाइन मशीन, एक की मौत, दूसऱे की हालत गंभीर ,लखनऊ रेफर

बाइक सवार मित्रों को गांव से घसीटते हुए एक किलो मीटर दूर ले गई,सहमे लोग…

मई 1, 2024

एचडीएफसी बैंक के पेजैप ऐप को ‘सेलेंट मॉडल बैंक’ का पुरस्कार मिला

मुंबईएचडीएफसी बैंक के मोबाइल ऐप पेज़ैप (PayZapp) को 'सेलेंट मॉडल बैंक' अवार्ड मिला है। एचडीएफसी…

मई 1, 2024

पत्रकारों के पेंशन और आवास की समस्या का होगा समाधानः अवनीष अवस्थी

-कम सैलरी में पत्रकारों का 24 घंटे काम करना सराहनीयः पवन सिंह चौहान -यूपी वर्किंग…

मई 1, 2024

पिक्चर तो अभी बाक़ी है, दोस्त!

(व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा) हम तो पहले ही कह रहे थे, ये इंडिया वाले क्या…

मई 1, 2024

आज के दौर में ट्रेड यूनियन आंदोलन और चुनौतियां

(अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस पर विशेष आलेख : संजय पराते) आजादी के आंदोलन में ट्रेड यूनियनों…

मई 1, 2024