आदिवासियों की विधानसभा सीट की के लिए दुद्धी से लेकर दिल्ली तक होगा आंदोलन

लखनऊ: मोदी सरकार आदिवासी समाज के खिलाफ युद्ध में उतरी हुई है और आदिवासी समाज पर चौतरफा हमला बोल दिया गया है। इस सरकार ने आदिवासी समाज के लिए आरक्षित दुद्धी और ओबरा सीट छीन ली है। भारत निर्वाचन आयोग द्वारा इन सीटों को आरक्षित करने के आदेश के बावजूद इस सरकार ने संसद में 4 जुलाई, 2014 को ‘संसदीय और विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति प्रतिनिधित्व’ का पुनः समायोजन विधेयक (तीसरा) 2013 वापस लेकर आदिवासी समाज को राजनीतिक प्रतिनिधित्व से वंचित कर दिया है। सरकार के इस आदिवासी विरोधी कदम के खिलाफ दुद्धी से लेकर दिल्ली तक संघर्ष होगा।
यह ऐलान दुद्धी के गोड़वाना भवन में कल आयोजित बैठक में पूर्व विधायक व मंत्री विजय सिंह गोड ने किया। उन्होंने कहा कि आदिवासी समाज को विकास की मुख्यधारा से काट दिया गया है। आज भी उ0 प्र0 का कालाहाड़ी सोनभद्र का आदिवासी क्षेत्र है जहां गांव में जाने के लिए सड़क तक नहीं है, लोग चुआड़, नालों और बांध से पानी पीकर मरने के लिए अभिशप्त है। इस क्षेत्र में शिक्षा और इलाज तक की व्यवस्था नहीं है। इन हालातों से आदिवासी समाज को बचाने की कौन कहें मोदी जी की सरकार ने तो सत्ता में आते ही आदिवासियों व दलितों के विकास के लिए बजट में आवंटित होने वाली धनराशि में भी 32,105 करोड़ रूपए की भारी कटौती कर दी। आदिवासियों के लिए 2014-15 में आंवटित 26,714 करोड़ को घटाकर 2015-16 में 19,980 करोड़ और 2016-17 में 23,790 करोड़ रूपए कर दिया गया है। इसके साथ ही हमारे जीवन को जीने के लिए जरूरी मनरेगा, शिक्षा, स्वास्थ्य व छात्रवृत्ति के बजट में भी भारी कटौती कर दी है।
सम्मेलन में आल इण्डिया पीपुल्स फ्रंट (आइपीएफ) के प्रदेश महासचिव दिनकर कपूर ने कहा कि मोदी जी की
सरकार संविधान की रक्षा करने में विफल साबित हुई है। संविधान के उद्देश्य में ही कहा गया है कि सरकार भारत के हर नागरिक के आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक अधिकार की हर हाल में रक्षा करेगी। बाबजूद इसके उ0 प्र0 के दस लाख से भी ज्यादा आदिवासी समाज के लोकतांत्रिक अधिकारों पर यह सरकार हनन कर रही है। उन्होंने भाजपा और उसके वर्तमान सांसद से सवाल किया कि निर्वाचन आयोग की अधिसूचना के बाद भी आदिवासियों की सीट इनकी सरकार ने क्यों छीन ली? उन्होंने कहा कि मोदी सरकार ने वनाधिकार कानून के अंतर्गतआदिवासियों को मिलने वाली ज़मीन के 92,406 दावों में से 74,701 अर्थात 81% दावे रद्द कर डाई हैं और 17,705 दावों में ही ज़मीं दी है. इससे उत्तर प्रदेश के आदिवासियों में घोर निराशा और आक्रोश व्याप्त है. इसके साथ ही सरकार वृक्षारोपण के लिए कैम्पा कानून बनाकर वनाधिकार कानून को खत्म करने में लगी है।
सम्मेलन में भारत निर्वाचन आयोग के दुद्धी व ओबरा विधानसभा सीट को आदिवासी समाज के लिए आरक्षित करने के आदेश को हर हाल में मोदी सरकार से लागू कराने, वनाधिकार कानून के तहत जमीन पर अधिकार लेने, कोल, धागंर समेत 7 अन्य जातियों को आदिवासी का दर्जा देने व गोड़, खरवार समेत आदिवासी का दर्जा पायी 10 जातियों को चंदौली समेत पूरे प्रदेश में आदिवासी का दर्जा देने और आबादी के अनुसार आदिवासियों को बजट में हिस्सा देने जैसे सवालों पर आदिवासी अधिकार अभियान शुरू करने का निर्णय लिया गया। इस अभियान के लिए एक मंच का भी गठन किया गया। सम्मेलन में 13 सितम्बर को बभनी, 14 सितम्बर को घोरावल, 15 सितम्बर को दुद्धी, 16 सितम्बर को नगवां, 17 सितम्बर को म्योरपुर, 18 सितम्बर को ओबरा, 19 सितम्बर को चतरा में आदिवासी अधिकार सम्मेलन करने और 20 सितम्बर को कलेक्ट्रेट राबर्ट्सगंज में प्रदर्शन करने का निर्णय लिया गया। सम्मेलन में आदिवासी समाज के अस्तित्व को बचाने की इस लड़ाई में आदिवासी हितैषी हर दल, संगठन और व्यक्ति से शामिल होने के लिए अपील की गयी।
सम्मेलन को आशीष कुमार, रामायन गोड़, राजेन्द्र ओयमा, बबई मरकम, रामाशंकर ओयमा, रामबरन पूर्व प्रधान, रामरूप, अरविन्द, बसंत प्रधान, सुरेन्द्र पाल, जमुना भाई, गुड्डू, अजंनी पटेल, संजय गोड़, साबिर हुसैन आदि ने सम्बोधित किया। सम्मेलन में पूरे सोनभद्र जिले से सैकड़ों आदिवासी प्रतिनिधि उपस्थित रहे।