मदरसा तजवीदुल फुरकान में जलसा दस्तार बन्दी हुआ
लखनऊ: अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त मदरसा ‘‘तजवीदुल फुरक़ान’’ लखनऊ का 71वाँ सालाना जलसा दस्तारबन्दी आयोजित हुआ। जलसे में बहुत बड़ी संख्या में कुरान मजीद का शौक़ रखने वाले, दिन रात उसको पढ़ने पढ़ाने वाले, उलमा और गणमान्य व्यक्तियों ने शिरकत की। इस अवसर पर मदरसे के विद्यार्थियों ने अपने विशेष अंदाज से कुरान मजीद की विभिन्न लहज़ों में उपस्थित लोगों के सामने तिलावत की। उपस्थित लोगों ने इन नन्हे मुन्ने बच्चों का खूब हौसला बढ़ाया।
जलसे की अध्यक्षता मदरसे के प्रधानाचार्य डा0 क़ारी सिबग़त उल्लाह सिद्दीक़ी विभाग अध्यक्ष तजवीद व क़िरत ने की। मुख्य अतिथि के रूप में नायब इमाम अहल-ए-सुन्नत मौलाना अब्दुल अली फारूकी प्रधानाचार्य दारूल उलूम फारूकिया काकोरी और इमाम व खतीब जामा मस्जिद चिकमण्डी मौलाना जहाँगीर आलम कासमी अध्यक्ष अन्जुमन फलाह-ए-दारैन ने शिरकत की।
इस अवसर पर अपने अध्यक्षीय सम्बोधन में डा0 क़ारी सिबग़त उल्लाह सिद्दीक़ीन ने कहा कि क़ुरान मजीद को जब भी और जहाँ कहीं भी पढ़ा जाए तजवीद के साथ ही पढ़ा जाए। एैसा नही होना चाहिए कि जब हमारे सामने कोई सुनने वाला मौजूद हो या हम किसी मजलिस में तिलावत करें तब हम तजवीद के के साथ पढ़े और जब एैसा न हो तो एैसी तिलावत करें कि मालूम हो कि तजवीद के नियमों को हम जानते ही नही। क़ारी साहब ने कहा कि मजलिस, समय और हालात बदलते रहते हैं, क़ुरान मजीद तो नही बदलता। कुरान मजीद जिस के लिए पढ़ा जाता है वह हर जगह और हर समय मौजूद है। तजवीद के विरूद्ध तिलावत करने से नमाज़ नही होती है और गुनाह होने का डर रहता है।
इमाम व खतीब जामा मस्जिद चिकमण्डी मौलाना जहाँगीर आलम कास्मी अध्यक्ष अनजुमन फलाह-ए-दारैन ने कुरान व हीदस के हवालों से रौशन अपने बयान में कहा कि कुरान मजीद जिन्दगी के हर मैदान में हमको रास्ता दिखाता है। खुदा पाक ने कुरान मजीद को नसीहत प्राप्त करने के लिए आसान कर दिया लेकिन वर्तमान समय में मुसलमानों ने कुरान मजीद को छोड़ दिया। होना तो यह चाहिए कि कुरान हमारे दिलों की बहार, सीने का नूर, हमारे रंज व ग़म के निजात बने और जब हमारे अंदर यह इंक्लिब बरपा हो जायेगा फिर हमें महसूस होगा कि इस जमीन के ऊपर और उस आसमान के नीचे कुरान से बड़ी कोई दौलत और इससे अज़ीम कोई उपहार मौजूद नही।
नायब इमाम अहले सुन्नत मौलाना अब्दुल अली फारूकी ने अपने बयान में कहा कि कुरान मजीद खुदा पाक का कलाम (वाणी) है। इसका अदब व एहतराम करना जरूरी है लेकिन अफसोस कि सिर्फ दस पन्द्रह मिनट बचाने के चक्कर में कुरान मजीद को घसीट घसीट कर, जल्दी जल्दी और बिगाड़ बिगाड़ कर पढ़ा जाता है और उसकी खूबसूरती को कुछ नमाज़ियों को खुश करने की कोशिश में नजर अंदाज़ किया जाता है और नमाज़ों को खराब किया जाता है। वहीं दूसरी ओर रमजानुल मुबारक जैसे पवित्र महीने में और माह के मुकाबले जिस्म के लिए खूब अच्छे अच्छे पकवान का इंतिजाम किया जाता है और रूह (आत्मा) के सुकून के लिए उसको कुरान की ग़िजा रद्दी खुजूर की तरह दी जाती है।
इस अवसर पर मदरसे से डिग्री प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों की दस्तार बन्दी हुई जिसमें हाफिज़ो की संख्या 7 रिवायत-ए-हफ्स़ से 8, किरात-ए-सबा से 5 थी।
जलसे में हिफ्ज़ के मुकाबले में पहला पुरस्कार पाने हाफिज़ मुहम्मद सईद लखनवी और दूसरा पुरस्कार पाने वाले हाफिज मुहम्मद हमज़ा लखनवी थे। इसी तरह किरात में अपने अपने हुनर का प्रदर्शन करने वालों में पहला पुरस्कार पाने वाले क़ारी मुहम्मद इमरान कानपुरी .और दूसरा पुरस्कार पाने वाले क़ारी रियाजुद्दीन आसामी थे।
जलसे में विशेष तौर पर हसीब अहमद, मुहम्मद दानिश, मुहम्मद असालम, मुहम्मद कासिम, मुहम्मद फुजैल, मुहम्मद मशहूद अखतर, और मुहम्मद खलील विशेष तौर पर शरीक थे।