आसिफ मिर्जा

सुल्तानपुर। बसपा से स्वामी प्रसाद ने नाता क्या तोड़ा की प्रदेश भर के नेताओं को बसपा से बैर हो गया। थोड़ा घूमने-टहलने के बाद स्वामी को भाजपा रास आई तो प्रदेश भर में हवा के इसी रुख पर नेतागण बह निकले। खैर राजधानी लखनऊ से बही इस हवा से जिला भी अछूता नही रहा पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष के बाद कादीपुर विधानसभा के एक प्रमुख ने बसपा छोड़ भाजपा का झंडा ऊँचा किया है। सवाल ये है क्या प्रदेश व जिला स्तर के नेताओं को पक्का यकीन हो चला है कि अगली सरकार की कमान बसपा के हाथों में नही रहेगी?
यूं विधानसभा चुनाव को लेकर प्रदेश की सभी राष्ट्रीय पार्टियों एवं इलाकाई पार्टियों में उठापटक चल रही है। अधिकांशतर इस उठापटक के पीछे टिकट बंटवारे की बात ही प्रकाश में आई है। जिससे नेतागण मौजूदा दल छोड़ उस दल में जगह पक्की कर रहे जहां उन्हें अपने राजनैतिक भविष्य की कुछ रोशनी दिखाई पड़ रही। इस सबके बावजूद प्रदेश से जिला, विधानसभा और ब्लाक स्तर पर नेता बसपा से पलायन कर रहे उस तरह का हाल अन्य दलों में देखने को नहीं मिल रहा। सोचने वाला पहलू ये है कि बसपा के कैडर के नेताओं के बाद वो नेता पार्टी से किनारा कर रहे जो 2007 में सतीश चंद्र मिश्रा के साथ सोशल इंजीनियरिंग के नारे के साथ बसपा की मुख्यधारा में थे। इसके पीछे का एक बहुत बड़ा कारण ये है कि बसपा प्रमुख ने प्रदेश की सत्ता की कुंजी को हथियाने के लिये
सोशल इंजीनियरिंग फार्मूले के जनक को फ्रंटफुट से बैकफुट पर खड़ा कर बसपा के बेस वोट के साथ मुस्लिम कार्ड खेल दिया। जिसकी बानगी प्रदेश में अब तक घोषित हुए उम्मीदवारों की सूची है। शायद सोशल इंजीनियरिंग के जनक से लेकर इनसे जुड़े हर खासो-आम ने ये समझ लिया की आने वाले समय में बसपा के अंदर दाल गलने से रही लिहाजा दूसरा ठिकाना ढूँढ़ लेना ही बेहतर होगा।
इनसेट-पांच में तीन सीटों पर मजबूत है बसपा
लखनऊ मे स्वामी प्रसाद मौर्य ने जैसे ही बसपा को अलविदा कहा वैसे ही पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष सीताराम वर्मा ने भी बसपा छोड़ा। एक चर्चा हुई जिले मे बसपा का बड़ा नुकसान हुआ। दरअसल सरकार के बलबूते जिसे जिला पंचायत अध्यक्ष का पद मिल जाये और सरकार के जाते ही जिसका पद छिन जाये उसके पार्टी मे रहने या जाने से पार्टी को कौन सा नुकसान और कौन सा फायदा होगा? इसे बखूबी समझा जा सकता है। उधर बसपा का गढ़ कहे जाने वाली कादीपुर विधानसभा मे प्रमुख श्रवण मिश्रा ने बसपा छोड़ भाजपा मे ठिकाना बनाया है। सूत्रों की मानें तो इसके पीछे टिकट की दावेदारी की रार थी जो सामने आ गई। खैर जिले के मौजूदा राजनीतिक हालात को मद्देनजर रख कहा जा सकता है कि पांच विधानसभाओं मे से तीन विधानसभा सीटों पर बसपा की हालत फिलवक्त मजबूत है।