आन्ध्र प्रदेश के चित्तुर जिले का श्री कलाहस्तीश्वर मंदिर 1000 वर्ष से भी अधिक प्राचीन है। तिरूपति हवाई अड्डे से इसकी दूरी केवल 20 किलोमीटर है।
इस विशाल मंदिर का निर्माण पल्लवों और चोल राजाओं ने किया और विजयनगर के राजा ने इसके स्थापत्य सौन्दर्य को और निखार प्रदान किया। इसे काल-सर्प दोष निवारण एवं राहू केतू की पूजा कि लिए भी जाना जाता है। प्रतिदिन सैंकड़ो श्रद्धालु इस 45 मिनट की पूजा को करते हैं और हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार इस पूजा से उनके सभी गृहदोष दूर हो जाते हैं। इस मंदिर की अपनी गौशाला के साथ ही श्रद्धालुओं के ठहरने और भोजन की व्यवस्था है। यहां पर एक कुण्ड भी है जिसके बारे में कहा जाता है कि यह महर्षि भारद्वाज की तपोस्थली है।
श्री कलाहस्तीश्वर मंदिर में दर्शन के लिए उपयुक्त समय राहू काल को माना गया है, और काल-सर्प दोष निवारण के लिए यह समय काफी शक्तिशाली माना जाता है। यह पूजा यहां सुबह 6 बजे से आरंभ होती है तथा शाम 6 बजे तक यह क्रम जारी रहता है।
श्री कलाहस्तीश्वर मंदिर को इसकी 10 दिवसीय शिवरात्रि आयोजन के लिए भी जाना जाता है, जो फरवरी अथवा मार्च माह में होती है।
इस मंदिर से एक घंटे के ड्राइव के बाद मनोहारी पुलीकेट नदी है, जिसे की इसके सुन्द पक्षी विहार के लिए पहचाना जाता है, यहां प्रवासी पक्षियों का आना जाना लगा रहता है। मन्दिर की दूसरी तरफ करीब 40 किलोमीटर दूर कलाहस्ती मंदिर है, यह तिरूपति का विश्व प्रसिद्ध बालाजी का मंदिर है। यह मंदिर वायु, सड़क और रेलमार्ग से पूरे देश से जुड़े हुए हैं।