लखनऊ: यूपी सीआइसी जावेद उस्मानी की मुश्किलें थमने का नाम ही नहीं ले रहीं हैं. लगता हैं कि सूबे के आरटीआई कार्यकर्त्ता उस्मानी की हर गतिविधि पर अपनी पैनी नज़र बनाए हुए हैं और ये कार्यकर्त्ता उस्मानी की किसी भी चूक पर उनको कटघरे में खड़ा करने का कोई भी मौका छोड़ना नहीं चाहते है. फिर चाहे वह उस्मानी का सूचना आयोग में ऑडियो-वीडियो रिकॉर्डिंग न कराने का फैसला हो, आयोग में यौन उत्पीडन जांच समिति के गठन में देरी होने का मामला हो या कोई और मामला, आरटीआई एक्टिविस्ट हर मामले में सीआइसी को घेरते नज़र आ रहे हैं ।

जानकारों की मानें तो सूबे के सूचना आयोग और एक्टिविस्टों के बीच की यह जंग अब सांप-नेवले की लड़ाई जैसी होती जा रहे है जिसमें कोई भी पक्ष न तो हार मानने को तैयार है और न ही पीछे हटने को । हालिया मामला इसी सितम्बर माह में आरटीआई से जुड़ी एक चार दिवसीय कार्यशाला के शुभारंभ पर गोरखपुर में सीआइसी उस्मानी द्वारा दिए गए उदबोधन से सम्बंधित बताया जा रहा है जिसमें एक्टिविस्टों ने उस्मानी पर भ्रष्टाचार करके राजकोष को क्षति पंहुचाने और कथनी-करनी में अंतर करने का अपराध करने का आरोप लगाते हुए उस्मानी को दण्डित कराने की अर्जी उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और सूबे के राज्यपाल को भेजी है । गोरखपुर से प्रकाशित एक दैनिक समाचार पत्र में छपी खबर को आधार बनाते हुए की गयी शिकायत की प्रति को एक्टिविस्टों ने भारत के राष्ट्रपति, उप राष्ट्रपति, प्रधान मंत्री, सूबे के मुख्य मंत्री, इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश समेत दर्जन भर प्राधिकारियों को भी भेजा है ।

आरटीआई कार्यकर्ताओं का नेतृत्व कर रही वरिष्ठ समाजसेविका उर्वशी शर्मा ने बताया कि संदर्भित समाचार के अनुसार उस्मानी ने आरटीआई के पुराने गुनहगारों को माफी देने की घोषणा की है और कहा है कि सूचना का अधिकार कानून के तहत एक दशक तक जानकारी और जुर्माना न देने वाले ज्यादातर जन सूचना अधिकारियों (पीआईओ) पर अब कार्रवाई हो पाना मुमकिन नहीं है। उर्वशी ने बताया कि आरटीआई एक्ट में दण्ड की माफी की कोई व्यवस्था नहीं है और जावेद उस्मानी इस प्रकार की घोषणा करने के लिए अधिकृत भी नहीं हैं। उर्वशी ने उस्मानी की घोषणा को पूर्णतः अवैध बताया और कहा कि उस्मानी ने अपने व्यक्तिगत भ्रष्ट उद्देश्यों की पूर्ति के लिए दण्डित जनसूचना अधिकारियों से घूस खाकर अपने पद के अधिकार क्षेत्र से परे जाकर आरटीआई एक्ट के तहत दण्डित जनसूचना अधिकारियों को अर्थदण्ड से माफी देने के सम्बन्ध में यह अवैध सार्वजनिक घोषणा की है जिससे राजकोष को आर्थिक क्षति कारित होने के कारण इस आपराधिक कृत्य की जांच आवश्यक है ।

उर्वशी की तरफ से भेजे गए इस पत्र में जावेद उस्मानी पर सीआइसी के पद की गरिमा को गिराते हुए असत्य कथन करने, उप्र सूचना का अधिकार नियमावली 2015 से पूर्व जुर्माना वसूली की कोई व्यवस्था नहीं होने के सम्बन्ध में असत्य कथन करके पने पूर्ववर्ती सूचना आयुक्तों को अप्रत्यक्ष रूप से अक्षम कहने की साजिश करने, उप्र सूचना का अधिकार नियमावली 2015 के लागू होने के बाद जुर्माने की वसूली के सम्बन्ध में असत्य संभाषण करने और आरटीआई के सम्बन्ध में उस्मानी की कथनी और करनी में जमीन आसमान का अंतर होने के आरोप लगाते हुए इस आरोपों की जांच की मांग की गयी है ।

आरटीआई एक्सपर्ट उर्वशी के अनुसार आरटीआई एक्ट की धारा 17 के द्वारा उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और राज्यपाल को ही मुख्य सूचना आयुक्त के खिलाफ कार्यवाही करने की विधिक व्यवस्था की गयी है और इसीलिये अन्होने अपना यह शिकायती पत्र उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और सूबे के राज्यपाल को प्रेषित किया है ।

उस्मानी को दण्डित कराने और आरटीआई एक्ट के तहत दण्डित किये गए सभी जनसूचना अधिकारियों से अर्थदंड की बसूली कराते हुए इस सूचना को सार्वजनिक किये जाने की मांग करते हुए जांच के दौरान बुलाये जाने पर अपने आरोपों के साक्ष्य जांच अधिकारी को उपलब्ध कराने की बात भी उर्वशी ने अपने पत्र में कही है ।