नई दिल्ली: 1980 के मॉस्को ओलिंपिक में युवा मोहम्मद शाहिद ने ऐसा जौहर दिखाया कि उनके साथी खिलाड़ी उन्हें आज तक नहीं भूल पाए हैं। शाहिद के जोड़ीदार जफर इकबाल ने एक टीवी चैनल से बातचीत के दौरान साफ तौर पर माना कि भारत का आठवां गोल्ड मेडल मुमकिन नहीं होता, अगर शाहिद टीम का हिस्सा नहीं होते।
मो. शाहिद की टीम में अहमियत बताते हुए उन्होंने कहा कि शाहिद नहीं होते तो 1980 का गोल्ड मिलना मुश्किल था। अगर उनकी कंसिस्टेंसी में जरा भी चूक होती तो मेडल हाथ से फिसल सकता था। एक और बात है कि उस टूर्नामेंट में सबसे ज्यादा गोल सुरेंद्र सिंह सोढी ने किए, लेकिन इसके पीछे शाहिद का बहुत बड़ा हाथ था। वो कमाल की गेंद बनाकर गोल के सामने खिलाड़ी को पेश कर देते थे और दूसरे खिलाड़ी गोल कर पाते थे।शाहिद ऐसे फॉरवर्ड थे, जिन्हें रोक पाना किसी के लिए मुमकिन नहीं था। एक दफा हम ऑस्ट्रेलिया गए थे, जहां हमने जीत हासिल की थी। तब ऑस्ट्रेलिया ने उन्हें रोकने की कई नीतियां बनाई थीं, लेकिन वो जानते थे कि शाहिद को तभी रोक पाना मुश्किल है जब वो टर्न करें। रिक चार्ल्सवर्थ एक खिलाड़ी के तौर पर उन्हें रोकने की बहुत कोशिश करते थे। मगर शाहिद तो शाहिद थे, उनकी वजह से हमारी पूरी टीम को फायदा हुआ।
जफर इकबाल ने कहा कि उनकी विरासत को बचाना चाहिए। उनके नाम पर कोई स्टेडियम या अवार्ड होना चाहिए। मैंने इसके लिए सुझाव दिया है। कैसे-कैसों के नाम पर स्टेडियम हैं, जिन्हें खेलों की दुनिया से कोई मतलब भी नहीं है।