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स्मार्ट शहर – समेकित दृष्टिकोण के माध्यम से जल सुरक्षा

अरुण लखानी

की 80 फीसदी आबादी आज 1000 शहरों में रहती है। लेकिन इनमें से अधिकांश लोगों को पानी की कमी से जूझना पड़ता है जो जीवन की मूलभूत आवश्यकता है। मिलेनियम सिटी गुड़गांव हो या दक्षिणी दिल्ली पानी की कमी हर जगह है। गुड़गांव के अधिकारियों ने स्पष्ट निर्देश दे दिए हैं कि निर्माण गतिविधियों के लिए ज़मीन का पानी उपलब्ध नहीं कराया जाएगा और डेवलपर्स को अपनी पानी की ज़रूरत टैंकरों या ट्रीटमेन्ट प्लान्ट से पूरी करनी होगी। वसंत कुंज, मुनीरका जैसे इलाके साल दर साल सूखते जा रहें हैं और लोगों को अपनी मूल ज़रूरतों के लिए टैंकरों का सहारा लेना पड़ रहा है।
सरकार ने 13 स्मार्ट शहरों की नई सूची जारी की है जिसमें फरीदाबाद, लखनऊ, राँची, वरांगल और धर्मशाला शामिल हैं। शहरी जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाने के उद्देश्य के साथ इन शहरों के लोगों को पावर और पानी की निर्बाध आपूर्ति उपलब्ध कराई जाएगी। यह एक अच्छी पहल है जिसके लिए नरेन्द्र मोदी की सरकार की सराहना की जानी चाहिए। लेकिन क्या केवल यही शहर जीवन की गुणवत्ता के हकदार हैं।
मैं महाराष्ट्र के एक छोटे शहर से हूँ जहां साल दर साल पानी की कमी बढ़ती जा रही है। मैंने देखा है – इसका जीवन पर कैसे असर पड़ रहा है। मैंने पानी के स्रोतों को सूखते और संदूषित होते देखा है। और इसकी ज़िम्मेदारी हम पर ही है। हमने कीमती पानी को महत्व नहीं दिया और विडम्बना यह है कि किसी शहर की ज़रूरत को पूरा करने के लिए पम्प किए गए पानी की आधी से अधिक मात्रा 6-7 दशक पुराने पाईपों, अप्रचलित घरेलू कनेक्शनों, चोरी या रिसाव के कारण बर्बाद हो जाती है। हम एक राष्ट्र के रूप में अपनी सम्पत्तियों के रखरखाव का दृष्टिकोण पूरी तरह से खो चुके हैं, हमें जब परेशानी होती है, हम तभी पाईपलाईनों को बदलते हैं। यह दुनिया की सबसे तेज़ी से होती हुई अर्थव्यवस्था के लिए गैर -ज़िम्मेदाराना रवैया है।
हममें से बहुत से लोगों को यह जानकर हैरानी होगी कि टाॅप 20 शहरों में से 18 शहरों में पानी की आपूर्ति निर्धारित 135 लीटर प्रति व्यक्ति प्रति दिन से ज़्यादा मात्रा में की जाती है। दो शहर – जयपुर और विशाखापटनम में आज भी 100 लीटर प्रति व्यक्ति प्रति दिन से ज़्यादा आपूर्ति होती है। हम इस कीमती संसाधन के प्रबन्धन खो रहें हैं। हम 50 फीसदी से ज़्यादा पानी को रिसाव, चोरी आदि के कारण बर्बाद जाने दे रहें हैं, जिसे हम गैर-राजस्व पानी (Non-Revenue Water – NRW) कहते हैं। हम सीवेज उपचारित जल का पुनः इस्तेमाल गैर -पेय प्रयोजनों जैसे बागवानी, फ्लशिंग, निर्माण, उद्योगों में नहीं कर रहें हैं, हम ताजे़ पानी का गलत इस्तेमाल कर रहें हैं और पानी की मांग को बढ़ा रहें हैं। साथ ही सीवेज को ठीक से उपचारित न करके अपने ताजे जल के स्रोतों को संदूषित कर रहें हैं। यह बहुत ही बुरी स्थिति है जो नगर निगमों के राजस्व को भी कम कर रही है।
हमारी सरकार के उद्देश्य के अनुसार स्मार्ट शहरों के लिए स्मार्ट समाधान उपलब्ध हैं जो हमारी पानी की ज़रूरत को पूरा कर सकते हैं। पानी के पूरे चक्र पर नियन्त्रण पाने के लिए समेकित दृष्टिकोण के साथ स्थायी शहरी जल प्रबन्धन की आवश्यकता है। पानी का अस्थायी गलत इस्तेमाल ओर इसे संदूषित रूप मंे प्रकृति को वापस देने की बड़ी कीमत हमें चुकानी होगी। स्रोतों द्वारा उपचारित- प्रभावी इस्तेमाल (24×7 दबावयुक्त प्रणाली)- सीवेज संग्रहण- सीवेज उपचार और काॅमर्शियल प्रयोजन के लिए पुनः इस्तेमाल- इस प्रकार प्राप्त पानी का इस्तेमाल अब इन काॅमर्शियल गतिविधियों और पेय प्रयोजनों के लिए किया जा रहा है। यही चक्र हमें दीर्घकालिक रूप से पानी की कमी से बचा सकता है।
नागपुर की ओरेन्ज सिटी जल परियोजना इसका एक उदाहरण है जो भारत का पहली पूर्ण शहर 24×7 दबावयुक्त जल आपूर्ति परियोजना है और अब अपने संचालन के चौथे साल में है। पिछले साल AMRUT (Atal Mission for Rejuvenation for Urban Transformation) के लाॅन्च के समय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, 500 महापौरों और 500 आयुक्तों के समक्ष इस परियोजना को देश में इस्तेमाल की जा सकने वाली सर्वश्रेष्ठ परियोजना के रूप में प्रस्तुत किया गया।
वास्तव में, मुझे गर्व है कि देश की इस पहली पूर्ण शहर 24ग्7 दबावयुक्त जल आपूर्ति परियोजना के साथ जुड़ने का मौका मिला। गौरतलब है कि नागपुर भारत के किसी भी अन्य शहर की तरह पानी की कमी से जूझ रहा था। शहर की 27 लाख की आबादी में से अब तक 10 लाख से ज़्यादा लोग इससे लाभान्वित हो चुके हैं। जिन क्षेत्रों में पानी की आपूर्ति नहीं होती थी, या एक दिन छोड़ कर की जाती थी, उन क्षेत्रों में आज नियमित रूप से पानी की आपूर्ति की जा रही है। पानी में से संदूषण को हटाया गया है, दबाव में सुधार लाया गया है।
पहली प्रावस्था में शहर में एक समान जल आपूर्ति पर ध्यान केन्द्रित किया गया, और इसके बाद विभिन्न क्षेत्रों को जल आपूर्ति में बदलने पर ध्यान केन्द्रित किया गया। आज महाराष्ट्र की इस शीतकालीन राजधानी में 2 लाख से ज़्यादा लोग 24×7 पानी की आपूर्ति से लाभान्वित हो रहें हैं।
इस पीपीपी परियोजना में हम परियोजना की 555 करोड़ की लागत में से 50 फीसदी से ज़्यादा निवेश कर चुके हैं। शेष आधा निवेश JNNURM योजना के तहत सरकार से आएगा। अनुबंध अपने आप में पूरी तरह से समावेशी है जिसमें हर घर में पानी के कनेक्शन की परिकल्पना पेश की गई है फिर चाहे वह बंगला हो, फ्लैट हो या झुग्गी। संप्रभुता के अधिकार जैसे टैरिफ, कनेक्शन-डिस्कनेक्शन, सम्पत्तियों का स्वामित्व आदि नगर निगम के पास हैं। टैरिफ और आॅपरेटर के लिए शुल्क को डी-लिंक किया गया है। और 135 लीटर प्रति दिन प्रति व्यक्ति पानी की आपूर्ति अत्यधिक रियायती पुरानी दरों पर की जा रही है। हम पर्याप्त मात्रा में उपलब्धता, रिसाव को रोक कर, बड़े रिसाव युक्त वाॅल्वों को बदल कर, 500 किलोमीटर से ज़्यादा बड़े व्यास की पाईपलाईनों को बदलकर, 100,000 से ज़्यादा घरेलू कनेक्शनों को बदल कर और फ्लो मीटर्स इन्सटाॅल करके बिलिंग में पर्याप्त सुधार लाए हैं। इसके पूरा हो जाने पर, मेरा वादा है कि संतरों के लिए विख्यात इस शहर में अगले पांच सालों में चौबीसों घण्टे लगातार उच्च दबाव पर पानी की आपूर्ति होगी। हम कर्नाटक और पिम्परी चिंचवाड़ के 5 नगरों में इसी तरह की परियोजनाओं पर काम कर रहें हैं।
नागपुर परियोजना की कामयाबी का श्रेय परियोजना से जुड़े जोगों को दिया जा सकता है। हमने इसमें एक और पी यानि लोगों को शामिल किया है। विशाल अभियान ‘‘माय सिटी माय वाटर’ के माध्यम से 50,000 स्कूली बच्चों को परियोजना से जोड़ा गया, नियमित रूप से मोहल्लों में बैठकों का आयोजन किया गया, इसके अलावा हर समुदाय में जल-मित्र इस दृष्टि से सम्पूर्ण सहयोग को सुनिश्चित करते हैं।
अगले पांच सालों में गैर राजस्व जल को 60 फीसदी से 40 फीसदी तक लाना और उसके अगले पांच सालों में 25 फीसदी तक लाना हमारा उद्देश्य है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो स्थानीय निकाय के राजस्व और समान आपूर्ति स्रोत से वास्तविक उपभोेग को दोगुना करना होगा। इसे करना फायदेमंद और सम्भव है। नागपुर को देश के अन्य शहरों या एनसीआर नगरों की तरह बनाया जा सकता है।
आज 1000 शहरों में 45 बिलियन अमेरिकी डाॅलर के निवेश की आवश्यकता है। मौजूदा प्रणाली के अनुसार, जहां शहरी स्थानीय निकाय 30 फीसदी का योगदान देते हैं, उनके लिए संसाधनों की आवश्यकता बहुत अधिक है। यह चार पी का फाॅमूॅला है – पब्लिक-पीपी-प्राइवेट-पार्टनरशिप। और नागपुर की परियोजना अपने आप को एक कामयाब परियोजना के उदाहरण के रूप में स्थापित करेगी।
स्थायी शहरी जल प्रबन्धन का एक और सबसे महत्वपूर्ण पहलू है सीवेज उपचार और काॅमर्शियल प्रयोजनों के के लिए इसका पुनः इस्तेमाल- इस प्रकार इन गतिविधियों के लिए इस्तेमाल किए जा रहे ताजे पानी को पेय प्रयोजनों में काम लिया जा सकेगा।
आज 380000 उसक से ज़्यादा मात्रा में सीवेज को बिना उपचार के प्रकृति में छोड़ दिया जाता है- अकेले गंगा में 12000 उसक सीवेज छोड़ा जाता है। 21 फीसदी से ज़्यादा बीमारियों का कारण पानी है। 10 करोड़ से ज़्यादा लोग पानी के कारण होने वाले रोगों से अपनी जान गंवा चुके हैं। अनुपचारित सीवेज हमारे ताजे पानी के स्रोतों जैसे झीलों, नदियों और कुंओं को संदूषित कर रहा है।
यूनिसेफ के अनुसार पानी में निवेश किया गया हर 1 रु स्वास्थ्य बजट पर 8 रु की बचत करता है।

तो हम सीवेज का उपचार क्यों नहीं करते हैं?

  1. शहरी स्थानीय निकायों के पास एसटीपी की स्थापना के लिए पर्याप्त कोष नहीं हाता, यहां तक कि अगर कैपेक्स के लिए केन्द्र सरकार से सहायता मिल भी जाते तो इसे चलाना मुश्किल होता है।
  2. यह लोगों को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित नहीं करता। (उदाहरण के लिए जल आपूर्ति पर्याप्त नहीं होने से तुरन्त आंदोलन/ विरोध शुरू नहीं होंगे।)
  3. इसके कारण होने वाली क्षति के बारे में जागरुक नहीं है।
  4. लोगों को दुर्गंध के अलावा किसी किसी अन्य बुरे परिणाम के बारे में खास जानकारी नहीं है।

नागपुर में मुझे गर्व है मैंने इन देनदारियों को सम्पत्तियों में बदला है।

एमएमसी ने वाषर््िक आधार पर 100 फीसदी निजी वित्तपोषित पीपीपी सीवेज उपचार प्लान्ट का ऐलान किया है जिसके पास उपचारित जल को आॅपरेटर को बेचने का अधिकार होगा। इसमें एक राजस्व साझा सूत्र लगाया जाएगा, जिसके अनुसार अगर उपचार जल के लिए निगम को ओपेक्स और कैपेक्स दोनों के लिए भुगतान किया जाता है तो निगम का पैसा खर्च होने बजाए उसकी कमाई बढ़ जाएगी। सबसे अच्छी बात यह है कि एनएमसी 200 उसक ताजे जल का आरक्षण प्राप्त करेगी जिसका इस्तमेाल एनटीपीसी के द्वारा किया जा रहा था, जिससे इसकी जल आपूर्ति में बढ़ोतरी होगी।

विश्वराज में open competitive bidding के माध्यम से यह इपककपदह जीती है और हम प्लान्ट के निर्माण की प्रक्रिया में हैं। उपचारित जल की खरीद के लिए एनटीपीसी के साथ हमारी चर्चा काफी आगे बढ़ गई है। हमने जयपुर के लिए भी इसी तरह का प्रस्ताव पेश किया है।

भारत सरकार ने इस परियोजना में सभी हितधारकों का फायदा महसूस किया है और ‘‘स्वच्छ भारत मिशन’’ एवं स्वास्थ्य सम्बन्धी पहलुओं पर इस परियोजना के प्रभाव को देखते हुए एक राष्ट्रीय नीति का ऐलान किया गया है जिसके तहत उनके थर्मल पावर प्लान्ट्स के 50 किलोमीटर के दायरे में उपचारित जल के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया जाएगा।

हम प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता 1400 क्यूबिक मीटर से कम हो जाने को लेकर हम दबाव में हैं। गौरतलब है कि यह आंकड़ा 1000 क्यूबिक मीटर के निशान की ओर तेज़ी से बढ़ रहा है, जो पानी की कमी की ओर इशारा करता है। ऐसे में जल प्रबन्धन के लिए इस तरह का समेकित दृष्टिकोण हमारी बढ़ती आबादी के लिए पानी की सुरक्षा को सुनिश्चित करेगा तथा हमारी आनी वाली पीढ़ियों के लिए एक स्वच्छ वातावरण का निर्माण करेगा।

तो बीसीसीआई को पानी के कमी के कारण किसी मैदान पर क्रिकेट मैच निरस्त करने के बजाए एसटीपी इन्सटाॅलेशन को बढ़ावा देना होगा, ताकि उपचारित जल के सही इस्तेमाल के द्वारा पानी की कमी को दूर किया जा सके!!!!

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