2.5 न्‍यू विज़न जेनरेशन इंडिया ने आई मित्र ऑप्टिशियन प्रोग्राम से फैलाई जागरूकता

लखनऊ : आज, अनकरेक्‍टेड रिफ्रैक्टिव एरर (यूआरई) ऐसी विकलांगता है जो सबसे ज्‍यादा नजर आती है लेकिन इसके 80 फीसदी मामले ठीक होने लायक होते हैं। अगर रिफ्रैक्टिव एरर को दुरुस्‍त नहीं किया जाता है तो आगे चल कर यह धुंधली दृष्टि, दृष्टि क्षीणता और अंधेपन में बदल जाता है। विज़न इंपैक्‍ट इंस्‍टीट्यूट के अनुसार, विश्‍व भर के तकरीबन ढाई अरब लोग दृष्टि की समस्‍या से पीडि़त हैं जिन्‍हें जस का तस छोड़ दिया जाता है। विकासशील देशों में दृष्टि की समस्‍या से लगभग 2.2 अरब लोग पीडि़त हैं और इनमें से 55 करोड़ लोग अकेले भारत में रहते हैं। हाल ही में वर्ल्‍ड इकोनॉमिक फोरम, चीन ने आईग्‍लास तक लोगों की पहुंच बढ़ाने के लिए विभिन्‍न सेक्‍टरों के बीच समझौते और सहयोग की महत्‍ता पर रिपोर्ट प्रकाशित की है।
दृष्टि हितधारकों ने खराब दृष्टि से जुड़े मसलों के समाधान के लिए कई प्रयास किए हैं। 2013 में एसिलर की ख़ास कारोबारी इकाई 2.5 न्‍यू विज़न जेनरेशन इंडिया ने आई मित्र ऑप्टिशियन (ईएमओ) प्रोग्राम विकसित किया। इस अभिनव प्रोग्राम के तहत कम पैसों के रोज़गार में लगे युवाओं को नियुक्‍त कर बेसिक विज़न स्‍क्रीनिंग और चश्‍मा वितरण का प्रशिक्षण दिया जाता है। इसकी बदौलत वे खुद का छोटा कारोबार शुरू कर ग्रामीण और अर्ध-ग्रामीण समुदायों के लिए सस्‍ते आई केयर की व्‍यवस्‍था करने के लिए सशक्‍त होते हैं।
वर्तमान में भारत के 13 राज्‍यों में 1,500 से अधिक ईएमओ अपने स्‍थानीय समुदायों को विज़न केयर उपलब्‍ध कराने की दिशा में काम कर रहे हैं। 2020 तक 10,000 ईएमओ को प्रशिक्षित कर उनके कारोबार स्‍थापित करने का लक्ष्‍य तय किया गया है। इनमें से एक-तिहाई महिलाएं होंगी। कुल मिलाकर इस प्रोग्राम का लक्ष्‍य 2020 तक ऐसे 1.8 करोड़ लोगों को लाभ पहुंचाना है जिन्‍हें दृष्टि के इलाज़ की जरूरत है।
2.5 एनवीजी के दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया के वाइस प्रेसिडेंट सौगता बनर्जी ने कहा, ‘हमें ख़ुशी है कि विज़न इंपैक्‍ट इंस्‍टीट्यूट भारत में लांच हो चुका है। हम अच्‍छी दृष्टि के उद्देश्‍य वाली उनकी पहल का पूरा समर्थन करते हैं। आई मित्र प्रोग्राम के तहत हम न केवल भारत में आंखों की देखभाल को प्रोत्‍साहित कर रहे हैं बल्कि कौशल विकास के जरिए रोजगारों का सृजन भी कर रहे हैं। समुदाय के स्‍तर पर युवाओं को एक नया कौशल उपलब्‍ध करा रहे हैं।’ उन्‍होंने कहा, ‘इससे महिलाएं भी सशक्‍त होती हैं, उन्‍हें समाज में अपनी बराबरी की तुलना में एक स्‍थान और सम्‍मान मिलता है। दूसरी तरफ, वे आई मित्र और लोगों की सेवा कर दोनों की जीवन की गुणवत्‍ता सुधारते हैं। वास्‍तव में य‍ह प्रोग्राम 17 संयुक्‍त राष्‍ट्र सतत विकास लक्ष्‍य (17 यूएन सस्‍टेनेबल डेवलपमेंट डेवलपमेंट गोल्‍स) में प्रमुखता से योगदान करता है।’
अनकरेक्‍टेड रिफ्रैक्टिव एरर (यूआरई) का सामाजिक और आर्थिक स्‍तर पर बड़ा प्रभाव होता है। विज़न इंपैक्‍ट इंस्‍टीट्यूट की प्रिंसिपल कंसलटेंट शैलजा पठानिया ने कहा, ‘अनकरेक्‍टेड विजन समस्‍याओं के कारण वैश्विक उत्‍पादकता सालाना लगभग 272 अरब डॉलर से अधिक प्रभावित होती है। भारत चूंकि बड़े देशों में से एक हैं और यहां की लगभग आधी जनसंख्‍या दृष्टि की समस्‍याओं की चपेट में है, इससे देश की सालाना उत्‍पादकता में लगभग 34.5 अरब डॉलर (लगभग दो लाख करोड़ रुपये) की कमी आती है।’ उन्‍होंने बताया कि विज़न इंपैक्‍ट इंस्‍टीट्यूट भारत में पहल कर रहा है और आंखों के अच्‍छे स्‍वास्‍थ्‍य की महत्‍ता के लिए जागरूकता फैला रहा है।
कमजोर दृष्टि को सुधारना और उससे सुरक्षा कारोबार के पारंपरिक तत्‍वों, निवेश, शिक्षा के साथ ही भारतीय कला, शिल्‍प और अच्‍छी दृष्टि की मांग वाले पेशों का पूरकीकरण करते हुए भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था की वृद्धि में योगदान कर सकता है। दृष्टि से संबंधित समस्‍याओं के समाधान से मजदूर और कर्मचारी ज्‍यादा प्रभावकारी प्रदर्शन कर सकते हैं। इससे उनकी आय में 30 फीसदी और उनकी उत्‍पादकता में 25 फीसदी तक की बढ़ोतरी हो सकती है। मगर, भारत में 25,000 लोगों पर दृष्टि की जांच करने वाला योग्‍य व्‍यक्ति सिर्फ एक ही है। आंखों की देखभाल करने वाले पेशेवरों की भारी कमी है, ख़ास तौर से देश के सुदूर हिस्‍सों में। इसके साथ-साथ भारत में युवाओं के लिए कौशल निर्माण और रोज़गार सृजित करने की तत्‍काल जरूरत है क्‍योंकि 18-29 वर्षीय लोगों में बेरोज़गारी की दर 28 फीसदी है जबकि विश्‍व में युवाओं की सबसे अधिक जनसंख्‍या भारत में है।