नयी दिल्ली: 2011 के जनगणना के आंकड़ों के विस्तृत विश्लेषण से पता चलता है कि उत्तर भारत में मौजूदा समय में विवाहित 1 करोड़ पुरुषों और 3 करोड़ 50 लाख महिलाओं का बाल विवाह हुआ है। इस सूचि में सबसे ऊपर राजस्थान का नाम है जहां विवाहित लोगों की जनसंख्या का तीस फीसदी यानी एक तिहाई लोग बाल विवाह के शिकार हैं। इस सूची में मध्य प्रदेश भी इसके बहुत करीब है जहां यह 26 फीसदी है इसके बाद उत्तर प्रदेश और हरियाणा का स्थान है जहां यह तादात क्रमशः 21 और 20 फीसदी है सबसे चिंताजनक बात ये है कि ये आंकड़े राष्ट्रीय औसत (19 फीसदी) से भी ज़्यादा हैं।
साथ ही पुरुष और महिलाओं के लिए इन आंकड़ों में भारी अंतर है। बालविवाह के मामले में महिलाओं की संख्या पुरुषों के मुकाबले तकरीबन तीन गुना ज़्यादा है।

क्राइ की स्थानीय निदेशक सोहा मोइत्रा बताती हैं, उत्तरी राज्यों के ये आंकड़े बहुत चौंकाने वाले हैं और इनसे हमारे तंत्र में मौजूद भारी गड़बड़ी का पता चलता है। कानून, सरकारी पहल और इस विषय को लेकर बढ़ती हुई जागरूकता के बावजूद ये स्थिति बनी हुई है। बाल विवाह की जड़ें पितृसत्ता, गरीबी और निरक्षरता में गहरे तक समाई हुई हैं और ये परम्पराए संस्कृति और सुरक्षा का चोला पहनाकर बड़े स्तर पर प्रचलन में बनी हुई है यहां तक कि आज भी बाल विवाह को बाल अधिकारों के हनन के रूप में देखने के बजाय एक सामाजिक कुरीति के रूप में देखा जाता है।
यह उन्हें न केवल शिक्षा से दूर रखती है बल्कि इस वजह से बच्चियों को कुरीतियों और घरेलू हिंसा का शिकार भी होना पड़ता है।
इस बात को अब भी गंभीरता से नहीं लिया जाता कि इस सदियों पुरानी परंपरा से स्वास्थ्य सम्बंधित कई खतरे भी जुड़े हैं। बालविवाह के परिणामस्वरूप असामयिक गर्भावस्था की स्थिति आ जाती है और अक्सर इन मामलों में मां और नवजात बच्चे की मृत्यु तक हो जाती है। इस स्थिति में कम वज़न के बच्चे के जन्म का खतरा भी रहता है जो बाद में चलकर कुपोषण का शिकार भी हो सकता है।
जनगणना के आंकड़े इन प्रदेशों में बालविवाह करने वालों की संख्या पर भी प्रकाश डालते हैं और जो आंकड़े सामने आये हैं वो भी उत्साहजनक नहीं हैं। कोई आश्चर्य नहीं है कि सभी राज्यों में सामने आये आंकड़ों में 65 फीसदी संख्या लड़कियों की है।
13. 5 लाख बाल विवाहों के साथ उत्तर प्रदेश सबसे आगे है। आश्चर्यजनक रूप से ज़िला गाज़ियाबाद राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में होने के बावजूद बाल विवाह के मामले में अग्रणी ज़िलों में दूसरे स्थान पर हैण् अन्य अग्रणी ज़िलों में अलाहाबाद और आगरा शामिल हैं।
राजस्थान में करीब 7. 5 लाख बाल विवाह के मामले सामने आये जिनमें से जयपुर और जोधपुर इस मामले में राज्य में अग्रणी पांच ज़िलों में शामिल हैं।
मध्य प्रदेश में 5 लाख बाल विवाह के मामले प्रकाश में आये। इंदौर और भोपाल बाल विवाह में सबसे आगे पांच ज़िलों में शामिल हैं।
हरियाणा में फरीदाबाद ज़िला बाल विवाह के मामले में सबसे आगे है।
मोइत्रा आगे बताती हैं 'दीर्घ कालिक परिवर्तन लाने के लिए कानूनों को सख्ती से लागू किये जाने (जिनमें बच्चों की उम्र के निर्धारण के लिए जन्म और विवाह का पंजीकरण शामिल है) और उनका उल्लंघन करने वालों को सज़ा दिए जाने के साथ समुदायों के व्यवहार और रवैय्ये में परिवर्तन लाने की भी सख्त ज़रुरत है। क्राइ के अपने अनुभवों में हमने पाया है कि परिवारों को संवेदनशील बनाने, समुदायों और स्थानीय अधिकारियों के साथ काम करने से सकारात्मक बदलाव लाया जा सकता है"
शिक्षा का अभाव या उसमें होने वाला व्यवधान बालविवाह के उन्मूलन में मुख्य रुकावट है। जो बच्चे स्कूल नहीं जा पाते उनकी जल्दी विवाह होने की संभावना बढ़ जाती है। जहां कई बच्चों को शिक्षा नहीं मिल पाती वहीं जिन्हें शिक्षा मिल पाती है उनमें भी स्कूल छोड़ने की समस्या चिंता का सबसे बड़ा कारण है।