गलत खानपान और शारीरिक गतिशीलता की कमी की वजह से आजकल बढ़ते मोटापे और मधुमेह की समस्या बहुत आम हो चली है। प्राय: देखा जा रहा है कि आजकल हर कोई व्यक्ति इस डर से मीठे से परहेज करने लगा है कि कहीं उसे भी मधुमेह अपनी चपेट में ना ले बैठे।
मधुमेह एक ऐसी बीमारी है जो ताउम्र साथ रहती है। हां, शरीर में शुगर के स्तर को नियंत्रित जरूर किया जा सकता है लेकिन इससे पूरी तरह पीछा छुड़ा लिया जाए, ऐसा संभव नहीं है।
वे लोग जिनकी शुगर काफी ज्यादा बढ़ जाती है, उन्हें दवाइयों के साथ-साथ इंसुलिन का सहारा भी लेना पडता है। इंसुलिन का एक बार प्रयोग कर हम शरीर को उसका आदी बना लेते हैं, जिसके चलते संबंधित व्यक्ति को नियमानुसार इंसुलिन लेना ही पड़ता है।
नियमित रूप से इंसुलिन और मधुमेह की दवा लेने वाले रोगियों के लिए आज हमारे पास एक अच्छी खबर है। वो खबर यह है कि पौधे की पत्तियां खाकर ही आप अपने शरीर में शुगर के स्तर को नियंत्रित कर सकते हैं। आपको दवाई या इंसुलिन के इंजेक्शन लगवाने की कोई जरूरत नहीं पड़ेगी
कॉसटस इग्नेउस नाम के पौधे को लोग इंसुलिन के पौधे के नाम से जानते हैं। हो सकता है आपको ये सभी बातें मिथ्या लगें लेकिन सच यह है कि आधुनिक विज्ञान भी इस इंसुलिन के पौधे के गुणों पर अपनी मुहर लगा चुका है।
इस हर्बल पौधे के पत्तियों का सेवन करने से हाइ डाइबटीज को भी अपने नियंत्रण में किया जा सकता है।
जानकारों के अनुसार शरीर में डाइबटीज दो प्रकार से होती है। एक होती है टाइप वन डाइबटीज और दूसरी टाइप टू डाइबटीज।
टाइप वन डाइबटीज के अंतर्गत रोगी का शरीर इंसुलिन हार्मोन नहीं बना पाता। इसलिए उस व्यक्ति को ताउम्र इंसुलिन का इंजेक्शन लेना पड़ता है। डाइबटीज के करीब 10 प्रतिशत रोगियों में ही टाइप वन पाया जाता है।
वहीं दूसरी ओर टाइप टू डाइबटीज के अंतर्गत व्यक्ति का शरीर इंसुलिन तो बनाता है लेकिन उसकी मात्रा पर्याप्त नहीं होती। इन रोगियों के ही शरीर में दवा या इंजेक्शन, किसी के भी जरिए इंसुलिन पहुंचाया जाया है।
विशेषज्ञों के अनुसार डाइबटीज टू से पीड़ित रोगियों की संख्या करीब 80 प्रतिशत है। इंसुलिन पौधे के पत्तों का नियमित रूप से सेवन करने से पैंक्रियाज में हॉर्मोन बनाने वाली ग्रंथि के बीटा सेल्स मजबूत होते हैं।