नई दिल्ली: भारत की चुनावी प्रक्रिया में सुरक्षा की एक और परत जोड़ पाने में सक्षम एक कदम को गृहमंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता वाले मंत्रियों के समूह ने नामंज़ूर कर दिया है. मंत्रियों ने निर्णय किया है कि निर्वाचन आयोग को टोटलाइज़र वोटिंग मशीनों का इस्तेमाल शुरू करने की अनुमति नहीं दी जाए, क्योंकि उसमें सभी पोलिंग स्टेशनों के आंकड़े एकत्र हो जाने के बाद यह पता चलना कठिन हो जाएगा कि किस बूथ से किस पार्टी या प्रत्याशी को कितने वोट मिले.

निर्वाचन आयोग इन मशीनों को इस्तेमाल करने की तैयारी एक दशक से भी अधिक समय से कर रहा है. बहरहाल, सरकार इसके खिलाफ रही है, क्योंकि उसका तर्क है कि इस मशीन के आ जाने के बाद पोलिंग बूथ प्रबंधन में दिक्कतें आएंगी.

'80 के दशक में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन या ईवीएम का इस्तेमाल शुरू होने से पहले मतपत्र, यानी बैलट पेपर पर वोट डाले जाते थे, और सभी पोलिंग बूथों के बैलट पेपरों को मिला दिया जाता था, ताकि गोपनीयता बनी रहे, और उससे भी मतदाताओं का रुख पहचानना कठिन होता था.

ईवीएम के आने के बाद यह पता चलना सरल हो गया कि किस पोलिंग स्टेशन में किस पार्टी या प्रत्याशी को कैसा समर्थन हासिल हुआ, जिससे राजनेताओं तथा उनकी पार्टियों के लिए यह पहचान करना सरल हो गया कि कहां उन्हें ज़्यादा वोट मिले, और कहां के लोगों ने उन्हें खारिज कर दिया है. अधिकारियों का कहना है कि इसकी वजह से प्रत्याशी जीतने के बाद उन पोलिंग बूथों के इलाके में विकास कार्यों की अनदेखी करने लगते हैं, जहां से उन्हें कम वोट मिले थे.

टोटलाइज़र मशीन की मदद से सभी इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) को केबल (तार) के ज़रिये एक साथ जोड़ा जा सकता है, जिससे एक चुनाव क्षेत्र के सभी वोट एक साथ दर्ज हो जाते हैं, और एक साथ ही गिने जा सकते हैं. चुनाव आयोग ने टोटलाइज़र मशीन का इस्तेमाल शुरू किए जाने को लेकर सभी राष्ट्रीय दलों से चर्चा की थी, और अधिकतर ने इसे स्वीकार कर लिया था.